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Hindi to Sanskrit Anuwad PDF

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Hindi to Sanskrit Anuwad PDF

Hindi to Sanskrit Anuwad PDF ( हिन्दी से संस्कृत अनुवाद ) : दोस्तो आज इस पोस्ट मे संस्कृत व्याकरण (Sanskrit Grammar) के हिन्दी वाक्यो का संस्कृत मे अनुवाद टॉपिक का विस्तारपूर्वक अध्ययन करेंगे । यह पोस्ट सभी शिक्षक भर्ती परीक्षा व्याख्याता (School Lecturer), द्वितीय श्रेणी अध्यापक (2nd Grade Teacher), REET 2021, RPSC, RBSE REET, School Lecturer, Sr. Teacher, TGT PGT Teacher, 3rd Grade Teacher आदि परीक्षाओ के लिए महत्त्वपूर्ण है । अगर पोस्ट पसंद आए तो अपने दोस्तो के साथ शेयर जरूर करे ।

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Hindi to Sanskrit Anuwad PDF ( हिन्दी से संस्कृत अनुवाद )

हिन्दी से संस्कृत में अनुवाद करने के लिए निम्नलिखित कुछ नियमों का ध्यान रखते हुए अनुवाद का अभ्यास करना चाहिए

हिन्दी वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद

हिन्दी से संस्कृत में अनुवाद करते समय कर्ता, कर्म, क्रिया तथा अन्य शब्दों पर विशेष ध्यान देना चाहिए। कर्ता जिस पुरुष या वचन में हो, उसी के अनुरूप पुरुष, वचन तथा काल के अनुसार क्रिया का प्रयोग करना चाहिए। हिन्दी से संस्कृत में अनुवाद करते समय निम्न बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिए

(1) कारक

संज्ञा और सर्वनाम के वे रूप जो वाक्य में आये अन्य शब्दों के साथ उनके सम्बन्ध को बताते हैं, ‘कारक’ कहलाते हैं। मुख्य रूप से कारक छः प्रकार के होते हैं, किन्तु ‘सम्बन्ध’ और ‘सम्बोधन’ सहित ये आठ प्रकार के होते हैं। संस्कृत में इन्हें विभक्ति’ भी कहते हैं। इन विभक्तियों के चिह्न प्रकार हैं

Hindi to Sanskrit Anuwad PDF ( हिन्दी से संस्कृत अनुवाद )

  • जिस शब्द के आगे जो चिह्न लगा हो, उसके अनुसार विभक्ति का प्रयोग करते हैं। जैसे – राम ने यहाँ पर राम के आगे ‘ने’ चिह्न है। अत: राम शब्द में प्रथमा विभक्ति का प्रयोग करते हुए ‘रामः’ लिखा जायेगा।
  • रावण को यहाँ पर रावण के आगे ‘को’ यह द्वितीया विभक्ति का चिह्न है। अतः ‘रावण’ शब्द में द्वितीया विभक्ति का प्रयोग करके ‘रावणम्’ लिखा जायेगा।
  • ‘बाण के द्वारा यहाँ पर बाण शब्द के बाद के द्वारा यह तृतीया का चिह्न लगा है। अतः ‘बाणेन’ का प्रयोग किया जायेगा। इसी प्रकार अन्य विभक्तियों के प्रयोग के विषय में समझना चाहिए।
  • यह बात विशेष ध्यान रखने की है कि जिस पुरुष तथा वचन का कर्ता होगा, उसी पुरुष तथा वचन की क्रिया भी प्रयोग की जायेगी। जैसे
  • ‘पठामि’ इस वाक्य में कर्ता, ‘अहम्’ उत्तम पुरुष तथा एकवचन है तो क्रिया भी उत्तम पुरुष, एकवचन की है। अतः ‘पठामि’ का प्रयोग किया गया है।

 

(2) पुरुष – पुरुष तीन होते हैं, जो निम्न हैं।

(अ) प्रथम पुरुष-जिस व्यक्ति के विषय में बात की जाय, उसे प्रथम पुरुष कहते हैं। इसे अन्य पुरुष भी कहते हैं। जैसे – सः = वह। तौ = वे दोनों । ते = वे सब। रामः = राम्। बालकः = बालक। कः = कौन। भवान् = आप (पुं.)। भवती = आप (स्त्री.)।

