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Sanskrit Vyakaran Vachya PDF

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Sanskrit Vyakaran Vachya PDF

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Sanskrit Vyakaran Vachya PDF ( संस्कृत व्याकरण वाच्य परिवर्तन ) : दोस्तो आज इस पोस्ट मे संस्कृत व्याकरण (Sanskrit Grammar) के वाच्य परिवर्तन टॉपिक का विस्तारपूर्वक अध्ययन करेंगे । यह पोस्ट सभी शिक्षक भर्ती परीक्षा व्याख्याता (School Lecturer), द्वितीय श्रेणी अध्यापक (2nd Grade Teacher), REET 2021, RPSC, RBSE REET, School Lecturer, Sr. Teacher, TGT PGT Teacher, 3rd Grade Teacher आदि परीक्षाओ के लिए महत्त्वपूर्ण है । अगर पोस्ट पसंद आए तो अपने दोस्तो के साथ शेयर जरूर करे ।

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Sanskrit Vyakaran Vachya PDF ( संस्कृत व्याकरण वाच्य परिवर्तन )

संस्कृत – भाषा में तीन वाच्य होते हैं–

(1) कर्तृवाच्य,

(2) कर्मवाच्य और

(3) भाववाच्य।

 

क्रिया के द्वारा कहा गया कथन का प्रकार वाच्य है। कर्तृ-कर्म-भाव में क्रिया द्वारा ही कहा जाता है। अत: क्रिया कर्तवाच्य, कर्मवाच्य तथा भाववाच्य में होती है।

 

  • “पठति’ यह कहते ही प्रश्न उठता है कि कः पठति ? (कौन पढ़ता है?)
  • इसके उत्तर रूप में कहा जाता है-‘कोऽपि पठनकर्ता पठति’ (कोई भी पढ़ने वाला पढ़ता है।)
  • इस प्रकार से यहाँ क्रिया से कर्ता सूचित होता है, अतः ‘पठति’ यह कर्तृवाच्य है।
  • दूसरे आधार पर ‘पठ्यते’ यह कहते ही प्रश्न उठता है कि ‘‘कोऽपि ग्रन्थः किमपि पुस्तकं वा पठ्यते” (कोई भी ग्रन्थ अथवा कोई भी पुस्तक पढ़ी जाती है।)

Sanskrit Vyakaran Vachya PDF ( संस्कृत व्याकरण वाच्य परिवर्तन )

  • इससे स्पष्ट है कि यहाँ पठ्यते क्रिया से कर्म कहा जाता है। अत: ‘पठ्यते’ कर्मवाच्य है।
  • कर्तृवाच्य तो सकर्मक-अकर्मक सभी क्रियाओं का होता है, किन्तु कर्मवाच्य सकर्मक क्रियाओं को ही हो सकता है, वहाँ कर्म के सद्भाव से क्रिया होती है अर्थात् क्रिया कर्म के अनुसार होती है।
  • जिन क्रियाओं का कर्म नहीं होता है वे अकर्मक क्रिया कही जाती हैं, जैसे ‘हस’, ‘शी’ इत्यादि। संस्कृत भाषा में अकर्मक क्रिया के द्वारा भाववाच्य और कर्तृवाच्य होता है।
  • वहाँ कर्म के अविद्यमान रहने से कर्मवाच्य बनाया नहीं जा सका है।
  • उदाहरणार्थ- ‘स्वप्’ अकर्मक (क्रिया) है। उसका भाववाच्य ‘सुप्यते’ होगा। भाव का अर्थ है- ‘क्रिया’ अर्थात् ‘सुप्यते’ पद से न ही कर्ता कहा जाता है। न ही कर्म कहा जाता है, अपितु क्रिया ही कही जाती है। अत: ‘सुप्यते’ भाववाच्य है। सामान्य रूप से यहाँ वाच्यों का स्वरूप प्रदर्शित किया जा रहा है।

वाक्य रचना विशेष में वाच्यों के अनुसार कुछ नियम हैं, उनका ज्ञान वाक्य रचना के लिए आवश्यक है।

  1. कर्तृवाच्यम् – कर्तृवाच्य में (कर्ता की प्रधानता) कर्ता प्रधान होता है, अत: क्रिया लिङ्ग, पुरुष, वचन में कर्ता का अनुसरण करती है (अर्थात् क्रिया कर्ता के लिङ्ग, पुरुष तथा वचन के अनुसार होती है।

कर्तरि प्रथमा यत्र द्वितीयोऽथ च कर्मणि।

कर्तृवाच्यं भवेत् तत्तु क्रिया कत्रनुसारिणी।।

“जहाँ कर्ता में प्रथमा और कर्म में द्वितीया हो। क्रिया कर्ता के अनुसार हो तो कर्तृवाच्य होना चाहिए।”

