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Sanskrit Vyakaran Samas PDF

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Sanskrit Vyakaran Samas PDF

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1 Sanskrit Vyakaran Samas PDF

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Sanskrit Vyakaran Samas PDF ( संस्कृत व्याकरण समास ) : दोस्तो आज इस पोस्ट मे संस्कृत व्याकरण (Sanskrit Grammar) के समास टॉपिक का विस्तारपूर्वक अध्ययन करेंगे । यह पोस्ट सभी शिक्षक भर्ती परीक्षा व्याख्याता (School Lecturer), द्वितीय श्रेणी अध्यापक (2nd Grade Teacher), REET 2021, RPSC, RBSE REET, School Lecturer, Sr. Teacher, TGT PGT Teacher, 3rd Grade Teacher आदि परीक्षाओ के लिए महत्त्वपूर्ण है । अगर पोस्ट पसंद आए तो अपने दोस्तो के साथ शेयर जरूर करे ।

Sanskrit Vyakaran Samas PDF ( संस्कृत व्याकरण समास )

समास – संयुक्त करने को समास कहते हैं अथवा अनेक पदों का मिलकर एक पद होना समास है।

समास का पहला पद ‘पूर्वपद’ तथा दूसरा पद ‘उत्तरपद’ कहलाता है। जब दो या दो से अधिक पदों का मेल करके और बीच की कारक सम्बन्धी विभक्ति को हटाकर एक नवीन पद बनाया जाता है तो उसे समास करना कहते हैं।

समास के भेद संस्कृत भाषा में समास के मुख्य रूप से चार भेद हैं।

  1. अव्ययीभाव समास
  2. तत्पुरुष समास
  3. द्वन्द्व समास
  4. बहुव्रीहि समास

अव्ययीभाव समास – सूत्र – ‘पूर्वपदप्रधानोऽव्ययीभावः’

जिस समास में पहला पद प्रधान होता है और सम्पूर्ण शब्द क्रिया-विशेषण होकर अव्यय की भाँति प्रयुक्त होता है, वह अव्ययीभाव समास होता है;

  • समास का प्रथम शब्द अव्यय और दूसरा संज्ञा शब्द होता है।
  • अव्यय पदार्थ अर्थात् पूर्वपदार्थ की प्रधानता होती है।
  • समास के दोनों पद मिलकर अव्यय होते हैं।
  • अव्ययीभाव समास नपुंसकलिंग के एकवचन में होता है।

अव्ययीभाव समास का मुख्य पाणिनि सूत्र

“अव्ययं विभक्तिसमीपसमृद्धिव्यृद्ध्यर्थाभावात्ययासं प्रति शब्द प्रादुर्भाव।

पश्चाद्यथाऽऽनुपूर्व्ययौगपद्यसादृश्यसम्पत्तिसाकल्यान्तवचनेषु ।”

अर्थ – विभक्ति, सामीप्य, समृद्धि, व्यृद्धि (ऋद्धि का अभाव), अर्थाभाव, अत्यय (अतीत होता), असम्पति (वर्तमान काल में यक्त न होना), शब्द प्रादुर्भाव (प्रसिद्धि), पश्चात् यथार्थ, आनुपर्थ्य (अनुक्रम), यौगपद्य (एक ही समय में होना), सादृश्य, सम्पत्ति (आत्मानुरूपता), साकल्य (सम्पूर्णता) और अन्त–इन अर्थों में से किसी भी अर्थ में वर्तमान अव्यय का समर्थ सुबन्त के साथ समास होता है।

