Sanskrit Vyakaran Shabd Roop PDF
Sanskrit Vyakaran Shabd Roop PDF ( संस्कृत व्याकरण शब्द रूप ) : दोस्तो आज इस पोस्ट मे संस्कृत व्याकरण (Sanskrit Grammar) के शब्द रूप टॉपिक का विस्तारपूर्वक अध्ययन करेंगे । यह पोस्ट सभी शिक्षक भर्ती परीक्षा व्याख्याता (School Lecturer), द्वितीय श्रेणी अध्यापक (2nd Grade Teacher), REET 2021, RPSC, RBSE REET, School Lecturer, Sr. Teacher, TGT PGT Teacher, 3rd Grade Teacher आदि परीक्षाओ के लिए महत्त्वपूर्ण है । अगर पोस्ट पसंद आए तो अपने दोस्तो के साथ शेयर जरूर करे ।
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Sanskrit Vyakaran Shabd Roop PDF ( संस्कृत व्याकरण शब्द रूप )
दो या दो से अधिक वर्णो से बने ऐसे समूह को ‘शब्द’ कहते है, जिसका कोई न कोई अर्थ अवश्य हो।
संस्कृत में शब्दों को निम्नलिखित पाँच भागों में बाँटा जा सकता है-
(1) संज्ञा
(2) सर्वनाम
(3) विशेषण
(4) क्रिया
(5) अव्यय
संज्ञा, सर्वनाम और विशेषण में लिंग, कारक और वचन के अनुसार परिवर्तन होता है। क्रिया में काल, पुरुष और वचन के अनुसार परिवर्तन होता है तथा अव्ययों में किसी भी दशा में (लिंग, कारक, वचन आदि के कारण) कोई परिवर्तन नहीं होता।
संस्कृत में निम्नलिखित तीन लिंग होते हैं-
(1) पुंल्लिग— जिससे पुरुष जाति का बोध होता है; जैसे- राम:, कविः।
(2) स्त्रीलिंग- जिससे स्त्री जाति का बोध होता है; जैसे – नदी:, मतिः, धेनुः, वधू, माती आदि।
(3) नपुंसकलिंग- जिससे न पुरुष जाति का बोध होता है और न स्त्री जाति का; जैसे-फलम्, वारि, मधु, जगत् आदि।।
संस्कृत में निम्नलिखित तीन वचन होते हैं-
(1) एकवचन- जिनसे एक वस्तु का बोध होता है; यथा—बालकः पठति।
(2) द्विवचन- जिनसे दो वस्तुओं का बोध होता है; यथा-बालकौ पठतः।।
(3) बहुवचन- जिनसे दो से अधिक वस्तुओं का बोध होता है; यथा–बालकाः पठन्ति।
स्वर व व्यंजन के आधार पर शब्द दो प्रकार के होते है ।
- अजन्त (स्वरान्त) शब्द -‘अजन्त’ शब्द ‘अच् + अन्त’ इन दो शब्दों से मिलकर बना है। संस्कृत भाषा में स्वर को ‘अच्’ के नाम से जाना जाता है। अर्थात् जिसके अन्त में. अच् (स्वर) हैं उन्हें अजन्त शब्द कहते हैं। जैसे- रमा, नदी, राम आदि।
- हलन्त (व्यंजनान्त) शब्द – हलन्त् शब्द ‘हल् + अन्त’ इन दो शब्दों से मिलकर बना है। संस्कृत भाषा में ‘हल्’ को व्यंजन के नाम से जाना जाता है। अतः वे शब्द हलन्त कहलाते हैं जिनके अन्त में व्यंजन होते हैं; जैसे- राजन्, भवत्, दिर् आदि।
सभी संज्ञा शब्दों को निम्नलिखित छः वर्गों में विभाजित किया जा सकता है
(1) स्वरान्त पुंल्लिग शब्द – राम, कवि, भानु, पितृ, गो आदि।
(2) स्वरान्त नपुंसकलिंग शब्द – फल, वारि, मधु आदि।
(3) स्वरान्त स्त्रीलिंग शब्द – माला, मति, धेनु, नदी, वधू, मातृ आदि।
(4) व्यंजनान्त पुंल्लिग शब्द – करिन्, आत्मन्, राजन्, मरुत्, सुहद् आदि।।