  1. कर्मवाच्यम्
  • यहाँ कर्म की प्रधानता होती है। अतः क्रिया लिङ्ग, पुरुष और वचनों में कर्म का अनुसरण करती है (अर्थात् क्रिया कर्म के लिङ्ग, पुरुष और वचन के अनुसार होती है।
  • कर्तृवाच्य का ‘कर्ता’ कर्मवाच्य में तृतीया विभक्ति का होता है।
  • यहाँ सभी धातुएँ आत्मनेपदी की होती हैं और उनके बीच में ‘य’ जुड़ जाता है।

Sanskrit Vyakaran Vachya PDF ( संस्कृत व्याकरण वाच्य परिवर्तन )

कर्मणि प्रथमा यत्र तृतीयाऽथ कर्तरि।

कर्मवाच्यं भवेत् तत्तु कर्मानुसारिणी।।

  • “जहाँ कर्म में प्रथमा और कर्ता में तृतीया हो। क्रिया कर्म के अनुसार हो तो वह कर्मवाच्य होना चाहिए।”
  • संस्कृत भाषा में कर्मवाच्य और भाववाच्य का प्रयोग बहुत किया जाता है।)

उदाहरण के लिए— ओदनः मया पच्यते। – यहाँ कर्म प्रधान है। अतः, ‘ओदनः’ में प्रथमा विभक्ति हुई और क्रिया इसी के अनुसार हुई।

  1. भाववाच्यम्
  • अकर्मक धातुओं का कर्मवाच्य के समान रूप जिस प्रयोग में दिखाई देता है वह भाववाच्य प्रयोग होता है।
  • यहाँ क्रिया केवल भाव को सूचित करती है। अतः क्रिया सदैव केवल प्रथम पुरुष एकवचन में प्रयुक्त की जाती है।
  • वह (क्रिया) कर्ता के लिङ्ग, पुरुष, वचनों को अनुसरण नहीं करती है। जहाँ लिङ्ग अपेक्षित (आवश्यक) होता है वहाँ नपुंसकलिङ्ग एकवचन ही प्रयुक्त होता है।
  • क्रिया का प्रयोग कृदन्त में करने पर वह नपुंसकलिङ्ग प्रथम एकवचन में ही होवे।
  • भाववाच्य में प्रथमा विभक्ति से अन्त होने पर पद दिखाई ही नहीं देते।
  • भाववाच्य में भी कर्ता तृतीया विभक्ति में होता है। जैसे-

जायते/ खेल्यते/ हस्यते/ सुप्यते/ म्रियते/ जातम्/ खेलितम्/ हसितम्/ सुप्तम् । तदुक्तम् यथा

अकर्मकधातवः सन्तिः – लज्ज्, भू, स्था, जागृ, वृध्, क्षि, भी, जीव, मृ, कुट्, कण्ठ्, भ्रम्, यत्, ग्लौ, जु, कृप्, च्युत्, शम्, ध्वन्, मस्ज्, कद्, जृम्भ्, रम्भ्, रुद्, हस्, शी, क्रीड्, रुच्, दीप् ये और इनके समानार्थक धातुएँ । पद्य में उपर्युक्त धातुओं का परिगणन गया है । इसके अतिरिक्त अन्य धातुएँ सकर्मक होती हैं।

इस वाच्य के कर्ता में तृतीया और क्रिया प्रथम पुरुष, एकवचन की होती है। जैसे- मया भूयते । यहाँ ‘मया’ कर्ता है जो तृतीया विभक्ति से युक्त है और क्रिया प्रथमा पुरुष एकवचन की है।

Sanskrit Vyakaran Vachya PDF ( संस्कृत व्याकरण वाच्य परिवर्तन )

कर्ता (Subject) में कोई वचन या पुरुष रहे, उससे भाववाच्य की क्रिया में कोई भिन्नता नहीं आती। अतः, तैः भूयते । त्वया भूयते । अस्माभिः भूयते—इत्यदि में कर्ता में बहुवचन की विभक्ति और प्रथम, मध्यम और उत्तम पुरुष रहने पर भी क्रिया प्रथमा पुरुष एकवचन की ही हुई।

 