अव्ययीभाव समास के उदाहरण

  1. विभक्ति – सप्तमी विभक्ति के अर्थ मे ‘अधि’ अव्यय का प्रयोग । उत्तर पद मे सप्तमी विभक्ति के आगे ‘इति’ शब्द प्रयोग ।
  • हरौ इति = अधिहरि (हरि में)।
  • आत्मनि इति = अध्यात्म (आत्मा में)।
  1. समीपउप के साथ सुबंत का समास । षष्ठी विभक्ति मे ‘समीपम्’ शब्द का प्रयोग ।
  • नद्याः समीपम् = उपनदम् (नदी के समीप)
  • गङ्गायाः समीपम् = उपगङ्गम् (गंगा के समीप)
  • नगरस्य समीपम् = उपनगरम् (नगर के समीप)
  1. समृद्धि – ‘सु’ का प्रयोग । षष्ठी विभक्ति मे ‘समृद्धि’ शब्द प्रयोग ।
  • मद्राणां समृद्धि = सुमन्द्रम् (मद्रवासियों की समृद्धि)
  • भिक्षाणां समृद्धि = सुभिक्षम् (भिक्षाटन की समृद्धि)
  1. व्यृद्धि – नाश के अर्थ मे दूर अव्यय का प्रयोग । षष्ठी विभक्ति मे ‘व्यृद्धि’ शब्द का प्रयोग ।
  • यवनानां व्युद्धि = दुर्यवनम् (चवनों की दुर्गति)
  • भिक्षाणां व्वृद्धि = दुर्भिक्षम् (भिक्षा का अभाव)
  1. 5. अर्थाभावनिर अव्यय का प्रयोग । षष्ठी विभक्ति मे ‘अभाव’ शब्द का प्रयोग ।
  • मक्षिकाणाम् अभाव = निर्मक्षिकम् (मक्खियों का अभाव)
  • विघ्नानाम् अभाव = निर्विघ्नम् (विघ्नों का अभाव) ।
  1. अत्ययअति अव्यय का प्रयोग । षष्ठी विभक्ति मे ‘अत्ययः’ शब्द का प्रयोग ।
  • हिमस्य अत्ययः = अतिहिमम् (हिम का नाश)
  • रोगस्य अत्ययः = अतिरोगम् (रोग का नाश)
  1. असंप्रतिअति का प्रयोग ।
  • निद्रा सम्प्रति न युज्यते = अतिनिद्रम् (इस समय नींद उचित नहीं)
  • स्वप्नः सम्प्रति न युज्यते = अतिस्वप्नम् (इस समय सोना उचित नहीं)
  1. शब्द – प्रादुर्भावइति अव्यय का प्रयोग । षष्ठी विभक्ति मे ‘प्रकाशः/ प्रादुर्भाव:’ शब्द का प्रयोग ।
  • हरि शब्दस्य प्रकाशः = इतिहरि (‘हरि’ शब्द का प्रकट होना)
  • विष्णुशब्दस्य प्रकाशः = इतिविष्णु (‘विष्णु’ शब्द का प्रकट होना)
  1. पश्चात्अनु अव्यय का प्रयोग । षष्ठी विभक्ति मे ‘पश्चात्’ शब्द का प्रयोग ।
  • विष्णोः पश्चात् = अनुविष्णु (विष्णु के पीछे)
  • रामस्य पश्चात् = अनुरामम् (राम के पीछे)
  1. यथाअनु अव्यय का प्रयोग । षष्ठी विभक्ति मे ‘योग्यम्’ शब्द का प्रयोग ।
  • रूपस्य योग्यम् = अनुरूपम् (रूप के योग्य)
  • गुणस्य योग्यम् = अनुगुणम् (गुण के योग्य).
  1. वीप्साप्रति अव्यय का प्रयोग । द्वितीय विभक्ति को दो बार लिखकर ‘प्रति’ शब्द का प्रयोग ।
  • गृहम् गृहम् प्रति = प्रतिगृहम् (घर-घर)
  • दिनम् दिनम् प्रति = प्रतिदिनम् (दिन-दिन) ।
  1. अनतिक्रम्ययथा अव्यय का प्रयोग । द्वितीय विभक्ति मे ‘अनतिक्रम्य’ शब्द का प्रयोग ।
  • शक्तिम् अनतिक्रम्य = यथाशक्तिम् (शक्ति भर)
  • बलम् अनतिक्रम्य = यथाबलम् (बल भर)
  1. सादृश्यम्सह अव्यय का प्रयोग । षष्ठी विभक्ति मे ‘सादृश्यम्’ शब्द का प्रयोग ।
  • हरेः सादृश्यम् = सहरि (हरि की समानता)
  • रूपस्य सादृश्यम् = सरूपम् (रूप की समानता)
  1. आनुपूर्व्यअनु अव्यय का प्रयोग । षष्ठी विभक्ति मे ‘आनुपूर्व्येण’ शब्द का प्रयोग ।
  • ज्येष्ठस्य आनुपूर्व्येण = अनुज्येष्ठम् (ज्येष्ठ के क्रम से)
  • वर्णस्य आनुपूर्व्येण = अनुवर्णन् (वर्ण के क्रम से)
  1. यौगपद्यसह अव्यय का प्रयोग । तृतीया विभक्ति मे ‘युगपत् ‘ शब्द का प्रयोग ।
  • चक्रेण युगपत् = सचक्रम् (चक्र के साथ)
  • हर्षेण युगपत् = सहर्षम् (हर्ष के साथ)
  1. सम्पत्तिसह अव्यय का प्रयोग । षष्ठी विभक्ति मे ‘सम्पत्तिः’ शब्द का प्रयोग ।
  • क्षत्राणां सम्पत्तिः = सुक्षत्रम् (राजाओं की सम्पत्ति)
  • क्षत्रियाणां सम्पत्तिः = सुक्षत्रियम् (क्षत्रियों की सम्पत्ति)
  1. साकल्यसह अव्यय का प्रयोग । षष्ठी विभक्ति मे ‘अपि अपरित्यज्य’ शब्द का प्रयोग ।
  • तृणम् अपि अपरित्यज्य = सतृणम् (तिनके को बिना छोड़े)