(5) व्यंजनान्त नपुंसकलिंग शब्द – मनस्, जगत्, नाम आदि।
(6) व्यंजनान्त स्त्रीलिंग शब्द – वाच्, सरित्, विपद् आदि।
शब्द रूप याद करने के लिए नियम
- नियम 1 – राम, हरि, गुरु, मति, धेनु शब्दों के प्रथम विभक्ति के एकवचन मे विसर्ग लगता है।
- नियम 2- आकारांत व ईकारांत शब्द के प्रथम विभक्ति के एकवचन मे विसर्ग नहीं लगता है ।
- नियम 3 – राम, हरि, बालक, कवि, गुरु आदि शब्द के द्वितीय विभक्ति के एकवचन मे ‘म’ जुड़ता है ।
- नियम 4 – अ, इ, उ, ऋ पुल्लिंग शब्दो के द्वितीय विभक्ति के बहुवचन मे अंतिम अक्षर को दीर्घ करके ‘न’ हलंत जुड़ जाता है ।
- नियम 5 – आ, इ, उ, ऋ स्त्रीलिंग शब्द के द्वितीय विभक्ति के बहुवचन मे अंतिम अक्षर दीर्घ करके विसर्ग जुड़ जाता है ।
- नियम 6 – राम, हरि, नदी, गुरु आदि शब्दों के तृतीया विभक्ति द्विवचन मे ‘भ्याम’ जुड़ जाता है।
- नियम 7 – रमा, गुरु, नदी, हरि आदि शब्दों के तृतीया बहुवचन मे ‘भि’ जुड़ जाता है। नोट – राम, बालक शब्दों मे ‘ऐ’ जुड़ जाता है।
- नियम 8 – रमा, गुरु, नदी, हरि आदि शब्दों के चतुर्थी विभक्ति बहुवचन मे ‘भ्य:’ जुड़ जाता है । नोट – राम शब्द मे ‘भ्य’ से पहले ‘ए’ जुड़ता है।
- नियम 9 – षष्ठी विभक्ति बहुवचन मे ‘नाम’या ‘णाम’ जुड़ जाता है।
- नियम 10 – सप्तमी विभक्ति बहुवचन मे ‘सु’ या ‘षु’ जुड़ जाता है ।
- नियम 11 – प्रथम, द्वितीय विभक्ति का द्विवचन एक होता है।
- नियम 12 – तृतीया, चतुर्थी, पंचमी विभक्ति का द्विवचन एक होते है।
- नियम 13 – षष्ठी, सप्तमी विभक्ति के द्विवचन एक होते है ।
- नियम 14 – चतुर्थी, पंचमी का बहुवचन एक होता है ।
1. अकारांत पुल्लिंग ‘राम’ शब्द रूप Sanskrit Vyakaran Shabd Roop PDF
विभक्ति | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
प्रथमा | रामः | रामौ | रामाः |
द्वितीया | रामम् | रामौ | रामान् |
तृतीया | रामेण | रामाभ्याम् | रामैः |
चतुर्थी | रामाय | रामाभ्याम् | रामेभ्यः |
पंचमी | रामात् | रामाभ्याम् | रामेभ्यः |
षष्ठी | रामस्य | रामयोः | रामाणाम् |
सप्तमी | रामे | रामयोः | रामेषु |
सम्बोधन | हे राम ! | हे रामौ ! | हे रामाः ! |
नोट -इसी प्रकार ह्रस्व ‘अ’ पर समाप्त होने वाले पुल्लिंग संज्ञा शब्द- मोहन, शिव, नृप (राजा), बालक, सुत (बेटा), गज (हाथी) पुत्र, कृष्ण, जनक (पिता), पाठ, ग्राम, विद्यालय, अश्व (घोड़ा), ईश्वर (ईश या स्वामी), बुद्ध, मेघ (बादल), नर (मनुष्य), युवक (जवान), जन (मनुष्य), पुरुष, वृक्ष, सूर्य, चन्द्र (चन्द्रमा), सज्जन, विप्र (ब्राह्मण), क्षत्रिय, दुर्जन (दुष्ट पुरुष), प्राज्ञ (विद्वान्), लोक (संसार), उपाध्याय (गुरु), वृद्ध (बूढ़ा), शिष्य, प्रश्न, सिंह (शेर), वेद, क्रोश (कोस), धर्म , सागर (समुद्र), कृषक (किसान), छात्र (विद्यार्थी), मानव, भ्रमर, सेवक, समीर (हवा), सरोवर और यज्ञ आदि के रूप चलते हैं।
