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Sanskrit Vyakaran Chhand PDF

By Admin

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Sanskrit Vyakaran Chhand PDF

Sanskrit Vyakaran Chhand PDF ( संस्कृत व्याकरण छन्द ) : दोस्तो आज इस पोस्ट मे संस्कृत व्याकरण (Sanskrit Grammar) के छन्द टॉपिक का विस्तारपूर्वक अध्ययन करेंगे । यह पोस्ट सभी शिक्षक भर्ती परीक्षा व्याख्याता (School Lecturer), द्वितीय श्रेणी अध्यापक (2nd Grade Teacher), REET 2021, RPSC, RBSE REET, School Lecturer, Sr. Teacher, TGT PGT Teacher, 3rd Grade Teacher आदि परीक्षाओ के लिए महत्त्वपूर्ण है । अगर पोस्ट पसंद आए तो अपने दोस्तो के साथ शेयर जरूर करे ।

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Sanskrit Vyakaran Chhand PDF ( संस्कृत व्याकरण छन्द )

छोटी-बड़ी ध्वनियां, लघु-गुरु उच्चारणों के क्रमों में, मात्रा बताती हैं और जब किसी काव्य रचना में ये एक व्यवस्था के साथ सामंजस्य प्राप्त करती हैं तब उसे एक शास्त्रीय नाम दे दिया जाता है और लघु-गुरु मात्राओं के अनुसार वर्णों की यह व्यवस्था एक विशिष्ट नाम वाला छन्द कहलाने लगती है ।

Sanskrit Vyakaran Chhand PDF ( संस्कृत व्याकरण छन्द )

छंद के निम्नलिखित अंग होते हैं –

  • गति – पद्य के पाठ में जो बहाव होता है उसे गति कहते हैं।
  • यति – पद्य पाठ करते समय गति को तोड़कर जो विश्राम दिया जाता है उसे यति कहते हैं।
  • तुक – समान उच्चारण वाले शब्दों के प्रयोग को तुक कहा जाता है। पद्य प्रायः तुकान्त होते हैं।
  • मात्रा – वर्ण के उच्चारण में जो समय लगता है उसे मात्रा कहते हैं। मात्रा २ प्रकार की होती है लघु और गुरु। ह्रस्व उच्चारण वाले वर्णों की मात्रा लघु होती है तथा दीर्घ उच्चारण वाले वर्णों की मात्रा गुरु होती है। लघु मात्रा का मान 1 होता है और उसे । चिह्न से प्रदर्शित किया जाता है। इसी प्रकार गुरु मात्रा का मान मान 2 होता है और उसे ऽ चिह्न से प्रदर्शित किया जाता है।
  • गण – मात्राओं और वर्णों की संख्या और क्रम की सुविधा के लिये तीन वर्णों के समूह को एक गण मान लिया जाता है। गणों की संख्या 8 है – यगण (।ऽऽ), मगण (ऽऽऽ), तगण (ऽऽ।), रगण (ऽ।ऽ), जगण (।ऽ।), भगण (ऽ।।), नगण (।।।) और सगण (।।ऽ)।
  • गणों को आसानी से याद करने के लिए एक सूत्र बना लिया गया है- यमाताराजभानसलगा। सूत्र के पहले आठ वर्णों में आठ गणों के नाम हैं। अन्तिम दो वर्ण ‘ल’ और ‘ग’ छन्दशास्त्र के दग्धाक्षर हैं। जिस गण की मात्राओं का स्वरूप जानना हो उसके आगे के दो अक्षरों को इस सूत्र से ले लें जैसे ‘मगण’ का स्वरूप जानने के लिए ‘मा’ तथा उसके आगे के दो अक्षर- ‘ता रा’ = मातारा (ऽऽऽ)।

 

गण चिह्नउदाहरण
यगण (य)।ऽऽनहाना
मगण (मा)ऽऽऽआजादी
तगण (ता)ऽऽ।चालाक
रगण (रा)ऽ।ऽपालना
जगण (ज)।ऽ।करील
भगण (भा)ऽ।।बादल
नगण (न)।।।कमल
सगण (स)।।ऽकमला