Sanskrit Vyakaran Samas PDF ( संस्कृत व्याकरण समास )

तत्पुरुष समास – ‘उत्तरपदार्थप्रधानः तत्पुरुषः

समास में उत्तरपद के अर्थ की प्रधानता रहती है।

तत्पुरुष समास के भेद

  • व्यधिकरण तत्पुरुष
  • समानाधिकरण तत्पुरुष
  • व्यधिकरण तत्पुरुष समास

क. व्यधिकरण तत्पुरुष – वि + अधिकरण = व्यधिकरण पूर्व पद में जो विभक्तियाँ लगी होती हैं, वे भिन्न भिन्न होती हैं। इन्हीं के नाम पर इसमें आनेवाले तत्पुरुषों के नाम रखे गए हैं। ये 6 प्रकार के होते हैं-

  • द्वितीया तत्पुरुष
  • तृतीया तत्पुरुष
  • चतुर्थी तत्पुरुष
  • पंचमी तत्पुरुष
  • षष्ठी तत्पुरुष
  • सप्तमी तत्पुरुष
  1. द्वितीया तत्पुरुष – इसमें प्रथम पद में द्वितीया विभक्ति रहती है, जो समास होने के बाद लुप्त हो जाती है।
  • श्रितः, अतीतः, पतितः, अत्यस्तः, प्राप्त, आपन्नः, आरुढ़ः मे द्वितीय विभक्ति का प्रयोग ।

द्वितीया तत्पुरुष समास के उदाहरण एवं उनके हिन्दी अर्थ

समास-विग्रहसमस्तपदहिन्दी अर्थ
कृष्णश्रितःकृष्णं श्रितः(कृष्ण को प्राप्त)
दुःखातीतःदुःखम् अतीतः(दुःख को पार कर गया हुआ)
कूपपतितःकूपम् पतितः(कुएँ में गिरा हुआ)
तुहिनात्यस्तःतुहिनम् अत्यस्तः(बर्फ में फंसा हुआ)
जीवनप्राप्तःजीवनम् प्राप्त(जीवन को प्राप्त)
सुखापन्नःसुखम् आपन्नः(सुख को पाया हुआ)
गर्तपतितःगर्त्तम् पतितः(गड्ढे में गिरा हुआ)
अस्तंगतःअस्तम् गतः(अस्त को प्राप्त)
धनापन्नःधनम् आपन्नः(धन को प्राप्त)
ग्रामयमी –ग्रामं गमीगाँव को जानेवाला)
कष्टश्रितःकष्टं श्रितः
खट्वारूढ़ःखट्वाम् आरुढ़ःखाट पर बैठा हुआ)
मासगम्यःमासं गम्यः।
वर्षभोग्यःवर्ष भोग्यः
स्वायंकृतिःस्वयं कृतस्यापत्यम्
मासप्रमितःमासं प्रमितः
मुहूर्तसुखम्मुहूर्त सुखम्

Sanskrit Vyakaran Samas PDF ( संस्कृत व्याकरण समास )

  1. तृतीया तत्पुरुष समास – तृतीयान्त सुबन्त पद का तत्कृत गुणवाचक शब्द के साथ और अर्थ के साथ समास होता है।
  • ‘कर्तृकरणे कृता बहुलम्’  – यदि पहला पद कर्ता हो और तृतीया विभक्ति से युक्त हो या पहला पद करण कारक में हो और दूसरा पद कृदन्त तो इन दोनों का तृतीया तत्पुरुष समास होता है। जैसे –

