Sthaniya Swashasan Panchayati Raj – स्थानीय स्वशासन पंचायतीराज
स्थानीय स्वशासन पंचायतीराज (Sthaniya Swashasan Panchayati Raj) : भारत मे स्थानीय स्वशासन के जनक लॉर्ड रिपन को माना जाता है । इन्होंने 1882 मे एक प्रस्ताव पारित किया था । महात्मा गांधी ग्राम स्वराज के पक्षधर थे । संविधान सभा ने राज्य के नीति निदेशक तत्वों के तहत अनुच्छेद 40 मे ग्राम पंचायतों का प्रावधान करके राज्यों को इनका गठन करने की शक्ति प्रदान की गई । 2 अक्टूबर 1952 को सामुदायिक विकास कार्यक्रम प्रारंभ किया गया ।
Sthaniya Swashasan Panchayati Raj संस्थाओ के लिए गठित समितियाँ
बलवंत राय मेहता समिति 1957-58 (Balwant Rai Mehta Samiti Report)
- भारत सरकार ने जनवरी 1957 मे बलवंत राय मेहता समिति का गठन किया जिसने अपनी रिपोर्ट 1958 मे सौंप दी ।
- इस समिति ने लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण की सिफारिश की ।
- त्रि स्तरीय पंचायती राज प्रणाली की स्थापना की जाए ।
- ग्राम पंचायत
- पंचायत समिति
- जिला पंचायत
- ग्राम पंचायत का चुनाव प्रत्यक्ष रूप से हो तथा पंचायत समिति व जिला परिषद का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से हो ।
- पंचायत समिति को कार्यकारी निकाय तथा जिला परिषद को पर्यवेक्षी, समन्वयात्मक तथा सलाहकारी निकाय बनाया जाए ।
- जिला कलेक्टर को जिला परिषद का अध्यक्ष बनाया जाए ।
- सर्वप्रथम पंचायती राज व्यवस्था का शुभारंभ भारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू द्वारा राजस्थान के नागौर जिले के बगदरी गाँव से 2 अक्टूबर 1959 को हुआ । उस राजस्थान के मुख्यमंत्री मोहनलाल सुखड़िया थे । इसके बाद
- आंध्रप्रदेश – 11 अक्टूबर 1959
- कर्नाटक, तमिलनाडु, आसाम – 1960
- महाराष्ट्र – 1962
- गुजरात – 1963
- पश्चिम बंगाल – 1964
सादिक अली अध्ययन समिति – 1964 (Sadik Ali Adyayan Samiti Report)
- राजस्थान सरकार द्वारा पंचायती राज व्यवस्था मे सुधार हेतु 1964 मे गठन ।
गिरधारी लाल व्यास समिति – 1973 (Girdhari Lal Vyas Samiti Report)
- राजस्थान सरकार द्वारा 1973 प्रशासन व वित्तीय मामलों के लिए गठित ।
- इस समिति ने प्रत्येक पंचायत के लिए ग्राम सेवक पदेन सचिव नियुक्त करने की सिफारिश की ।
Gramin Sthaniya Swashasan Panchayatiraj Adhiniyam 1992
अशोक मेहता समिति – 1977-78 (Ashok Mehta Samiti Report)
- जनता पार्टी की सरकार ने 1977 मे अशोक मेहता समिति का गठन किया गया जिसने 1978 मे अपनी रिपोर्ट सौंप दी ।
- त्रिस्तरीय पंचायती राज को समाप्त कर द्विस्तरीय प्रणाली अपनाई जाए ।
- 15000-20000 की जनसंख्या पर मण्डल पंचायत का किया जाए । ग्राम पंचायत को समाप्त किया जाए ।
- जिले को विकेन्द्रीकरण का प्रथम स्तर माना जाए ।
- पंचायत चुनाव राजनीतिक दल के आधार पर होने चाहिए ।