2. इकारान्त पुल्लिंग ‘हरिः’ शब्द रूप
विभक्ति | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
प्रथमा | हरिः | हरी | हरयः |
द्वितीया | हरिं | हरी | हरीन् |
तृतीया | हरिणा | हरिभ्याम् | हरिभिः |
चतुर्थी | हरये | हरिभ्याम् | हरिभ्यः |
पंचमी | हरेः | हरिभ्याम् | हरिभ्यः |
षष्ठी | हरेः | हर्योः | हरीणां |
सप्तमी | हरौ | हर्योः | हरिषु |
सम्बोधन | हे हरे ! | हे हरी ! | हे हरयः ! |
नोट-इस प्रकार ह्रस्व ‘इ’ पर समाप्त होने वाले सभी पुल्लिंग संज्ञा शब्द-कवि, बह्नि (आग), यति, नृपति , भूपति, गणपति, प्रजापति (ब्रह्मा), रवि (सूर्य), कपि, अग्नि , मुनि, जलधि, ऋषि, गिरि, विधि, मरीचि, सेनापति, धनपति, विद्यापति, असि, शिवि, ययाति और अरि (शत्रु) आदि के रूप चलते हैं।
3. उकारान्त पुल्लिग’ गुरु’ शब्द रूप Sanskrit Vyakaran Shabd Roop PDF
विभक्ति | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
प्रथमा | गुरुः | गुरू | गुरवः |
द्वितीया | गुरुम् | गुरू | गुरून् |
तृतीया | गुरुणा | गुरुभ्याम् | गुरुभिः |
चतुर्थी | गुरवे | गुरुभ्याम् | गुरुभ्यः |
पंचमी | गुरोः | गुरुभ्याम् | गुरुभ्यः |
षष्ठी | गुरोः | गुर्वोः | गुरुणाम् |
सप्तमी | गुरौ | गुर्वोः | गुरुषु |
सम्बोधन | हे गुरो ! | हे गुरू ! | हे गुरवः ! |
नोट-इसी प्रकार भानु, साधु, शिशु, इन्दु, रिपु, शत्रु, शम्भु, विष्णु आदि शब्दों के रूप चलते हैं।
4. ऋकारान्त पुल्लिग ‘पितृ’ (पिता) शब्द रूप
विभक्ति | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
प्रथमा | पिता | पितरौ | पितरः |
द्वितीया | पितरम् | पितरौ | पितृन् |
तृतीया | पित्रा | पितृभ्याम् | पितृभि |
चतुर्थी | पित्रे | पितृभ्याम् | पितृभ्यः |
पंचमी | पितुः | पितृभ्याम् | पितृभ्यः |
षष्ठी | पितुः | पित्रोः | पितृणाम् |
सप्तमी | पितरि | पित्रोः | पितृषु |
सम्बोधन | हे पितः ! | हे पितरौ ! | हे पितरः ! |
नोट-इसी प्रकार ह्रस्व (छोटी) ‘ऋ’ से अन्त होने वाले अन्य पुल्लिग शब्दों-भ्रातृ (भाई) और जामातृ (जमाई, दामाद) आदि के रूप चलेंगे।
5. आकारांत स्त्रीलिंग ‘रमा’ शब्द रूप
विभक्ति | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
प्रथमा | रमा | रमे | रमा: |
द्वितीया | रमाम् | रमे | रमा: |
तृतीया | रमया | रमाभ्याम् | रमाभि: |
चतुर्थी | रमायै | रमाभ्याम् | रमाभ्य: |
पंचमी | रमाया: | रमाभ्याम् | रमाभ्य: |
षष्ठी | रमाया: | रमयो: | रमाणाम् |
सप्तमी | रमायाम् | रमयो: | रमासु |
सम्बोधन | हे रमे ! | हे रमे ! | हे रमा: ! |
नोट – इसी प्रकार दीर्घ (बड़े) ‘आ’ से अन्त होने वाले अन्य स्त्रीलिंग शब्दों-बाला, लता, कन्या, रक्षा, कथा, क्रीडा, पाठशाला, शीला, लीला, सीता, गीता, विमला, प्रमिला, प्रभा, विभा, सुधा, चेष्टा, विद्या, कक्षां, व्यथा और बालिका आदि के रूप चलते हैं।