तृतीया तत्पुरुष समास के उदाहरण एवं उनके हिन्दी अर्थ

समास-विग्रहसमस्तपदहिन्दी अर्थ
व्यासेन कृतम्व्यासकृतम्व्यास द्वारा किया
शंकुलया खण्डःशंकुलाखण्डःशंकुल (सरीते) से खण्ड किया
धान्येन अर्थःधान्यार्थःअन्न से मतलव
बाणेन बेधःबाणवेधःबाण से वेधा हुआ
दानेन अर्थःदानार्थःदान से प्रयोजन
मासेन पूर्वःमासपूर्वःमाह से पहले
पित्रा सदृशःपितृसदृशःपिता के समान
भ्रात्रा समःभ्रातृसमःभाई के समान
ज्ञानेन हीनःज्ञानहीनःज्ञान से हीन ।
वाचा कलहःवाक्कलहःबाताबाती / गाली-गलौज
आचारेण निपुणःआचारनिपुणःआचार से निपुण
गुडेन मिश्रःगुडमिश्रःगुड़ से मिला हुआ ।
आचारेण श्लक्ष्णःआचारश्लक्ष्णःआचरण में सहज
हरिणा त्रातःहरित्रातःहरि के द्वारा रक्षित
धर्मेण रक्षितःधर्मरक्षितःधर्म से रिक्षत
नखैः भिन्नःनखभिन्नःनखों से भिन्न किया गया
सर्पण दष्तःसर्पदष्तःसाँप से डॅसा गया
मासेन अवरःमासावरःएक मास छोटा
मात्रा सदृशःमातृसदृशःमाता के समान

Sanskrit Vyakaran Samas PDF ( संस्कृत व्याकरण समास )

  1. चतुर्थी तत्पुरुष समास – इस समास में पहला पद चतुर्थी विभक्ति में रहता है।
  • ‘चतुर्थीतदर्थार्थबलिहितसुखरक्षितैः’ – चतुर्थ्यन्त सुबन्त पदों का ‘तदर्थ’ तथा ‘हित’ के अर्थ में समास होता है।

चतुर्थी तत्पुरुष समास के उदाहरण एवं उनके हिन्दी अर्थ

समास-विग्रहसमस्तपदहिन्दी अर्थ
यूपाय दारुयूपदारुयूप के लिए लकड़ी
रन्धनाय स्थालीरन्धनस्थालीराँधने के लिए थाली
भूताय बलिःभूतबलिःजीव के लिए बलि
गवे हितम्गोहितम्गाय के लिए भलाई ।
पित्रे सुखमपितृसुखम्पिता के लिए सुख
गवे रक्षितम्गोरक्षितम्गाय के लिए रखा गया ।
द्विजाय सूपम्द्विजार्थसूपःद्विज के लिए दाल

Sanskrit Vyakaran Samas PDF ( संस्कृत व्याकरण समास )

  1. पंचमी तत्पुरुष समास – इस समास में पहला पद पंचमी विभक्ति युक्त होता है।
  • ‘पंचमीभयेन’ भयार्थक शब्दों के योग में पंचम्यन्त शब्दों का समास होने पर पंचमी तत्पुरुष समास होता है।
  • ‘अपेतापोठमुक्तपतितापत्रस्तैरल्पशः’ – अपेतादि शब्दों के साथ पंचमी तत्पुरुष समास होता है। जैसे-

पंचमी तत्पुरुष समास के उदाहरण व हिन्दी अर्थ

समास-विग्रहसमस्तपदहिन्दी अर्थ
प्रेतात् भीतिःप्रेतभीतिःप्रेत से डर
सर्पात् भीतःसर्पभीतःसर्प से डरा हुआ
व्याघ्रात भीतःव्याघ्रभीतःबाघ से डर
गृहात् निर्गतःगृहनिर्गतःघर से निकला हुआ
आचारात् भ्रष्टःआचारभ्रष्टतः।आचारण से भ्रष्ट
धर्मात् च्युतःधर्मच्युतः ।धर्म से च्युत ।
वृक्षात् पतितःवृक्षपतितःवृक्ष से गिरा हुआ
बन्धनात् मुक्तःबंधनमुक्तःबंधन से मुक्त
वृकात् भीतिःवृकभीतिःभेड़िये से भय ।
कल्पनायाः अपोठःकल्पनापोठःकल्पना से शून्य
स्वर्गात् पतितःस्वर्गपतितःस्वर्ग से पतित
तरंगात् अपत्रस्तःतरंगापत्रस्तःतरंग से घबराया हुआ

Sanskrit Vyakaran Samas PDF ( संस्कृत व्याकरण समास )

  1. षष्ठी तत्पुरुष समास – ‘षष्ठी’- षष्ठ्यन्त सुबन्त का समर्थ सुबन्त के साथ समास होता है। परन्तु; ‘यतश्च निर्धारणम्’ सूत्र से निर्धारण में होनेवाली षष्ठी विभक्ति का समास नहीं होता।