- न्याय पंचायतों को पंचायतों से अलग रखा जाए जिसके प्रमुख न्यायाधीश हो ।
- भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त की सलाह पर राज्य मुख्य चुनाव आयुक्त को चुनाव कराना चाहिए ।
- अनुसूचित जाति व जनजाति के लिए जनसंख्या के आधार पर सीटों का आरक्षण हो ।
जी वी के राव समिति – 1985-86
एल एम सिंघवी समिति – 1986 (M. L. Singhvi Samiti Report)
- पंचायती राज संस्थाओ को संवैधानिक दर्जा दिया जाए । और संविधान मे इसके लिए अलग से अध्याय जोड़ा जाए ।
- पंचायतों को वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराए जाए ।
पी के थुंगन समिति – 1989 (P. K. Thugan Samiti Report)
- इस समिति ने भी पंचायती राज संस्थाओ को संवैधानिक दर्जा दिए जाने की सिफारिश की ।
विभिन्न राज्यों मे पंचायती स्तर
- एक स्तरीय (ग्राम पंचायत) – केरल, त्रिपुरा, सिक्किम, मणिपुर, जम्मू।
- द्विस्तरीय (ग्राम पंचायत व पंचायत समिति) – आसाम, कर्नाटक, ओडिशा, हरियाणा, दिल्ली, पुडुचेरी ।
- त्रिस्तरीय (ग्राम पंचायत, पंचायत समिति व जिला परिषद) – यूपी, बिहार, एमपी, राजस्थान, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, पंजाब, तमिलनाडु, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, गोवा ।
- चार स्तरीय – पश्चिम बंगाल
- जनजातीय परिषद – मेघालय, मिजोरम, नागालैंड।
73 वां संविधान संशोधन अधिनियम 1992 (73th Samvidhan Sanshodan Adhiniyam 1992)
- 16 सितंबर 1991 को पी वी नरसिम्हा सरकार ने 73 वां संविधान संशोधन लोकसभा मे प्रस्तुत किया ।
- लोकसभा ने इस विधेयक की समीक्षा के लिए नाथुराम मिरधा की अध्यक्षता मे एक संयुक्त प्रवर समिति का गठन किया ।
- इस समिति की सिफारिश पर 22 दिसंबर 1992 को लोकसभा द्वारा और 23 दिसंबर 1992 को राज्यसभा द्वारा 73 वां संविधान संशोधन 1992 पारित हुआ ।
- 17 राज्यों के अनुमोदन के पश्चात 20 अप्रैल 1993 को राष्ट्रपति ने अपनी स्वीकृति प्रदान की ।
- 24 अप्रैल 1993 को मिजोरम, मेघालय, जम्मू कश्मीर, नागालैंड, दिल्ली व मणिपुर को छोड़कर सम्पूर्ण देश मे लागू हो गया ।
- संविधान के अनुच्छेद 243 को भाग 9 के रूप मे जोड़ा गया ।
- संविधान मे 11 वीं अनुसूची जोड़ी गई जिसमे पंचायती राज संस्थाओ के 29 कार्य सूचीबद्ध किए गए ।
- कर्नाटक मे सर्वप्रथम यह अधिनियम पारित किया जो 10 मई 1993 को लागू हुआ ।
- इसके बाद एमपी ने यह अधिनियम पारित किया जो 25 जनवरी 1994 से लागू हुआ ।
- देश मे सर्वप्रथम पंचायती राज चुनाव मई जून 1994 को एमपी ने हुए ।
- राजस्थान मे यह अधिनियम 23 अप्रैल 1994 को लागू हुआ ।
- राजस्थान मे संविधान के अनुच्छेद 243 क के तहत राज्य निर्वाचन आयोग का गठन जुलाई 1994 मे किया गया ।
- राज्य निर्वाचन आयोग ने राजस्थान मे प्रथम बार पंचायती राज चुनाव 1995 मे कराए गए ।