  • कर्तृवाच्य (Active voice) में कर्ता प्रधान होता है, और उसी के अनुसार क्रिया भी उत्तमपुरुष के बहुवचन में है।
  • कर्मवाच्य में कर्म की प्रधानता होती है, अतः क्रिया कर्म के अनुसार होती है और कर्ता में तृतीया विभक्ति प्रयुक्त होती है।
  • भाववाच्य अकर्मक क्रिया के योग में होता है।
  • भाववाच्य के कर्ता में तृतीया विभक्ति होती है और क्रिया केवल प्रथम पुरुष एकवचन में होती है। जैसे-
  • मया स्थीयते/त्वया सुप्यते/अस्माभिः भूयते ।
  • कृदन्त क्रिया में नपुंसकलिंग, प्रथमपुरुष एकवचन का प्रयोग होता है।
  • कर्मवाच्य और भाववाच्य में आकारान्त दा, धा स्था, पा. मा. गो. हा सा, धातुओं के ‘आ’ के स्थान में ई हो जाता है। जैसे-

दा + य + ते = दीयते

पा + य + ते = पीयते

गा + य + ते = गीयते

  • कर्मवाच्य में लट्, लोट्, लङ् और विधिलिङ् में ‘ग्रह’ का ‘गृह’, प्रच्छु का पृच्छ व्रश्च् का वृश्च्, भ्रस्ज का भृज्ज और मस्ज का मज्ज हो जाता है। जैसे—

ग्रह् (गृह) + य + ते > गृह्यते ।

  • कर्मवाच्च के ‘य’ परे रहने से वद्, वशु, विचू, वसु, बप्, वह, श्वि, हवे, स्वप और व धातु के स्थान में उ’ हो जाता है जैसे-

वद् (उद्) + य + त > उद्यते ।

वच् (उच्) + य + ते > उच्यते ।

  • कर्मवाच्य के ‘य’ परे रहने से यज, ज्या, व्यधु, वय, व्य धातु के ‘य का ‘इ’ जाता है। जैसे–

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यज् (इज्) + य + ते > इज्यते ।

  • कर्मवाच्य के ‘य’ परे रहने से अकारान्त धातु के ‘ऋ’ का ‘रि’ हो जाता है। जैसे—

कृ + य + ते > क्रियते

धृ + य + ते > ध्रियते

  • संयुक्ताक्षर में ‘ऋ’ को ‘अर’ हो जाता है। जैसे—

स्म् + य + ते > स्मर्यते ।

  • दीर्घ ऋकार के स्थान में ईर’ हो जाता है। जैसे-

क + य + ते > कीर्यते ।

जृ + य + ते > जीर्यते

  • कर्मवाच्य के ‘य’ परे रहने से ‘शी’ धातु के ‘ई’ के स्थान में ‘अय’ हो जाता है।जैसे—

शी + य + ते > शय्यते ।

  • कर्मवाच्य के ‘य’ परे रहने से घात के हस्त स्वर का दीर्घ हो जाता है। जैसे-

जि + य + ते > जीयते

श्रु + य + ते > श्रूयते

Note: कर्तृवाच्य से कर्मवाच्य या भाववाच्य में बदलने के लिए कर्ता में तृतीया विभक्ति लगानी चाहिए। कर्मवाच्य में कर्म में प्रथमा और क्रिया को कर्मानुसार तथा भाववाच्य में क्रिया को स्वतंत्र (यानी प्रथम पुरुष एकवचन) रखना चाहिए।

वाच्य-परिवर्तन की विधि

  1. कर्तृवाच्य से कर्मवाच्य में परिवर्तन करने के लिए वाक्य में कर्ता का तृतीया विभक्ति में तथा कर्म को प्रथमा विभक्ति में परिवर्तन करके कर्म के पुरुष एवं वचन के अनुसार कर्मवाच्य की क्रिया लगाते हैं ।जैसे –
  • रामः पाठं पठति । (राम पाठ पढ़ता है ।) – कर्तृवाच्य (क्रिया सकर्मक)
  • रामेण पाठः पठ्यते । (राम द्वारा पाठ पढ़ा जाता है ।) – कर्मवाच्य
  1. इसी प्रकार से कर्तृवाच्य से भाववाच्य बनाने के लिए भी कर्ता को तृतीया में परिवर्तित करके क्रिया को प्रथम पुरुष एकवचन (आत्मनेपद) में लगाते हैं । जैसे –

Sanskrit Vyakaran Vachya PDF ( संस्कृत व्याकरण वाच्य परिवर्तन )

  • बालकः हसति । (कर्तृवाच्य) – क्रिया अकर्मक
  • बालकेन हस्यते । (भाववाच्य)
  • वयं हसामः । (कर्तृवाच्य) – क्रिया अकर्मक
  • अस्माभिः हस्यते । ( भाववाच्य)

 