षष्ठी तत्पुरुष समास के उदाहरण व हिन्दी अर्थ

समास-विग्रहसमस्तपदहिन्दी अर्थ
गजानां राजागजराजःगजों का राजा
राष्ट्रस्य पतिःराष्ट्रपतिःराष्ट्र का पति / स्वामी।
राज्ञः पुरुषःराजपुरुषःराजा का पुरुष
राज्ञः पुत्रःराजपुत्रःराजा का पुत्र
गंगायाः जलम्गंगाजलम्गंगा का जल
देवानां भाषादेवभाषादेवभाषा
पशूनां पतिःपशुपतिःपशुओं का पति / स्वामी
द्विजानां राजाद्विजराजःद्विजों का राजा
पाठस्य शालापाठशालापाठ का शाला / घर
विद्यायाः आलयःविद्यालयःविद्या का आलय /घर
सूर्यस्य उदयःसूर्योदयःसूर्य का उदय
जगतः अम्बाजगदम्बाजगत् की अम्बा / माता
नराणाम् इन्द्रःनरेन्द्रःनरों का द्वन्द्र राजा
मातुः जंघामातृजंघामाता की जाँघ
मूषिकाणां राजामूषिकराजःचूहों का राजा
कपोतानाम् राजाकपोतराजःकबूतरों का राजा
काल्पाः दासःकालिदासःकाली का दास
विप्रस्य पुत्रःविप्रपुत्रःविप्र / ब्राह्मण का पुत्र
नद्याः तटम्नदीतटम्नदी का तट
जलस्य प्रवाहःजलप्रवाहःजल का प्रवाह
रक्षसां सभारक्षः सयम्राक्षसों की सभा
धर्मस्य सभाधर्मसभाधर्म की सभा
विदुषां सभाविद्वत्सभाविद्वानों की सभा

Sanskrit Vyakaran Samas PDF ( संस्कृत व्याकरण समास )

  1. सप्तमी तत्पुरुष समास – इसमें पूर्वपद सप्तम्यन्त रहता है। ‘सप्तमी शौण्डैः – सप्तम्यन्त शौण्ड (चालाक / धूर्त / निपुण) आदि शब्दों के साथ सदा सप्तमी तत्पुरुष समास होता है।

सप्तमी तत्पुरुष समास के उदाहरण व हिन्दी अर्थ

समास-विग्रहसमस्तपदहिन्दी अर्थ
अक्षेषु शौण्डःअक्षशौण्डःजुए में धूर्त / निपुण
शास्त्रे प्रवीणःशास्त्रप्रवीणःशास्त्र में प्रवीण
सभायां पण्डितःसभापंडितःसभा में पंडित
प्रेमिण धूर्त्तःप्रेमधूर्तःप्रेम में धूर्त
कर्मणि कुशलःकर्मकुशलःकर्म में कुशल
दाने वीरःदानवीरःदान में वीर
व्याकरणे पटुःव्याकरणपटुःव्याकरण में निपुण
कलायां कुशलःकलाकुशलःकला में कुशल
व्यवहारे चपलःव्यवहारचपलःव्यवहार में चपल
काव्ये प्रवीणःकाव्य प्रवीणःकाव्य में प्रवीण
रणे पंडितःरणपंडितःरण में पंडित

Sanskrit Vyakaran Samas PDF ( संस्कृत व्याकरण समास )

कर्मधारय समास – सूत्र- ‘विशेषणं विशेष्येण बहुलम्।

जब तत्पुरुष समास के दोनों में एक विभक्ति अर्थात् समान विभक्ति होती है तब वह समानाधिकरण तत्पुरुष समास कहा जाता है। यही समास ‘कर्मधारय’ इस नाम से जाना जाता है।

  • यह तत्पुरुष समास का उपभेद है। इसका पूर्वपद विशेषण और उत्तरपद विशेष्य होता है। विग्रह करते समय विशेष्य के लिंग, विभक्ति और वचन ही विशेषण में भी प्रयुक्त होते हैं। विशेष्य के लिंग, विभक्ति और वचन के अनुसार ही तत्, एतत् तथा इदम् के रूपों का प्रयोग होता है।