6. इकारान्त स्त्रीलिंग ‘मति’ (बुद्धि) शब्द रूप
विभक्ति | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
प्रथमा | मतिः | मती | मतयः |
द्वितीया | मतिम् | मती | मतीः |
तृतीया | मत्या | मतिभ्याम् | मतिभिः |
चतुर्थी | मतये, मतै | मतिभ्याम् | मतिभ्यः |
पंचमी | मतेः, मत्योः | मतिभ्याम् | मतिभ्यः |
षष्ठी | मतेः, मत्याः | मत्योः | मतीनाम् |
सप्तमी | मतौ, मत्याम् | मत्योः | मतिषु |
सम्बोधन | हे मते ! | हे मती ! | हे मतयः ! |
नोट-इसी प्रकार ह्रस्व (छोटी) ‘इ’ से अन्त होने वाले स्त्रीलिंग शब्दों-प्रकृति, शक्ति, तिथि, भीति, गति, कृति, वृत्ति, बुद्धि, सिद्धि, सृष्टि, श्रुति , स्मृति , भूमि, प्रीति, भक्ति और सूक्ति आदि के रूप चलते हैं।
7. ईकारान्त स्त्रीलिंग ‘नदी’ शब्द रूप Sanskrit Vyakaran Shabd Roop PDF
विभक्ति | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
प्रथमा | नदी | नद्यौ | नद्यः |
द्वितीया | नदीम् | नद्यौ | नदीः |
तृतीया | नद्या | नदीभ्याम् | नदीभिः |
चतुर्थी | नद्यै | नदीभ्याम् | नदीभ्यः |
पंचमी | नद्याः | नदीभ्याम् | नदीभ्यः |
षष्ठी | नद्याः | नद्योः | नदीनाम् |
सप्तमी | नद्याम् | नद्योः | नदीषु |
सम्बोधन | हे नदि ! | हे नद्यौ ! | हे नद्यः ! |
नोट-इसी प्रकार दीर्घ (बड़ी) ‘ई’ से अन्त होने वाले स्त्रीलिंग शब्दों-देवी, भगवती, सरस्वती, श्रीमती, कुमारी (अविवाहिता), गौरी (पार्वती), मही (पृथ्वी), पुत्री (बेटी), पत्नी, राज्ञी (रानी), सखी (सहेली), दासी (सेविका), रजनी (रात्रि), महिषी (रानी, भैंस), सती, वाणी, नंगरी, पुरी, जानकी और पार्वती आदि शब्दों के रूप चलते हैं।
8. ऋकारान्त स्त्रीलिंग मातृ (माता) शब्द रूप
विभक्ति | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
प्रथमा | माता | मातरौ | मातरः |
द्वितीया | मातरम् | मातरौ | मातृ |
तृतीया | मात्रा | मातृभ्याम् | मातृभिः |
चतुर्थी | मात्रे | मातृभ्याम् | मातृभ्यः |
पंचमी | मातुः | मातृभ्याम् | मातृभ्यः |
षष्ठी | मातुः | मात्रोः | मातृणाम् |
सप्तमी | मातरि | मात्रोः | मातृषु |
सम्बोधन | हे माता ! | हे मातरौ ! | हे मातरः ! |
इसी प्रकार ह्रस्व (छोटी) ‘ऋ’ से अन्त होने वाले अन्य सभी स्त्रीलिंग शब्दों-दुहितु (पुत्री) और यातृ (देवरानी) आदि के रूप चलेंगे।
नोट-‘मातृ’ शब्द के द्वितीया विभक्ति के बहुवचन के ‘मातृः’ इस रूप को छोड़कर शेष सभी रूप ‘पितृ’ शब्द के समान ही चलते हैं।
9. अकारान्त नपुंसकलिंग’फल’ (परिणाम शब्द) रूप
विभक्ति | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
प्रथमा | फलम् | फले | फलानि |
द्वितीया | फलम् | फले | फलानि |
तृतीया | फलेन | फलाभ्याम् | फलैः |
चतुर्थी | फलाय | फलाभ्याम् | फलेभ्यः |
पंचमी | फलात् | फलाभ्याम् | फलेभ्यः |
षष्ठी | फलस्य | फलयोः | फलानाम् |
सप्तमी | फले | फलयोः | फलेषु |