कर्मवाच्य एवं भाववाच्य की क्रिया

कर्मवाच्य एवं भाववाच्य में सभी प्रकार की क्रियाओं का प्रयोग किया जा सकता है, परन्तु धातु चाहे परस्मैपदी हो या अत्मनेपदी, दोनों का प्रयोग आत्मनेपद में ही होता है । कर्म एवं भाववाच्य की क्रिया बनाने के नियम इस प्रकार हैं –

  1. मूल धातु के बाद ‘य’ लगाया जाता है । जैसे –

पठ् -पठ्य, लिख्-लिख्य, गम्-गम्य, सेव्-सेव्य, लभ्-लभ्य आदि ।

  1. इन दोनों प्रकार की धातुओं के रूप आत्मनेपद में ही चलाये जाते हैं, जैसे

पठ् – पठ्यते, पट्येते, पठ्यन्ते । (परस्मैपद) सेव् – सेव्यते, सेव्येते, सेव्यन्ते । ( आत्मनेपद)

  1. ऋकारान्त धातुओं के अन्तिम ऋ का प्रायः ‘रि’ हो जाता है, जैसे –

कृ-क्रियते, मृ-म्रियते आदि परन्तु स्मृ, जाग्र आदि

  1. कुछ धातुएँ इसका अपवाद हैं । इनके ऋ का अर् होता है । जैसे –

स्मृ-स्मर्यते, जागृ-जागर्यते आदि ।

  1. धातु के आरम्भ के य, व का प्राय: क्रमशः इ, उ हो जाता है। जैसे –

यज् – इज्यते, वच् – उच्यते, वष् – उष्यते, वप् – उप्यते, वह् – उह्यते, वद् – उद्यते ।

  1. प्रच्छ एवं ग्रह आदि धातुओं के र का ऋ हो जाता है । जैसे –

प्रच्छ – पृच्छ्यते, ग्रह – गृह्यते आदि ।

  1. धातु के अन्तिम इ, उ का दीर्घ हो जाता है । जैसे –

ई-ईयते , चि-चीयते, जि-जीयते, नी-नीयते, क्री-क्रीयते, श्रु-श्रूयते हु – हूयते, दु – दूयते आदि ।

  1. आकारान्त धातुओं के ‘आ’ का ई हो जाता है । जैसे –

दा – दीयते, पा-पीयते, स्था-स्थीयते, हा-हीयते, विधा-विधीयते, मा-मीयते आदि ।

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  1. परन्तु कुछ आकारान्त धातुओं के ‘आ’ का परिवर्तन नहीं होता । जैसे –

घ्रा-घ्रायते, ज्ञा-ज्ञायते आदि ।।

  1. उपधा के अनुस्वार (‘) या उससे बने पञ्चम वर्ण का लोप हो जाता है । जैसे –

बन्ध् – बध्यते, रञ्ज – रज्यते, मन्थ्-मथ्यते, ग्रन्थ्-ग्रथ्यते, प्रशंस् – प्रशस्यते, दंश् – दश्यते, परन्तु शङ्क, वञ्च आदि में ऐसा नहीं होता ।।

  1. धातु के अन्तिम ऋ का ईर् हो जाता है । जैसे

वि + दृ = विदीर्यते, निगृ = निगीर्यते, उद् + तृ = उत्तीर्यते, जृ – जीर्यते, शृ – शीर्यते ।

  1. दीर्घ ई, ऊ अन्त वाली तथा सामान्य हलन्त धातुओं से सीधा ‘य’ जोड़कर आत्मनेपद में रूप चलाये जाते हैं । जैसे-

नी – नीयते, भू – भूयते, क्रीड् -क्रीड्यते, पच् – पच्यते आदि ।

प्रमुख धातुओं के लट् लकार में रूप-

 

बुध् धातुः

पुरुषःएकवचनम्द्विवचनम्बहुवचनम्
प्रथमःबुध्यतेबुध्येतेबुध्यन्ते
मध्यमःबुध्यसेबुध्येथेबुध्यध्वे
उत्तमःदुध्येबुध्यावहेबुध्यामहे

 

गम् धातुः

पुरुषःएकवचनम्द्विवचनम्बहुवचनम्
प्रथमःगम्यतेगम्येतेगम्यन्ते
मध्यमःगम्यसेगम्येथेगम्यध्वे
उत्तमःगम्येगम्यावहेगम्यामहे

 

‘कृ’ धातुः

पुरुषःएकवचनम्द्विवचनम्बहुवचनम्
प्रथमःक्रियतेक्रियेतेक्रियन्ते
मध्यमःक्रियसेक्रियेथेक्रियध्वे
उत्तमःक्रियेक्रियावहेक्रियामहे