 कर्मधारय समास के उदाहरण एवं उनके हिन्दी अर्थ

समास-विग्रहसमस्तपदहिन्दी अर्थ
कृष्णः सर्पःकृष्णसर्पःकाला साँप
महान् पुरुषःमहापुरुषःमहान् पुरुष
सत् वैद्यःसवैद्यःअच्छा वैद्य
महत् काव्यम्महाकाव्यम्महाकाव्य
महान् जनःमहाजनःबड़े आदमी
महान् देवःमहादेवःमहादेव
महान् कविःमहाकविःमहाकवि
नीलम् उत्पलम्ःनीलोत्पलम्नीला कमल
नीलम् कमलमुःनीलकमलम्नीला कमल
श्वेतः अम्बरःश्वेताम्बरःश्वेत अम्बर
महान् राजामहाराजःमहाराज
प्रियः सखाःप्रियसखःप्रिय सखा
अपरः अर्धःपश्चार्धःबाद का आधा
घनः इव श्यामःघनश्यामःघनश्याम
विद्युत् इव चंचलाविद्युच्चञ्चलाबिजली की तरह चंचल
नवनीतम् इव कोमलम्नवनीतकोमलम्नवनीत मक्खन के समान कोमल
चन्द्रः इव उज्ज्वलःचन्द्रोज्ज्वलःचन्द्र-सा उज्ज्वल
नरः सिंहः इवनृसिंहःनरों में सिंह के समान
पुरुषः व्याघ्रः इवपुरुषव्याघ्रःपुरुषों में बाघ के समान
नरः शार्दूलः इवनरशार्दूलःनरों में चीते के समान
अधरः पल्लवः इवअधरपल्लवःअधर पल्लव के समान
कुत्सितः सखाकिंसखाबुरा सखा / मित्र
कुत्सितः प्रभुःकिंप्रभुःबुरे मालिक
कुत्सितः नरःकिन्नरःबुरे आदमी
कुत्सितः पुरुषःकापुरुषःबुरा पुरुष
कुत्सितः अश्वःकदश्वःखराब घोड़ा
कुत्सितम् अन्नम्कदन्नम्खराब अन्न/ अनाज
करः एव कमलम्करकमलम्कर जो कमल है
कमलम् एव मुखम्कमलमुखम्मुख जो कमल है
नीलश्च लोहितश्चनीललोहितःनीला और लाल
सुकेशी भार्यासुकेश भार्या*
कृष्ण चतुर्दशीकृष्णचतुर्दशी*
सुन्दरी नारीसुन्दरनारी*
विश्वे देवाविश्वदेवाः*
मधुरम् वचनम्मधुरवचनम्*
नवम् अन्नम्नवान्नम्नया अनाज
उष्णम् उदकम्उष्णोदकम्गरम जल
ज्ञानम् एवं धनन्ज्ञानधनम्ज्ञान ही धन है
मानसम् एव विहंगःमानसविहंगःमानस जो विहंग है

Sanskrit Vyakaran Samas PDF ( संस्कृत व्याकरण समास )

द्विगु समास – ‘संख्यापूर्वो द्विगु’

इस पाणिनीय सूत्र के असार जब कर्मधारय समास का पूर्वपद संख्यावाची और उत्तर पद संज्ञावाची होता है तब वह द्विगु समास कहा जाता है। इस समास से समाहार , अर्थात् समूह का बोध होता है और समस्त पद नपुंसकलिंग एकवचन होता है।

  • यह समास समूह अर्थ में होता है।
  • समस्त पद सामान्यतया नपुंसकलिंग एकवचन में अथवा स्त्रीलिंग एकवचन में होता है।
  • इसके विग्रह में षष्ठी विभक्ति का प्रयोग किया जाता है।
समास-विग्रहसमस्तपदहिन्दी अर्थ
त्रयाणां लोकानां समाहारःत्रिलोकतीनों लोक
चतुर्णा युगानां समाहारःचतुर्युगीचार युगों का समूह
त्रयाणां भुवनानां समाहारःत्रिभुवनम्तीन भुवनों का समाहार
पञ्चानां वटानां समाहारःपञ्चवटीपाँच वटों का समाहार
सप्तानां शतानां समाहारःसप्तशतीसात सैकड़ों का समाहार
अष्टानाम् अध्यायानां समाहारःअष्टाध्यायीआठ अध्यायों का समाहार
त्रयाणा फलानां समाहारःत्रिफलातीन फलों का समाहार
पञ्चानां पात्राणां समाहारःपञ्चपायम्पाँच पात्रों का समाहार
सप्तानाम् अनाम् समाहारःसप्ताहःसात दिनों का समाहार
दशानाम् आननानां समाहारःदशाननःदस आननों का समाहार
(‘रावण’ के अर्थ में बहुवीहि समास होगा।)
पंचानां शतानां समाहारःपंचशतीपाँच सौओं का समाहार
तिसृणां गंगानाम् समाहारःत्रिगंगम्तीन गंगाओं का समाहार