सम्बोधन | हे फलम् ! | हे फले ! | हे फलानि ! |
नोट-इस ‘फल’ शब्द के तृतीया विभक्ति’ के एकवचन से लेकर ‘सम्बोधन विभक्ति’ के एकवचन तक के ये 16 (सोलह) रूप ‘बालक’ शब्द के रूपों के समान ही चलते हैं।
10. उकारान्त नपुंसकलिंग’मधु’ (शहद) शब्द रूप
विभक्ति | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
प्रथमा | मधु | मधुनी | मधूनि |
द्वितीया | मधु | मधुनी | मधूनि |
तृतीया | मधुना | मधुभ्याम् | मधुभिः |
चतुर्थी | मधुने | मधुभ्याम् | मधुभ्यः |
पंचमी | मधुनः | मधुभ्याम् | मधुभ्यः |
षष्ठी | मधुनः | मधुनोः | मधूनाम् |
सप्तमी | मधुनि | मधुनोः | मधुषु |
सम्बोधन | हे मधु/ मधो ! | हे मधुनी ! | हे मधूनि ! |
11. तत्/तद् (वह) पुल्लिंग शब्द रूप
विभक्ति | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
प्रथमा | सः | तौ | ते |
द्वितीया | तम् | तौ | तान् |
तृतीया | तेन | ताभ्याम् | तैः |
चतुर्थी | तस्मै | ताभ्याम् | तेभ्यः |
पंचमी | तस्मात् | ताभ्याम् | तेभ्यः |
षष्ठी | तस्य | तयोः | तेषाम् |
सप्तमी | तस्मिन् | तयोः | तेषु |
नोट-प्रथमा विभक्ति एकवचन को छोड़कर सभी रूपों का आधार ‘त’ अक्षर है तथा ‘सर्व’ शब्द के समान रूप हैं।
12. तत् / तद् (वह) स्त्रीलिंग शब्द रूप
विभक्ति | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
प्रथमा | सा | ते | ताः |
द्वितीया | ताम् | ते | ताः |
तृतीया | तया | ताभ्याम् | ताभिः |
चतुर्थी | तस्यै | ताभ्याम् | ताभ्यः |
पंचमी | तस्याः | ताभ्याम् | ताभ्यः |
षष्ठी | तस्याः | तयोः | तासाम् |
सप्तमी | तस्याम् | तयोः | तासु |
13. तत् / तद् (वह) नपुंसकलिंग रूप
विभक्ति | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
प्रथमा | तत् | ते | तानि |
द्वितीया | तत् | ते | तानि |
तृतीया | तेन | ताभ्याम् | तैः |
चतुर्थी | तस्मै | ताभ्याम् | तेभ्यः |
पंचमी | तस्मात् | ताभ्याम् | तेभ्यः |
षष्ठी | तस्य | तयोः | तेषाम् |
सप्तमी | तस्मिन् | तयोः | तेषु |
नोट-‘तद्’ नपुंसकलिंग के तृतीया विभक्ति से सप्तमी विभक्ति तक के ये सभी रूप ‘तद्’ पुल्लिग के समान चलते हैं।
14. इदम् (य) पुल्लिंग रूप
विभक्ति | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
प्रथमा | अयम् | इमौ | इमे |
द्वितीया | इमम् | इमौ | इमान् |
तृतीया | अनेन | आभ्याम् | एभिः |
चतुर्थी | अस्मै | आभ्याम् | एभ्यः |
पंचमी | अस्मात् | आभ्याम् | एभ्यः |
षष्ठी | अस्य | अनयोः | एषाम् |
सप्तमी | अस्मिन् | अनयोः | एषु |
15. इदम् (यह) स्त्रीलिंग रूप
विभक्ति | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
प्रथमा | इयम् | इमे | इमाः |
द्वितीया | इमाम् | इमे | इमाः |
तृतीया | अनया | आभ्याम् | आभिः |
चतुर्थी | अस्यै | आभ्याम् | आभ्यः |
पंचमी | अस्याः | आभ्याम् | आभ्यः |
षष्ठी | अस्याः | अनयोः | आसाम् |