(ब) मध्यम पुरुष–जिस व्यक्ति से बात की जाती है, उसे मध्यम पुरुष कहते हैं। जैसे – अहम् = मैं। आवाम् = हम दोनों। वयम् = हम सब।

Hindi to Sanskrit Anuwad PDF ( हिन्दी से संस्कृत अनुवाद )

(3) वचन – संस्कृत में तीन वचन माने गये हैं

(अ) एकवचन – जो केवल एक व्यक्ति अथवा एक वस्तु का बोध कराये, उसे एकवचन कहते हैं। एकवचन के कर्ता के साथ एकवचन की क्रिया का प्रयोग किया जाता है। जैसे – ‘अहं गच्छामि’ इस वाक्य में एकवचन कर्ता, ‘अहम्’ तथा एकवचन की क्रिया ‘गच्छामि’ का प्रयोग किया गया है।

(ब) द्विवचन-दो व्यक्ति अथवा वस्तुओं का बोध कराने के लिए द्विवचन का प्रयोग होता है। जैसे-‘आवाम्’ तथा क्रिया ‘पठावः’ दोनों ही द्विवचन में प्रयुक्त हैं।

(स) बहुवचन – तीन या तीन से अधिक व्यक्ति अथवा वस्तुओं का बोध कराने के लिये बहुवचन का प्रयोग किया जाता है। जैसे- ‘वयम् पठामः’ इस वाक्य में अनेक का बोध होता है। अतः कर्ता ‘वयम्’ तथा क्रिया ‘पठाम:’ दोनों ही बहुवचन में प्रयुक्त हैं।

 

(4) लिंग – संस्कृत में लिंग तीन होते हैं

(अ) पुल्लिंग – जो शब्द पुरुष-जाति का बोध कराता है, उसे पुल्लिंग कहते हैं। जैसे ‘रामः का गच्छति’ (राम काशी जाता है) में ‘राम’ पुल्लिंग है।

(ब) स्त्रीलिंग – जो शब्द स्त्री-जाति का बोध कराये, उसे स्त्रीलिंग कहते हैं। जैसे – गीता गृहं गच्छति’ (गीता घर जाती है।) इस वाक्य में ‘गीता’ स्त्रीलिंग है।

(स) नपुंसकलिंग–जो शब्द नपुंसकत्व (न स्त्री, न पुरुष) का बोध कराये, उसे नपुंसक-लिंग कहते हैं। जैसेधनम्, वनम्, फलम्, पुस्तकम, ज्ञानम्, दधि, मधु आदि।

 

(5) धातु – क्रिया अपने मूल रूप में धातु कही जाती है।

  • जैसे – गम् = जाना, हस् = हँसना। कृ = करना, पृच्छ् = पूछना। ‘भ्वादयो धातवः’ सूत्र के अनुसार क्रियावाची – ‘भू’, ‘गम्’, ‘पद्’ आदि की धातु संज्ञा होती है।

Hindi to Sanskrit Anuwad PDF ( हिन्दी से संस्कृत अनुवाद )

(6) लकार – लकार ये क्रिया की विभिन्न अवस्थाओं तथा कालों ( भूत, भविष्य, वर्तमान) का बोध कराते हैं। लकार दस हैं, इनमें पाँच प्रमुख लकारों का विवरण निम्नवत् है :

(क) लट् लकार (वर्तमान काल) – इस काल में कोई भी कार्य प्रचलित अवस्था में ही रहता है। कार्य की समाप्ति नहीं होती। वर्तमान काल में लट् लकार का प्रयोग होता है। इसे काल में वाक्य के अन्त में ‘ता है’, ‘ती है’, ‘ते हैं’ का प्रयोग होता है जैसे

  • राम पुस्तक पढ़ता है। (रामः पुस्तकं पठति ।)
  • बालक हँसती है। (बालकः हसति ।)
  • हम गेंद से खेलते हैं। (वयं कन्दुकेन क्रीडामः।)
  • छात्र दौड़ते हैं। (छात्रा: धावन्ति ।)
  • गीता घर जाती है। (गीता गृहं गच्छति ।)

 

(ख) लङ् लकार (भूतकाल) – जिसमें कार्य की समाप्ति हो जाती है, उसे भूतकाल कहते हैं। भूतकाल में लङ लकार का प्रयोग होता है। जैस-