Sanskrit Vyakaran Samas PDF ( संस्कृत व्याकरण समास )

नञ् तत्पुरुष समास

नञ् तत्पुरुष समास निषेधात्मक अर्थ में प्रयुक्त होता है। नञ् के स्थान पर ‘अ’ अथवा ‘अन्’ होता है।

नञ् समास के उदाहरण‘न’ के बाद यदि व्यंजन वर्ण हो तो न का ‘अ’ और स्वर वर्ण रहे तो ‘अन’ हुआ करता है। जैसे-

  • न स्वस्थः = अस्वस्थः । (व्यंजन रहने के कारण ‘अ’ हुआ ।)
  • न सिद्धः = असिद्धः । (व्यंजन रहने के कारण ‘अ’ हुआ ।)
  • न ब्राह्मणः = अब्राह्मणः । (व्यंजन रहने के कारण ‘अ’ हुआ ।)
  • न अश्वः = अनश्वः । (स्वर रहने के कारण ‘अन्’ हुआ।)
  • न ईश्वरः = अनीश्वरः । (स्वर रहने के कारण ‘अन्’ हुआ।)
  • न भगतः = अनागतः । (स्वर रहने के कारण ‘अन्’ हुआ।)
  • न अर्थः = अनर्थः । (स्वर रहने के कारण ‘अन्’ हुआ।)

Sanskrit Vyakaran Samas PDF ( संस्कृत व्याकरण समास )

द्वन्द्व समास उभयपदार्थ-प्रधानः द्वन्द्वः

द्वन्द्व समास में परस्पर दो पदों के मध्य में ‘च’ आता है, इसलिए द्वन्द्व समास उभय पदार्थ प्रधान होता है। द्वन्द्व समास में समस्त पद प्रायः द्विवचन में होता है। उभयपदार्थ-प्रधानः द्वन्द्वः। जहाँ पूर्व पदार्थ और उत्तर पदार्थ दोनों पदार्थों की प्रधानता होती है वहाँ द्वन्द्व समास होता है। द्वन्द्व समास तीन प्रकार का होता है

  • इतरेतर द्वन्द्व,
  • समाहार द्वन्द्व
  • एकशेष द्वन्द्व
  1. इतरेतर द्वन्द्वः – जिस द्वन्द्व समास में भिन्न-भिन्न पद अपने वचनादि से मुक्त होकर क्रिया के साथ संबद्ध होते हैं। जैसे-

इतरेतर द्वन्द्व समास के उदाहरण

  • कृष्णश्च अर्जुनश्च = कृष्णार्जुनौ
  • हरिश्च हरश्च = हरिहरी
  • रामश्च कृष्णश्च = रामकृष्णौ
  • रामः च लक्ष्मणः च = रामलक्ष्मणौ
  • सुखं च दुःखं च = सुखदुखे
  • पुण्यः च पापं च = पुण्यपापे
  • जाया च पतिः च = जायापती/जम्पती/दम्पती
  • पिता च पुत्रश्च = पितापुत्री
  • पुत्रः च कन्या च = पुत्रकन्ये
  • स्त्री च पुत्रः च राज्यं च = स्त्रीपुत्रराज्यानि
  • मृगश्च काकश्च = मृगकाको
  1. एकशेषद्वन्दः – इसमें एक ही पद शेष रहता है अन्य सभी लुप्त हो जाते हैं। जैसे-

एकशेषद्वन्दः समास के उदाहरण

  • रामः च रामः च = रामौ (राम और राम)
  • हंसः च हंसी च = हंसी।
  • बालकः च बालिका च = बालको
  • पुत्रः च पुत्री च = पुत्री
  • भ्राता च स्वसा च = भ्रातरौ
  • पुत्रः च दुहिता च = पुत्री
  • माता च पिता च = पितरौ
  • श्वश्रूः च श्वशुरश्च = श्वशुरौ
  1. समाहार द्वन्द्वः – इस समास में एक ही तरह के कई पद मिलकर समाहार (समूह) का रूप धारण कर लेते हैं – ‘इन्द्धश्च प्राणितूर्यसेनाङ्गानाम्’ ।
  • समाहार द्वन्द्व एकवचन और नपुंसकलिंग में होता है।
  • प्राणि, वाद्य, सेनादि के अंगों का समाहार द्वन्द्व एकवचन में होता है।
  • ‘स नपुंसकम्’ – एकवचन वाला यह द्वन्द्व समास नपुंसकलिंग में होता है।