Sanskrit Vyakaran Chhand PDF ( संस्कृत व्याकरण छन्द )

छन्दों के भेद : छन्द मुख्यतः दो प्रकार के हैं:

  1. मात्रिक
  2. वार्णिक

 

  1. मात्रिक छन्द: मात्रिक छन्दों में मात्राओं की गिनती की जाती है ।

प्रमुख मात्रिक छंद

सम मात्रिक छंद :

  • अहीर (11 मात्रा),
  • तोमर (12 मात्रा),
  • मानव (14 मात्रा);
  • अरिल्ल, पद्धरि/ पद्धटिका, चौपाई (सभी 16 मात्रा);
  • पीयूषवर्ष, सुमेरु (दोनों 19 मात्रा),
  • राधिका (22 मात्रा),
  • रोला, दिक्पाल, रूपमाला (सभी 24 मात्रा),
  • गीतिका (26 मात्रा),
  • सरसी (27 मात्रा),
  • सार (28 मात्रा),
  • हरिगीतिका (28 मात्रा),
  • तांटक (30 मात्रा),
  • वीर या आल्हा (31 मात्रा)।

 अर्द्धसम मात्रिक छंद :

  • बरवै (विषम चरण में – 12 मात्रा, सम चरण में – 7 मात्रा),
  • दोहा (विषम – 13, सम – 11),
  • सोरठा (दोहा का उल्टा), उल्लाला (विषम – 15, सम – 13)।

 विषम मात्रिक छंद :

  • कुण्डलिया (दोहा + रोला), छप्पय (रोला + अल्लाला)।

 

  1. वर्णिक छंद – वार्णिक छन्दों में वर्णों की संख्या निश्चित होती है और इनमें लघु और दीर्घ का क्रम भी निश्चित होता है ।

 प्रमुख वर्णिक छंद :

  • प्रमाणिका (8 वर्ण);
  • स्वागता, भुजंगी, शालिनी, इन्द्रवज्रा, दोधक (सभी 11 वर्ण);
  • वंशस्थ, भुजंगप्रयाग, द्रुतविलम्बित, तोटक (सभी 12 वर्ण);
  • वसंततिलका (14 वर्ण);
  • मालिनी (15 वर्ण);
  • पंचचामर, चंचला (सभी 16 वर्ण);
  • मन्दाक्रान्ता, शिखरिणी (सभी 17 वर्ण),
  • शार्दूल विक्रीडित (19 वर्ण),
  • स्त्रग्धरा (21 वर्ण),
  • सवैया (22 से 26 वर्ण),
  • घनाक्षरी (31 वर्ण)
  • रूपघनाक्षरी (32 वर्ण),
  • देवघनाक्षरी (33 वर्ण),
  • कवित्त / मनहरण (31-33 वर्ण)।

मात्रिक छन्‍द के उदाहरण

Sanskrit Vyakaran Chhand PDF ( संस्कृत व्याकरण छन्द )

  1.  दोहा छन्द – दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) चरण में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) चरण में 11-11 मात्राएँ होती हैं। विषम चरणों के आदि में ।ऽ। (जगण) इस प्रकार का मात्रा-क्रम नहीं होना चाहिए और अंत में गुरु और लघु (ऽ।) वर्ण होने चाहिए । सम चरणों की तुक आपस में मिलनी चाहिए । जैसे:

।ऽ  ।ऽ   ।  । ऽ   । ऽ   ऽऽ ऽ  ऽऽ  ।

महद्धनं यदि ते भवेत्, दीनेभ्यस्तद्देहि ।

विधेहि कर्म सदा शुभं, शुभं फलं त्वं प्रेहि ॥

 

  1. हरिगीतिका छन्द – हरिगीतिका छन्द में प्रत्येक चरण में 28 मात्राएँ होती हैं और अन्त में लघु और फिर गुरु वर्ण अवश्य होना चाहिए । इसमें यति 16 तथा 12 मात्राओं के बाद होती हैं; जैसे