 

‘लभ’ धातुः

पुरुषःएकवचनम्द्विवचनम्बहुवचनम्
प्रथमःलभ्यते लभ्येतेलभ्यन्ते
मध्यमःलभ्यसेलभ्येथेलभ्यध्वे
उत्तमःलभ्येलभ्यावहेलभ्यामहे

 

‘दा’ धातुः

पुरुषःएकवचनम्द्विवचनम्बहुवचनम्
प्रथमःदीयतेदीयेतेदीयन्ते
मध्यमःदीयसेदीयेथेदीयध्वे
उत्तमःदीयेदीयावहेदीयामहे

 

‘पा’ धातुः

पुरुषःएकवचनम्द्विवचनम्बहुवचनम्
प्रथमःपीयतेपीयेतेपीयन्ते
मध्यमःपीयसेपीयेथेपीयध्वे
उत्तमःपीयेपीयावहेपीयामहे

 

‘स्था’ धातुः

पुरुषःएकवचनम्द्विवचनम्बहुवचनम्
प्रथमःस्थीयतेस्थीयतेस्थीयन्ते
मध्यमःस्थीयसेस्थीयेथेस्थीयध्वे
उत्तमःस्थीयेस्थीयावहेस्थीयामहे

 

‘भू’ धातुः

पुरुषःएकवचनम्द्विवचनम्बहुवचनम्
प्रथमःभूयतेभूयेतेभूयन्ते
मध्यमःभूयसेभूयेथेभूयध्वे
उत्तमःभूयेभूयावहेभूयामहे

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‘नी’ धातुः

पुरुषःएकवचनम्द्विवचनम्बहुवचनम्
प्रथमःनीयतेनीयेतेनीयन्ते
मध्यमःनीयसेनीयेथेनीयध्वे
उत्तमःनीयेनीयावहेनीयामहे

 

 ‘श्रू’ धातुः

पुरुषःएकवचनम्द्विवचनम्बहुवचनम्
प्रथमःश्रूयतेश्रूयेतेश्रूयन्ते
मध्यमःश्रूयसेश्रूयेथेश्रूयध्वे
उत्तमःश्रूयेश्रूयावहेश्रूयामहे

 

वाच्य-परिवर्तन के कुछ अन्य उदाहरण

 

(1) कर्तृवाच्य से कर्मवाच्य – कर्तृवाच्य से कर्मवाच्य में परिवर्तन करते समय वाक्य के कर्ता को तृतीया विभक्ति में, कर्म को प्रथमा में परिवर्तित करके क्रिया को कर्म के अनुसार बनाया जाता है ।

(2) कर्मवाच्य से कर्तृवाच्य – कर्ता प्रथमा विभक्ति में तथा कर्म को द्वितीया विभक्ति में करके कर्ता के अनुसार क्रिया लगायी जाती है।

(3) कर्तृवाच्य से भाववाच्य – कर्ता को तृतीया विभक्ति में परिवर्तित करके क्रिया प्रथम पुरुष एकवचन की कर्मवाच्य की जैसी आत्मनेपदी रूप में लगायी जाती है ।

(4) भाववाच्य से कर्तृवाच्य – कर्ता जो तृतीया विभक्ति में होता है उसे प्रथमा विभक्ति में परिवर्तित करके कर्ता के पुरुष एवं वचन के अनुसार क्रिया लगायी जाती है । जैसे –

 

अभ्यासः

 

  • अधिकारी प्रार्थनां शृणोति । (अधिकारी प्रार्थना को सुनता है ।) – अधिकारिणी प्रार्थना श्रूयते । (अधिकारी द्वारा प्रार्थना सुनी जाती है ।)
  • अधुना मया कुत्रापि न गम्यते । (अब मेरे द्वारा कहीं नहीं जाया जा रहा है ।) – अधुना अहं कुत्रापि न गच्छामि । (अब मैं कहीं नहीं जा रहा हूँ ।)
  • अहं तु समाचारान् शृणोमि । (मैं समाचार सुनता हूँ ।) – मया तु समाचाराः श्रूयन्ते । (मेरे द्वारा तो समाचार सुने जाते हैं ।)
  • अहं पाठं स्मरामि । (मैं पाठ याद करता हूँ) – मया पाठः स्मर्यते । (मेरे द्वारा पाठ याद किया जाता है । )
  • अहं पार्ट कण्ठस्थं करोमि । (मैं पाठ को कण्ठस्थ करता हूँ ।) – मया पाठः कण्ठस्थः क्रियते । (मेरे द्वारा पाठ कंठस्थ किया जाता है ।)