सप्तमी | अस्याम् | अनयोः | आसु |
नोट-शेष सभी विभक्तियों में ‘इदम्’ के ये रूप पुल्लिग ‘इदम्’ के समान ही चलेंगे।
16. इदम् (यह) नपुंसकलिंग रूप Sanskrit Vyakaran Shabd Roop PDF
विभक्ति | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
प्रथमा | इदम् | इमे | इमानि |
द्वितीया | इदम् | इमे | इमानि |
तृतीया | अनेन | आभ्याम् | एभिः |
चतुर्थी | अस्मै | आभ्याम् | एभ्यः |
पंचमी | अस्मात् | आभ्याम् | एभ्यः |
षष्ठी | अस्य | अनयोः | एषाम् |
सप्तमी | अस्मिन् | अनयोः | एषु |
17. किम् (कौन) पुल्लिंग शब्द रूप
विभक्ति | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
प्रथमा | कः | कौ | के |
द्वितीया | कम् | कौ | कान् |
तृतीया | केन | काभ्याम् | कैः |
चतुर्थी | कस्मै | काभ्याम् | केभ्यः |
पंचमी | कस्मात् | काभ्याम् | केभ्यः |
षष्ठी | कस्य | कयोः | केषाम् |
सप्तमी | कस्मिन् | कयोः | केषु |
नोट-‘किम्’ शब्द के रूपों का मूल आधार सभी लिंगों एवं विभक्तियों में ‘क’ होता है तथा इसके रूप ‘सर्व’ शब्द के समान ही चलते हैं।
18. किम् (कौन) स्त्रीलिंग शब्द रूप
विभक्ति | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
प्रथमा | का | के | काः |
द्वितीया | काम् | के | काः |
तृतीया | कया | काभ्याम् | काभिः |
चतुर्थी | कस्यै | काभ्याम् | काभ्यः |
पंचमी | कस्याः | काभ्याम् | काभ्यः |
षष्ठी | कस्याः | कयोः | कासाम् |
सप्तमी | कस्याम् | कयोः | कासु |
19. किम् (कौन) नपुंसकलिंग शब्द रूप
विभक्ति | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
प्रथमा | किम् | के | कानि |
द्वितीया | किम् | के | कानि |
तृतीया | केन | काभ्याम् | कैः |
चतुर्थी | कस्मै | काभ्याम् | केभ्यः |
पंचमी | कस्मात् | काभ्याम् | केभ्यः |
षष्ठी | कस्य | कयोः | केषाम् |
सप्तमी | कस्मिन् | कयोः | केषु |
नोट-‘किम्’ शब्द के नपुंसकलिंग के तृतीया विभक्ति से सप्तमी विभक्ति तक के सभी रूप ‘किम्’ पुल्लिंग के समान ही चलते हैं।
20. अस्मद् (मैं) शब्द रूप
विभक्ति | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
प्रथमा | अहम् | आवाम् | वयम् |
द्वितीया | माम् | आवाम् | अस्मान् |
तृतीया | मया | आवाभ्याम् | अस्माभिः |
चतुर्थी | मह्यम् | आवाभ्याम् | अस्मभ्यम् |
पंचमी | मत् | आवाभ्याम् | अस्मत् |
षष्ठी | मम | आवयोः | अस्माकम् |
सप्तमी | मयि | आवयोः | अस्मासु |
नोट- अस्मद्’ शब्द के रूप तीनों लिंगों में समान होते कानि हैं।
21. युष्मद् (तुम) शब्द रूप
विभक्ति | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
प्रथमा | त्वम् | युवाम् | यूयम् |
द्वितीया | त्वाम् | युवाम् | युष्मान् |
तृतीया | त्वाय | युवाभ्याम् | युस्माभिः |
चतुर्थी | तुभ्यं | युवाभ्याम् | युष्मभ्यम् |
पंचमी | त्वत् | युवाभ्याम् | युष्मत् |
षष्ठी | तव | युवयोः | युष्माकम् |