  • राम गाँव गया। (राम: ग्रामम् अगच्छत् ।)
  • मैंने रामायण पढ़ी। (अहम् रामायणम् अपठम्।)
  • मोहन वाराणसी गया। (मोहन: वाराणीसम् अगच्छत् ।)
  • राम राजा हुए। (रामः राजा अभवत् ।)
  • उसने यह कार्य किया। (सः इदं कार्यम् अकरोत् ।)

 

(ग) लृट् लकार (भविष्यत् काल) – इसमें कार्य आगे आने वाले समय में होता है। इस काल के सूचक वर्ण गा, गी, गे आते हैं। जैसे

  • राम आयेगा। (रामः आगमिष्यति ।)
  • मोहन वाराणसी जायेगी। (मोहन: वाराणस गमिष्यति।)
  • वह पुस्तक पढ़ेगा। (सः पुस्तकं पठिष्यति ।)
  • रमा जल पियेगी। (रमा जलं पास्यति ।)।

Hindi to Sanskrit Anuwad PDF ( हिन्दी से संस्कृत अनुवाद )

(घ) लोट् लकार (आज्ञार्थक) – इसमें आज्ञा या अनुमति का बोध होता है। आशीर्वाद आदि के अर्थ में भी इस लकार का प्रयोग होता है। जैसे

  • वह विद्यालय जाये। (सः विद्यालयं गच्छतु।)
  • तुम घरं जाओ। (त्वं गृहं गच्छ।)
  • तुम चिरंजीवी होओ। (त्वं चिरंजीवी भव।)
  • राम पुस्तक पढ़े। (रामः पुस्तकं पठतु ।)
  • जल्दी आओ। (शीघ्रम् आगच्छ।) ।

 

(ङ) विधिलिङ लकार – ’चाहिए’ के अर्थ में इस लकार का प्रयोग किया जाता है। इससे निमन्त्रण, आमन्त्रण तथा सम्भावना आदि का भी बोध होता है। जैसे

  • उसे वहाँ जाना चाहिए। (सः तत्र गच्छेत् ।)
  • तुम्हें अपना पाठ पढ़ना चाहिए। (त्वं स्वपीठं पठेः।)
  • मुझे वहाँ जाना चाहिए। (अहं तत्र गच्छेयम्।)

 

हिन्दी से संस्कृत में अनुवाद करते समय सर्वप्रथम कर्ता को खोजना चाहिए। कर्ता जिस पुरुष एवं वचन का हो, उसी पुरुष एवं वचन की क्रिया भी प्रयोग करनी चाहिए।

  • कर्ता – कार्य करने वाले को कर्ता कहते हैं। जैसे-‘देवदत्तः पुस्तकं पठति’ यहाँ पर पढ़ने का काम करने वाला देवदत्त है। अतः देवदत्त कर्ता है।
  • कर्म – कर्ता जिस काम को करे वह कर्म है। जैसे – ‘भक्त: हरि भजति’ में भजन रूपी कार्य करने वाला भक्त है। वह हरि को भजता है। अतः हरि कर्म है।
  • क्रिया-जिससे किसी कार्य का करना या होना प्रकट हो, उसे क्रिया कहते हैं। जैसे – जाना, पढ़ना, हँसना, खेलना आदि क्रियाएँ हैं।


क्र.सं.विषय-सूचीDownload PDF
1वर्ण विचार व उच्चारण स्थानClick Here
2संधि – विच्छेदClick Here
3समासClick Here
4कारक एवं विभक्तिClick Here
5प्रत्ययClick Here
6उपसर्गClick Here
7शब्द रूपClick Here
8धातु रूपClick Here
9सर्वनामClick Here
10विशेषण – विशेष्यClick Here
11संख्या ज्ञानम्Click Here
12अव्ययClick Here
13लकारClick Here
14माहेश्वर सूत्रClick Here
15समय ज्ञानम्Click Here
16विलोम शब्दClick Here
17संस्कृत सूक्तयClick Here
18छन्दClick Here
19वाच्यClick Here
20अशुद्धि संषोधनClick Here
21संस्कृत अनुवादClick Here
22संस्कृत शिक्षण विधियांClick Here
23Download Full PDFClick Here

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