Sanskrit Vyakaran Vachya PDF ( संस्कृत व्याकरण वाच्य परिवर्तन )

  • अहं पितरं सेवे । (मैं पिता की सेवा करता हूँ।) – मया पिता सेव्यते । मेरे द्वारा पिताजी की सेवा की जाती है ।)
  • अहं फलानि क्रीणामि । (मैं फल खरीदता हूँ ।) – मया फलानि क्रीयन्ते । (मेरे द्वारा फल खरीदे जाते हैं ।)
  • अहं मोहं त्यजामि । (मैं मोह छोड़ता हूँ ।) – मया मोहः त्यज्यते । (मेरे द्वारा मोह त्यागा जाता है ।)
  • अहं लेख लिखामि । (मैं लेख लिखता हूँ ।) – मया लेखः लिख्यते । (मेरे द्वारा लेख लिखा जाता है ।)
  • ईश्वरेण संसार: सृज्यते । (ईश्वर द्वारा संसार सृजित होता है ।) – ईश्वर: संसारं सृजति । (ईश्वर संसार की सृष्टि करता है ।)
  • एषी मालाम् अपि रचयति । (यह माला भी बनाती है ।) – अनया माला अपि रच्यते । (इसके द्वारा माला भी बनाई जाती है ।)
  • कृष्ण: कंसं हन्ति । (कृष्ण के द्वारा कंस को मारता है ।) – कृष्णेन केस: हन्यते । (कृष्ण के द्वारा कंस मारा जाता हैं ।)
  • गुरु: शिष्यान् पाठयति । (गुरु शिष्यों को पढ़ाता है ।) – गुरुणा शिष्या: पाठ्यन्ते । (गुरु द्वारा शिष्यों को पढ़ाया जाता है ।)
  • छात्रः पुरस्कारं गृह्णाति । (छात्र पुरस्कार ग्रहण करता है।) – छत्रेण पुरस्कारः गृह्यते । (छात्र द्वारा पुरस्कार ग्रहण किया जाता है ।)
  • छात्रा: गुरून् नमन्ति । (छात्र गुरुओं को नमस्कार करते हैं ।) – छात्रैः गुरवः नम्यन्ते । (छात्रों द्वारा गुरुओं को नमस्कार किया जाता है ।)
  • छायाकार : छायाचित्रं रचयति । (छायाकार छायाचित्र बनाता है ।) – छायाकारेण छायाचित्रं रच्यते । (छायाकार द्वारा छायाचित्र बनाया जाता है ।)
  • जनैः रामायणी कथा श्रूयते । (लोगों द्वारा रामायण की कथा सुनी जाती है ।) – जना: रामायण कथां शृण्वन्ति । (लोग रामायण की कथा सुनते है ।)

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  • तदनन्तरं मया गीता श्रूयते । (उसके बाद मेरे द्वारा गीत सुनी जाती हैं ।) – रमन्ते तत्र देवाः । (वहाँ देव रमण करते हैं ।)
  • ते तत्र पुष्पाणि चिन्वन्ति । (वे वहाँ फूल चुन रहे हैं।) – तैः पुष्पाणि चीयन्ते । (उनके द्वारा फूल तोड़े जाते हैं ।)।
  • त्वं कथां शृणोषि । (तुम कथा सुनते हो ।) – त्वया कथा श्रूयते । (तुम्हारे द्वारा कथा सुनी जाती है ।)
  • त्वं प्रदर्शनीं पश्यसि । (तू प्रदर्शनी देखती है ।) – त्वया प्रदर्शनी दृश्यते । (तुम्हारे द्वारा प्रदर्शनी देखी जाती है ।)
  • त्वं मां पृच्छति । (तुम मुझे पूछते हो।) । – त्वया अहं पृच्छ्ये । (तुम्हारे द्वारा मैं पूछा जाता हूँ ।)
  • त्वम् अभ्यास पुस्तिकायाम् उत्तराणि लिखासि । (तुम अभ्यास पुस्तिका में उत्तर लिखते हो ।) – त्वया अभ्यासपुस्तिकायाम् उत्तराणि लिख्यन्ते । (तुम्हारे द्वारा अभ्यास पुस्तिका में उत्तर लिखे जाते हैं ।)
  • त्वया कि क्रियते ? (तुम्हारे द्वारा क्या किया जाता है ?) । – त्वं किं करोषि । (तुम द्वारा क्या करते हो ?)
  • दिव्या गीतां पठति । (दिव्या गीता पढ़ती है ।) – दिव्यया गीता पठ्यते । (दिव्या द्वारा गीता पढ़ी जाती है ।)
  • नृपः शत्रु हन्ति । (राजा शत्रु को मारता है।) – नृपेण शत्रुः हन्यते । (राजा द्वारा शत्रु को मारा जाता है ।)
  • पापी पापं करोति । (पापी पाप करता है ।) – पापिना पापं क्रियते । (पापी द्वारा पाप किया जाता है ।)
  • बालकः हसति । (बालक हँसता है ।) – बालकेन हस्यते । (बालक द्वारा हँसा जाता है ।)
  • बालिकाया नृत्यते । (लड़की द्वारा नाचा जाता है ।)। – बालिका नृत्यति । (बालिका नाचती है ।)