सप्तमी | त्वयि | युवयोः | युष्मासु |
नोट-‘युष्मद्’ शब्द के रूप तीनों लिंगों में समान होते
22. भवत् (आप-प्रथम पुरुष) पुल्लिंग रूप Sanskrit Vyakaran Shabd Roop PDF
विभक्ति | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
प्रथमा | भवान् | भवन्तौ | भवन्तः |
द्वितीया | भवन्तम् | भवन्तौ | भवतः |
तृतीया | भवता | भवद्भ्याम् | भवदभिः |
चतुर्थी | भवते | भवद्भ्याम् | भवद्भ्यः |
पंचमी | भवतः | भवद्भ्याम् | भवद्भ्यः |
षष्ठी | भवतः | भवतोः | भवताम् |
सप्तमी | भवतिः | भवतोः | भवत्सु |
(नोट-सर्वनाम शब्दों में सम्बोधन नहीं होता है।) ‘भवत्’ के साथ सदैव प्रथम पुरुष की क्रिया प्रयोग की जाती है।
23. भवत् (आप) स्त्रीलिंग रूप
विभक्ति | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
प्रथमा | भवती | भवत्यौ | भवत्सः |
द्वितीया | भवतीम् | भवत्यौ | भवतीः |
तृतीया | भवत्या | भवतीभ्याम् | भवतीभिः |
चतुर्थी | भवत्यै | भवतीभ्याम् | भवतीभ्यः |
पंचमी | भवत्याः | भवतीभ्याम् | भवतीभ्यः |
षष्ठी | भवत्याः | भवतोः | भवतीभ्यः |
सप्तमी | भवति | भवतोः | भवत्सु |
नोट- भवत्+ई =भवती के सम्पूर्ण रूप ‘नदी’ (दीर्घ ईकारान्त स्त्रीलिंग) के समान चलते हैं।
24. सर्व (सब) पुल्लिंग शब्द रूप
विभक्ति | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
प्रथमा | सर्व: | सर्वौ | सर्वे |
द्वितीया | सर्वम् | सर्वौ | सर्वान् |
तृतीया | सर्वेण | सर्वाभ्याम् | सर्वै: |
चतुर्थी | सर्वस्मै | सर्वाभ्याम् | सर्वेभ्य: |
पंचमी | सर्वस्मात् | सर्वाभ्याम् | सर्वेभ्य: |
षष्ठी | सर्वस्य | सर्वयो: | सर्वेषाम् |
सप्तमी | सर्वस्मिन् | सर्वयो: | सर्वेषु |
25. सर्व (सब) स्त्रीलिंग शब्द रूप
विभक्ति | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
प्रथमा | सर्वा | सर्वे | सर्वा: |
द्वितीया | सर्वाम् | सर्वे | सर्वा: |
तृतीया | सर्वया | सर्वाभ्याम् | सर्वाभि: |
चतुर्थी | सर्वस्यै | सर्वाभ्याम् | सर्वाभ्य: |
पंचमी | सर्वस्या: | सर्वाभ्याम् | सर्वाभ्य: |
षष्ठी | सर्वस्या: | सर्वयो: | सर्वासाम् |
सप्तमी | सर्वस्याम् | सर्वयो: | सर्वासु |
26. सर्व (सब) नपुंसकलिंग शब्द रूप
विभक्ति | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
प्रथमा | सर्वम् | सर्वे | सर्वाणि |
द्वितीया | सर्वम् | सर्वे | सर्वाणि |
तृतीया | सर्वेण | सर्वाभ्याम् | सर्वै: |
चतुर्थी | सर्वस्मै | सर्वाभ्याम् | सर्वेभ्य: |
पंचमी | सर्वस्मात् | सर्वाभ्याम् | सर्वेभ्य: |
षष्ठी | सर्वस्य | सर्वयो: | सर्वेषाम् |
सप्तमी | सर्वस्मिन् | सर्वयो: | सर्वेषु |
नोट-शेष विभक्तियों के रूप पुल्लिंग ‘सर्व’ की तरह चलेंगे।
27. यत् (जो) पुल्लिग शब्द रूप
विभक्ति | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
प्रथमा | यः | यौ | ये |
द्वितीया | यम् | यौ | यान् |