समाहार द्वन्द्व समास के उदाहरण

  • पाणी च पादौ च तेषां समाहारः = पाणिपादम्।
  • मार्दङ्गिकश्च पाणविकश्च तथोः समाहारः = मार्दङ्गिपाणविकम्
  • रथिकाश्च अश्वारोहाश्च तेषां समाहारः = रथिकाश्वारोहम्।
  • अहिश्च नकुलश्च तयोः समाहारः = अहिनकुलम् ।
  • गौश्च व्याघ्रश्च तयोः समाहारः = गोव्याघ्रम् ।
  • मार्जाराश्च मूषिकाश्च तेषां समाहारः = मार्जारमूषिकम् ।
  • गङ्गा च शोणश्च तयोः समाहारः गंगाशोणम् ।
  • यूकाश्च लिक्षाश्च तासां समाहारः = यूकालिक्षम्।
  • दासश्च दासी च तयोः समाहारः = दासीदासम्
  • तक्षाः च अयस्काराश्च तयोः समाहारः = तक्षायस्कारम्।
  • छत्रं च उपानही च तेषां समाहारः = छत्रोपानहम्

Sanskrit Vyakaran Samas PDF ( संस्कृत व्याकरण समास )

बहुव्रीहि समास – ‘अन्यपदार्थप्रधानो बहुव्रीहि’

जिस समास में जब अन्य पदार्थ की प्रधानता होती है तब वह बहुव्रीहि समास कहा जाता है। अर्थात् जिस समास में न तो पूर्व पदार्थ की प्रधानता होती है न ही उत्तर पदार्थ की प्रधानता है अपितु दोनों पदार्थ मिलकर अन्य पदार्थ का बोध कराते हैं। समस्त पद का प्रयोग अन्य पदार्थ के विशेषण रूप में होता है।

(i) समानाधिकार-बहुव्रीहिः–जब समास के पूर्व पद और उत्तर पद में समान विभक्ति (प्रथमा विभक्ति) होती है तब वह समानाधिकरण बहुव्रीहि होता है। इसका विग्रह करते समय ‘यत्’ शब्द के द्वितीय, तृतीया आदि विभक्ति के रूपों का प्रयोग होता है और समस्त पद विशेषण का कार्य करता है। 

(ii) व्यधिकरण-बहुव्रीहिः –जब समास के पूर्व पद और उत्तर पद में अलग-अलग विभक्ति होती है तब वह ‘व्यधिकरण बहुव्रीहि’ समास होता है।

(iii) तुल्ययोगे बहुव्रीहिः – यहाँ ‘सह’ शब्द का तृतीया विभक्ति पद के साथ समास होता है।

Sanskrit Vyakaran Evam Sanskrit Shikshan Vidhiyan ( संस्कृत व्याकरण एवं संस्कृत शिक्षण विधियाँ )

क्र.सं.विषय-सूचीDownload PDF
1वर्ण विचार व उच्चारण स्थानClick Here
2संधि – विच्छेदClick Here
3समासClick Here
4कारक एवं विभक्तिClick Here
5प्रत्ययClick Here
6उपसर्गClick Here
7शब्द रूपClick Here
8धातु रूपClick Here
9सर्वनामClick Here
10विशेषण – विशेष्यClick Here
11संख्या ज्ञानम्Click Here
12अव्ययClick Here
13लकारClick Here
14माहेश्वर सूत्रClick Here
15समय ज्ञानम्Click Here
16विलोम शब्दClick Here
17संस्कृत सूक्तयClick Here
18छन्दClick Here
19वाच्यClick Here
20अशुद्धि संषोधनClick Here
21संस्कृत अनुवादClick Here
22संस्कृत शिक्षण विधियांClick Here
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2 thoughts on “Sanskrit Vyakaran Samas PDF”

  1. आपकी पोस्ट बहुत ही परिश्रमपूर्वक बनाई है और बहुत उपयुक्त है|

    क्या यह पोस्ट हम copy या download कर सकते हैं? पोस्ट में क ई PDF दिखाई देते हैं, किन्तु उनकी link नहीं activate होती है|

    इसे प्रकाशित करनेके लिये बहुत धन्यवाद

    कृष्णानन्द

    Reply
  2. नमस्ते |

    समासविचार में बहुव्रीहि के उदाहरण यदि आप देते तो बडी सुविधा होती और पोस्ट पूर्ण होता|

    पोस्ट के लिये धन्यवाद

    कृष्णानन्द

    Reply

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