Sanskrit Vyakaran Vachya PDF ( संस्कृत व्याकरण वाच्य परिवर्तन )

  • भक्ता: देवान् पूजयन्ति । (भक्त देवताओं को पूजते हैं ।) – भक्त: देवाः पूज्यन्ते । (भक्तों द्वारा देवता पूजे जाते हैं ।)
  • भवान् भ्रमणाय गच्छति । (आप भ्रमण के लिए जाते हैं ।) – भवता भ्रमणाय गम्यते । (आपके द्वारा घूमने जाया जाता है ।)
  • मया तु अत्रैव स्थीयते । (मेरे द्वारा यहीं ठहरा जाता है ।) – अहं तु अत्रैव तिष्ठामि । (मैं तो यहीं ठहता हूँ )
  • मया नित्यं व्यायामः क्रियते । (मेरे द्वारा नित्य व्यायाम किया जाता है ।)- अहं नित्यं व्यायामं करोमि । (मैं नित्य व्यायाम करता हूँ ।)
  • मया फलानि खाद्यन्ते । (मेरे द्वारा फल खाये जाते हैं ।) – अहं फलानि खादामि । (मैं फल खाता हूँ ।)
  • मया सुप्यते । (मेरे द्वारा सोया जाता है ।) – अहं स्वपिमि । ( मैं सोता हूँ ।)।
  • महापुरुषा: ईश्वरं ध्यायन्ति । (महापुरुष ईश्वर का ध्यान करते है ।) – महापुरुषैः ईश्वरः ध्यायते ।(महापुरुषों द्वारा ईश्वर का ध्यान किया जाता है ।)
  • माता ओदनं पचति । (माता चावल पकाती है ।) – मात्रा ओदेन: पेच्यते । (माता जी द्वारा चावल पकाये जाते हैं ।
  • यत्र नार्य: पूज्यन्ते । (जहाँ नारियाँ पूजी जाती हैं ।) – यत्र नारी: पूजयन्ति । (जहाँ नारियों को पूजते हैं ।)
  • रामेण जनकः प्रणम्यते । (राम द्वारा जनक को प्रणाम किया जाता है।) – रामे: जनकं प्रणमति । (राम जनक को प्रणाम करता है ।)
  • रेखा उत्तर पुस्तिका या उत्तराणि लिखति । (रेखा कापी में उत्तर लिखती है ।) – रेखया उत्तर पुस्तिकायां उत्तराणि लिख्यन्ते । (रेखा द्वारा कापी में उत्तर लिखे जाते हैं ।)
  • विद्या विनयं ददाति । (विद्या विनय देती है।) – विद्यया विनय: दीयते । (विद्या द्वारा विनय दी जाती है ।)

Sanskrit Vyakaran Vachya PDF ( संस्कृत व्याकरण वाच्य परिवर्तन )

  • विद्यालये छात्रा: संस्कृतं पठन्ति । (विद्यालय में छात्र संस्कृत पढ़ते हैं ।) – विद्यालये छात्रैः संस्कृतं पठ्यते । (विद्यालय में छात्रों द्वारा संस्कृत पढ़ी जाती है ।)
  • वृक्षाः फलानि ददति । (वृक्ष फल देते हैं ।) – वृक्षै: फलानि दीयन्ते । (वृक्षों द्वारा फल दिए जाते हैं ।)
  • वृद्धः वेदान् पठति । (वृद्ध वेदों को पढ़ता है ।) – वृद्धेन वेदाः पठ्यन्ते । (वृद्ध द्वारा वेद पढ़े जाते हैं ।)
  • सर्पा: पवनं पिबन्ति । (सर्प वायु पीते हैं ।) – सपैः पवन: पीयते । (सर्पो द्वारा पवन पिया जाता है ।)