।  ।  ऽ  । ऽ ऽ  ऽ ।ऽ   ।  ।ऽ  । ऽ ऽ  ऽ         । ऽ

मम मातृभूमिः भारतं धनधान्यपूर्णं स्यात् सदा ।

नग्नो न क्षुधितो कोऽपि स्यादिह वर्धतां सुख-सन्ततिः ।

स्युर्ज्ञानिनो गुणशालिनो ह्युपकार-निरता मानवः,

अपकारकर्ता कोऽपि न स्याद् दुष्टवृत्तिर्दांवः ॥

 

  1. गीतिका छन्द – इस छन्द में प्रत्येक चरण में 26 मात्राएँ होती हैं और 14 तथा 12 मात्राओं के बाद यति होती है । जैसे:

ऽ  । ऽ  ॥  ऽ । ऽ  ऽ  ऽ  । ऽ ऽ ऽ  । ऽ

हे दयामय दीनबन्धो, प्रार्थना मे श्रूयतां

यच्च दुरितं दीनबन्धो, पूर्णतो व्यपनीयताम् ।

चञ्चलानि मम चेन्द्रियाणि, मानसं मे पूयतां

शरणं याचेऽहं सदा हि, सेवकोऽस्म्यनुगृह्यताम् ॥

 

  1. आर्या छन्दः– यह मात्रिक छन्द है। अतः यह आर्या जाति भी कहा जाता है। इसमें मात्राओं की गणना के आधार पर छन्द होता है। इसमें चार चरण होते हैं।।

यस्याः पादे प्रथमे द्वादश मात्रास्तथा तृतीयेऽपि।

अष्टादश द्वितीये चतुर्थके पञ्चदश साऽऽर्या।।

इसके पहले और तीसरे चरण में बारह-बारह मात्राएँ होती हैं। दूसरे चरण में अठारह मात्राएँ होती हैं। अन्तिम चौथे चरण में पन्द्रह मात्राएँ होती हैं।

Sanskrit Vyakaran Chhand PDF ( संस्कृत व्याकरण छन्द )

वर्णिक छन्‍द के उदाहरण –

आदिर्लघुर्यःयगणयमाता।ऽऽआदि लघु
मस्त्रिगुरुःमगणमाताराऽऽऽसर्वगुरु
अन्तलघुस्त:तगणताराजऽऽ। अन्तलघु
रलमध्यःरगणराजभाऽ।ऽमध्यलघु
जो गुरुम्ध्यगतोजगणजभान।ऽ।मध्यगुरु
भादिगुरुःभगणभानसऽ॥आदिगुरु
नकार: त्रिलघुनगणनसल॥।सर्वलघु
सोऽन्तगुरुःसगणसलगाः॥ऽअन्तगुरु

 

मात्राओं में जो अकेली मात्रा है, उस के आधार पर इन्हें आदिलघु या आदिगुरु कहा गया है । जिसमें सब गुरु है, वह ‘मगण’ सर्वगुरु कहलाया और सभी लघु होने से ‘नगण’ सर्वलघु कहलाया ।

  1. अनुष्‍टुप छन्द – इस छन्द को श्लोक भी कहते हैं । इसके अनेक भेद हैं, परंतु जिस का अधिकतर व्यवहार हो रहा है, उसका लक्षण इस प्रकार से है:

श्लोके षष्ठं गुरुर्ज्ञेयं सर्वत्र लघु पञ्चमम् ।

द्विचतुः पादयोर्ह्रस्वं सप्तमं दीर्घमन्ययोः ॥

यह छन्द अर्धसमवृत्त है । इस के प्रत्येक चरण में 8 वर्ण होते हैं । चारो चरणों मे 32 वर्ण होते है। पहले चार वर्ण किसी भी मात्रा के हो सकते हैं । पाँचवाँ वर्ण लघु और छठा वर्ण गुरु होता है । दूसरे और चौथे पाद में सातवाँ अक्षर (वर्ण) लघु होता है। पहले और तीसरे पाद में सातवाँ अक्षर (वर्ण) गुरु होता है। जैसे:

।ऽ ऽ ऽ              । ऽ । ऽ

लोकानुग्रहकर्तारः, प्रवर्धन्ते नरेश्वराः ।

लोकानां संक्षयाच्चैव, क्षयं यान्ति न संशयः ॥

  1. शार्दूलविक्रीडित छन्द – शार्दूलविक्रीडित छन्द के प्रत्येक चरण में 19 वर्ण निम्नलिखित क्रम से होते हैं:

सूर्याश्वैर्यदि मः सजौ सततगाः शार्दूलविक्रीडितम् ।

प्रत्येक चरण मे मगण (ऽऽऽ), सगण (।।ऽ), जगण (।ऽ।), सगण (।।ऽ), तगण (ऽऽ।), तगण (ऽऽ।) और एक गुरु होते हैं। इसमें बारहवें और सातवें वर्ण पर यति होती है। वह शार्दूलविक्रीडित छन्द होता है; जैसे:

Sanskrit Vyakaran Chhand PDF ( संस्कृत व्याकरण छन्द )

ऽ ऽ ऽ  ।  ।   ऽ  । ऽ  ।  ॥ ऽ  ऽ ऽ  । ऽ  ऽ । ऽ

रे रे चातक ! सावधान-मनसा मित्र क्षणं श्रूयताम्

अम्भोदा बहवो वसन्ति गगने सर्वे तु नैतादृशाः ।

केचिद् वृष्टिभिरार्द्रयन्ति वसुधां गर्जन्ति केचिद् वृथा

यं यं पश्यसि तस्य तस्य पुरतो मा ब्रूहि दीनं वचः॥

  1. शिखरिणी छन्द – शिखरिणी छन्द के प्रत्येक पाद में 17 वर्ण होते हैं और पहले 6 तथा फिर 11 वर्णों के बाद यति होती है । इस का लक्षण इस प्रकार से है:

रसैः रुद्रैश्छिन्ना यमनसभला गः शिखरिणी

जिसमें यगण, मगण, नगण, सगण, भगण और लघु तथा गुरु के क्रम से प्रत्येक चरण में वर्ण रखे जाते हैं और 6 तथा 11 वर्णों के बाद यति होती है, उसे शिखरिणी छन्द कहते हैं; जैसे:

। ऽ  ऽ  ऽ   ऽ ऽ   ॥   ॥  । ऽ ऽ        ॥  ।ऽ

यदा किञ्चिज्ज्ञोऽहं द्विप इव मदान्धः समभवं

तदा सर्वज्ञोऽस्मीत्यभवदवलिप्तं मम मनः ।

यदा किञ्चित्किञ्चिद् बुधजनसकाशादधिगतं

तदा मूर्खोऽस्मीति ज्वर इव मदो मे व्यपगतः॥

  1. इन्‍द्रवज्रा छन्द – इन्द्रवज्रा छन्द के प्रत्येक चरण में 11-11 वर्ण होते हैं । इस का लक्षण इस प्रकार से है:

स्यादिन्द्रवज्रा यदि तौ जगौ गः ।

इसका अर्थ है कि इन्द्रवज्रा के प्रत्येक चरण में दो तगण, एक जगण और दो गुरु के क्रम से वर्ण रखे जाते हैं । इसका स्वरुप इस प्रकार से है:

ऽऽ ।      ऽऽ ।             ।ऽ ।       ऽऽ

तगण    तगण       जगण     दो गुरु

उदाहरण:

ऽ ऽ ।  ऽऽ   ।  । ऽ ।  ऽ ऽ

विद्येव पुंसो महिमेव राज्ञः

प्रज्ञेव वैद्यस्य दयेव साधोः ।

लज्जेव शूरस्य मुजेव यूनो,

सम्भूषणं तस्य नृपस्य सैव॥

यहाँ प्रत्येक पंक्ति में प्रथम पंक्ति वाले ही वर्णों का क्रम है । अतः यहाँ इन्द्रवज्रा छन्द है ।

Sanskrit Vyakaran Chhand PDF ( संस्कृत व्याकरण छन्द )