73th Samvidhan Sanshodhan Adhiniyam भारत के संविधान मे पंचायती राज संस्थाओ (स्थानीय स्वशासन) से संबंधित महत्त्वपूर्ण अनुच्छेद
- संविधान के अनुच्छेद 243 के अनुसार पंचायतीराज की परिभाषाएं
- (ख ) ग्राम सभा से ग्राम पंचायत के क्षेत्र के भीतर संबंधित निर्वाचक नामावली मे दर्ज व्यक्तियों से मिलकर बना निकाय ।
- संविधान के अनुच्छेद 243 (क) के अनुसार ग्राम सभा का प्रावधान।
- संविधान के अनुच्छेद 243 (ख) के अनुसार पंचायतों का गठन ।
- (1) प्रत्येक राज्य में ग्राम मध्यवर्ती व जिला स्तर पर इस भाग के अनुसार पंचायतों का गठन किया जाएगा।
- (2) मध्यवर्ती स्तर पर पंचायत समिति का उस राज्य में गठन नहीं किया जा सकेगा जिसकी जनसंख्या 20 लाख से कम है ।
- संविधान के अनुच्छेद 243 (ग) के अनुसार पंचायतों की संरचना ।
- संविधान के अनुच्छेद 246 (घ) के अनुसार पंचायतों में स्थानों का आरक्षण ।
- खंड (1) के अनुसार प्रत्येक पंचायत में अनुसूचित जातियों अनुसूचित जनजातियों के लिए स्थान आरक्षित रहेंगे ।
- खण्ड (2) के अनुसार खंड (1) के अधीन आरक्षित स्थानों की कुल संख्या के कम से कम एक तिहाई स्थान अनुसूचित जनजाति अनुसूचित जाति की स्त्री के लिए आरक्षित रहेंगे ।
- खंड (3) के अनुसार प्रत्येक पंचायत में प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा भरे जाने वालों स्थानों की कुल संख्या के कम से कम एक तिहाई स्थान खंड (2) की संख्या सहित स्त्रियों के लिए आरक्षित रहेंगे ।
ग्रामीण स्वशासन पंचायती राज (Sthaniya Gramin Swashasan Panchayati Raj)
- अनुच्छेद 243 ङ के अनुसार पंचायतों की अवधि ।
- (1) प्रत्येक पंचायत की अवधि प्रथम बैठक से 5 वर्ष तक बनी रहेगी ।
- संविधान के अनुच्छेद 243 च के अनुसार सदस्यता के लिए निरहताएं ।
- संविधान के अनुच्छेद 243 झ के अनुसार वित्तीय स्थिति के पुनर्विलोकन के लिए वित्त आयोग का गठन ।
- राज्य का राज्यपाल 73 वें संविधान संशोधन 1992 के प्रारंभ से 1 वर्ष भीरत यथाशीघ्र और प्रत्येक 5 वर्ष की समाप्ति पर वित्त आयोग का गठन करेगा जो पंचायतों की वित्तीय स्थिति का पुनर्विलोकन करेगा ।
- संविधान के अनुच्छेद 243 ट के अनुसार पंचायतों के लिए निर्वाचन आयोग ।
- पंचायतों के निर्वाचन के लिए निर्वाचक नामावली तैयार करने का और उन सभी निर्वाचन के संचालन का निर्देशन और नियंत्रण एक राज्य निर्वाचन आयोग में निहित होगा जिसमें एक राज्य निर्वाचन आयुक्त होगा जो राज्यपाल द्वारा नियुक्त किया जाएगा ।
- राज्य निर्वाचन आयुक्त की सेवा शर्ते राज्यपाल द्वारा अवधारित की जाएगी ।
- परंतु राज्य निर्वाचन आयुक्त को उसके पद से उसी रीति व उन्ही आधारों पर ही हटाया जाएगा जिस रीति व जिन आधारों पर उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाया जाता है ।
Rajasthan Panchayati Raj Adhiniyam 1994
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