कर्तृवाच्यम् – कर्मवाच्यम्

  1. अयम् ओदनं भुङ्क्ते – अनेन ओदनं भुज्यते
  2. अहं कथाः पठामि। – मया कथाः पठ्यन्ते।
  3. अहं कथां पठामि। – मया कथा पठ्यते।
  4. अहं कथां शृणोमि – मया कथा श्रूयते
  5. अहं कथे पठामि। – मया कथे पठ्येते।
  6. अहं पठामि। – मया पठ्यते।
  7. अहं पुस्तकं पठामि। – मया पुस्तके पठ्येते।
  8. अहं पुस्तकानि पठामि। – मया पुस्तकानि पठ्यन्ते।
  9. अहं पुस्तके पठामि। – मया पुस्तकं पठ्यते।
  10. अहं प्रखरं पश्यामि – मया प्रखरः दृश्यते
  11. अहं श्लोकं पठामि। – मया श्लोकः पठ्यते।
  12. अहं श्लोकान् पठामि। – मया श्लोकाः पठ्यन्ते।
  13. अहं श्लोकौ पठामि। – मया श्लोकौ पठ्येते।
  14. आवाम् पठावः। – आवाभ्याम् पठ्यते।
  15. एता/इमाः बालिकाः पठन्ति। – एताभि:/आभिः बालिकाभिः पठ्यते।
  16. एते/इमे बालकाः पठन्ति। – एतैः/एभिः बालकैः पठ्यते।।
  17. एते/इमे बालिके पठतः। – एताभ्यां/आभ्यां बालिकाभ्यां पठ्यते।
  18. एतौ/इमौ बालकौ पठतः। – एताभ्यां/आभ्यां बालकाभ्यां पठ्यते।
  19. एषः/अयं बालकः पठति। – एतेन/अनेन बालकेन पठ्यते।
  20. एषा/इयं बालिका पठति। – एतया/अनया बालिकया पठ्यते।
  21. कवयः कवितां कुर्वन्ति – कविभिः कविता क्रियते

Sanskrit Vyakaran Vachya PDF ( संस्कृत व्याकरण वाच्य परिवर्तन )

  1. ते वार्ता कथयन्ति – तैः वार्ता कराते
  2. त्वं निबंध लिखसि – त्वया निबंधः लिख्यते
  3. त्वं पठसि। – त्वया पठ्यते।
  4. बालः पयः पिबति – बालेन पयः पीयते
  5. भवती/सा पठति। – भवत्या/तया/पठ्यते।
  6. भवत्यः/ताः पठन्ति। – भवतीभिः/ताभिः पठ्यते।
  7. भवत्यौ/ते पठतः। – भवतीभ्याम्/ताभ्याम् पठ्यते।
  8. भवन्तः श्लोकान् वदन्ति – भवद्भिः श्लोकः उच्यते
  9. भवन्तः/ते पठन्ति। – भवद्भिः तैः पठ्यते।
  10. भवन्तौ/तौ पठतः। – भवद्भ्याम्/ताभ्याम् पठ्यते।
  11. भवान्/सः पठति। – भवता/तेन पठ्यते।
  12. युवाम् पठथः। – युवाभ्याम् पठ्यते।
  13. यूयम् पठथ। – युष्माभिः पठ्यते।
  14. रामः तं पश्यति (राम उसको देखता है) – रामेण सः दृश्यते (राम के द्वारा वह देखा जाता है)
  15. वयम् पठामः। – अस्माभिः पठ्यते।
  16. शूरः शत्रु हन्ति – शूरेण शत्रुः हन्यते
  17. सः त्वां पश्यति (वह तुमको देखता है)- तेन त्वं दृश्यते (उसके द्वारा तुम देखे जाते हो)
  18. सः विप्राय गां ददति – तेन विप्राय गौः दीयते
  19. सः वेदं पठति – तेन वेदः पठ्यते


क्र.सं.विषय-सूचीDownload PDF
1वर्ण विचार व उच्चारण स्थानClick Here
2संधि – विच्छेदClick Here
3समासClick Here
4कारक एवं विभक्तिClick Here
5प्रत्ययClick Here
6उपसर्गClick Here
7शब्द रूपClick Here
8धातु रूपClick Here
9सर्वनामClick Here
10विशेषण – विशेष्यClick Here
11संख्या ज्ञानम्Click Here
12अव्ययClick Here
13लकारClick Here
14माहेश्वर सूत्रClick Here
15समय ज्ञानम्Click Here
16विलोम शब्दClick Here
17संस्कृत सूक्तयClick Here
18छन्दClick Here
19वाच्यClick Here
20अशुद्धि संषोधनClick Here
21संस्कृत अनुवादClick Here
22संस्कृत शिक्षण विधियांClick Here
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