  1. मन्‍दाक्रांता छन्द – मन्दाक्रान्ता छन्द में प्रत्येक चरण में मगण, भगण, नगण, तगण, तगण और दो गुरु वर्णों पर यति होती है । यही बात इस लक्षण में कही गई है:

मन्दाक्रान्ताऽभ्बुधिरसनगैर्मो भनौ तौ ग-युग्मम् ।

क्यों कि अम्बुधि (सागर) 4 हैं, रस 6 हैं, और नग (पर्वत) 7 हैं, अतः इस क्रम से यति होगी और मगण, भगण, नगण, तगण, तगण और दो गुरु वर्ण होंगे ।

उदाहरण:

ऽ ऽ ऽ ऽ   ॥  ।  ॥ ऽ  ऽ  ।  ऽ  ऽ । ऽ ऽ

यद्वा तद्वा विषमपतितः साधु वा गर्हितं वा

कालापेक्षी हृदयनिहितं बुद्धिमान् कर्म कुर्यात् ।

किं गाण्डीवस्फुरदुरुघनस्फालनक्रूरपाणिः

नासील्लीलानटनविलखन् मेखली सव्यसाची॥

  1. उपेन्‍द्रवज्रा छन्द – इस छन्द के भी प्रत्येक चरण में 11-11 वर्ण होते हैं । लक्षण इस प्रकार से हैं:

उपेन्द्रवज्रा जतजास्ततो गौ

इस का अर्थ यह है कि उपेन्द्रवज्रा के प्रत्येक चरण में जगण, तगण, जगण और दो गुरु वर्णों के क्रम से वर्ण होते हैं । इस का स्वरुप इस प्रकार से है:

।ऽ ।         ऽऽ ।              ।ऽ ।         ऽऽ

जगण       तगण       जगण       दो गुरु

उदाहरण:

।  ऽ ।  ऽ ऽ   ।  । ऽ   । ऽ ऽ

त्वमेव माता च पिता त्वमेव

त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव ।

त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव

त्वमेव सर्वं मम देव-देव॥

(अंतिम ‘व’ लघु होते हुए भी गुरु माना गया है ।

  1. उपजाति छन्‍द – जिस छन्द में कोई चरण इन्द्रवज्रा का हो और कोई उपेन्द्रवज्रा का, उसे उपजाति छन्द कह्ते हैं । इस छन्द के भी प्रत्येक चरण में 11-11 वर्ण होते हैं । चारो चरणों मे 44 वर्ण होते है । इसका लक्षण और उदाहरण:

अनन्तरोदीरितलक्ष्मभाजौ

पादौ यदीयावुपजातयस्ताः ।

इत्थं किलान्यास्वपि मिश्रितासु

वदन्ति जातिष्विदमेव नाम॥

अर्थात् इन्द्रवज्रा और उपेन्द्रवज्रा अथवा अन्य प्रकार के छन्द जब मिलकर एक रुप ग्रहण कर लेते हैं, तो उसे उपजाति कहते हैं ।

Sanskrit Vyakaran Chhand PDF ( संस्कृत व्याकरण छन्द )

साहित्यसङ्गीत कला-विहीनः

साक्षात्पशुः पृच्छ-विषाणहीनः ।

तृणं न खादन्नपि जीवमानः

तद्भागधेयं परमं पशुनाम्॥

 

अस्त्युत्तरस्यां दिशि देवतात्मा

हिमालयो नाम नगाधिराजः ।

पूर्वापरौ तोयनिधी वगाह्य

स्थितः पृथिव्या इव मानदण्डः॥

 

  1. मालिनी छन्‍द – मालिनी 15 वर्णों का छन्द है । चारो चरणों मे 60 वर्ण होते है। जिसका लक्षण इस प्रकार से है:

न-न-मयययुतेयं मालिनी भोगिलोकैः ।

इसका अर्थ है कि मालिनी छन्द में प्रत्येक चरण में नगण, नगण, मगण और दो यगणों के क्रम से 15 वर्ण होते हैं और इसमें यति आठवें और सातवें वर्णों के बाद होती है; जैसे :

 