तृतीया | येन | याभ्याम् | यैः |
चतुर्थी | यस्मै | याभ्याम् | येभ्यः |
पंचमी | यस्मात् | याभ्याम् | येभ्यः |
षष्ठी | यस्य | ययोः | येषाम् |
सप्तमी | यस्मिन् | ययोः | येषु |
नोट-इस ‘यत्’ शब्द का सभी लिंगों में, सभी विभक्तियों के रूप में ‘य’ आधार रहेगा तथा इसके ‘सर्व’ के समान ही रूप चलेंगे।
28. यत् (जो) स्त्रीलिंग शब्द रूप Sanskrit Vyakaran Shabd Roop PDF
विभक्ति | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
प्रथमा | या | ये | याः |
द्वितीया | याम् | ये | याः |
तृतीया | यया | याभ्याम् | याभिः |
चतुर्थी | यस्यै | याभ्याम् | याभ्यः |
पंचमी | यस्याः | याभ्याम् | याभ्यः |
षष्ठी | यस्याः | ययोः | यासाम् |
सप्तमी | यस्याम् | ययोः | यासु |
29. यत् (जो) नपुंसकलिंग शब्द रूप
विभक्ति | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
प्रथमा | यत् | ये | यानि |
द्वितीया | यत् | ये | यानि |
तृतीया | येन | याभ्याम् | यैः |
चतुर्थी | यस्मै | याभ्याम् | येभ्यः |
पंचमी | यस्मात् | याभ्याम् | येभ्यः |
षष्ठी | यस्य | ययोः | येषाम् |
सप्तमी | यस्मिन् | ययोः | येषु |
नोट-‘यत्’ नपुंसकलिंग के तृतीया विभक्ति से सप्तमी विभक्ति तक के सम्पूर्ण रूप ‘यत्’ पुल्लिंग के समान ही चलेंगे।
30. एतत्’ (यह) पुल्लिंग शब्द रूप
विभक्ति | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
प्रथमा | एषः | एतौ | एते |
द्वितीया | एतम्/एनम् | एतौ/एनौ | एतान्/एनान् |
तृतीया | एतेन/एनेन | एताभ्याम् | एतैः |
चतुर्थी | एतस्मै | एताभ्याम् | एतेभ्यः |
पंचमी | एतस्मात् | एताभ्याम् | एतेभ्यः |
षष्ठी | एतस्य | एतयोः/एनयोः | एतेषाम् |
सप्तमी | एतस्मिन् | एतयोः/एनयोः | एतेषु |
नोट- एतत् ‘ के सभी रूप ‘तत्’ शब्द में पूर्व में ‘ए’ जोड़कर ‘तत्’ के रूपों के समान ही चलते हैं।
31. एतत्’ (यह) शब्द स्त्रीलिंग रूप
विभक्ति | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
प्रथमा | एषा | एते | एताः |
द्वितीया | एताम् | एते | एताः |
तृतीया | एतया | एताभ्याम् | एताभिः |
चतुर्थी | एतस्यै | एताभ्याम् | एताभ्यः |
पंचमी | एतस्याः | एताभ्याम् | एताभ्यः |
षष्ठी | एतस्याः | एतयोः | एतासाम् |
सप्तमी | एतस्याम् | एतयोः | एतासु |
32. ‘एतत्’ (यह) शब्द नपुंसकलिंग रूप
विभक्ति | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
प्रथमा | एतत् | एते | एतानि |
द्वितीया | एतत् | एते | एतानि |
तृतीया | एतेन/एनेन | एताभ्याम् | एतैः |
चतुर्थी | एतस्मै | एताभ्याम् | एतेभ्यः |
पंचमी | एतस्मात् | एताभ्याम् | एतेभ्यः |
षष्ठी | एतस्य | एतयोः/एनयोः | एतेषाम् |
सप्तमी | एतस्मिन् | एतयोः/एनयोः | एतेषु |
नोट-शेष सभी विभक्तियों में रूप पुल्लिंग ‘एतत्’ की भाँति ही चलेंगे।
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