।  ॥  ।   ॥ ऽ ऽ  ऽ  । ऽ  ऽ  । ऽ ऽ

वयमिह परितुष्टाः वल्कलैस्त्वं दुकूलैः

सम इह परितोषो निर्विशेषो विशेषः ।

स तु भवति दरिद्रो यस्य तृष्णा विशाला

मनसि तु परितुष्टे कोऽर्थवान् को दरिद्रः॥

 

  1. द्रुतविलंबित छन्‍द – इस छन्द के प्रत्येक चरण में 12-12 वर्ण होते हैं, चारो चरणों मे 48 वर्ण होते है । जिस का लक्षण और स्वरुप निम्नलिखित है:

द्रुतविलम्बितमाहो नभौ भरौ

अर्थात् द्रुतविलम्बित छ्न्द के प्रत्येक चरण में नगण, भगण, भगण और रगण के क्रम से 12 वर्ण होते हैं ।

 

।  ।  ।  ऽ ॥ ऽ   ।  ।ऽ   । ऽ

विपदि धैर्यमथाभ्युदये क्षमा

सदसि वाक्पटुता युधि विक्रमः ।

यशसि चाभिरुचिर्व्यसनं श्रुतौ

प्रकृतिसिद्धमिदं हि महात्मनाम्॥

 

  1. वसन्‍ततिलका छन्‍द – यह 14 वर्णों का छन्द है । चारो चरणों मे 56 वर्ण होते है। तगण, भगण, जगण, जगण और दो गुरुओं के क्रम से इसका प्रत्येक चरण बनता है । पद्य में लक्षण तथा उदाहरण देखिए:

उक्ता वसन्ततिलका तभजाः जगौ गः ।

उदाहरण:

ऽ ऽ  । ऽ ।  ।  ।ऽ  ।  । ऽ  । ऽ ऽ

हे हेमकार परदुःख-विचार-मूढ

किं मां मुहुः क्षिपसि वार-शतानि वह्नौ ।

सन्दीप्यते मयि तु सुप्रगुणातिरेको-

लाभः परं तव मुखे खलु भस्मपातः॥

Sanskrit Vyakaran Chhand PDF ( संस्कृत व्याकरण छन्द )

  1. भुजङ्गप्रयातं छन्‍द – इसमे प्रत्येक चरण मे 12 वर्ण होते है। चारो चरणों मे 48 वर्ण होते है । इस छन्द में चार यगणों के क्रम से प्रत्येक चरण बनता है, जिसका पद्य-लक्षण और स्वरुप यह है:

भुजङ्गप्रयातं चतुर्भिर्यकारैः

उदाहरण:

 

। ऽ   ऽ  । ऽऽ  । ऽ ऽ  । ऽ ऽ

प्रभो ! देशरक्षा बलं मे प्रयच्छ

नमस्तेऽस्तु देवेश ! बुद्धिं च यच्छ ।

सुतास्ते वयं शूरवीरा भवाम

गुरुन् मातरं चापि तातं नमाम॥

 

  1. वंशस्थ छन्‍द – इस छन्द के प्रत्येक चरण में जगण (।ऽ।), तगण (ऽऽ1), जगण (।ऽ1) और रगण (ऽ।ऽ) के क्रम से 12 वर्ण होते हैं । पद्य में लक्षण और उदाहरण देखिए:

जतौ तु वंशस्थमुदीरितं जरौ

उदाहरण:

 

।  ऽ  ।  ऽ ऽ  ॥ ऽ   । ऽ  । ऽ

न तस्य कार्यं करणं च विद्यते

न तत्समश्चाभ्यधिकश्च दृश्यते ।

पराऽस्य शक्तिर्विविधैव श्रूयते

स्वाभाविकी ज्ञान-बल-क्रिया च॥

यति / विराम

वंशस्थ4 + 7
शार्दूलविक्रीडित12 + 7
शिखरिणी6  + 11
मन्‍दाक्रांता4 + 6 + 7
मालिनी8 + 7


क्र.सं.विषय-सूचीDownload PDF
1वर्ण विचार व उच्चारण स्थानClick Here
2संधि – विच्छेदClick Here
3समासClick Here
4कारक एवं विभक्तिClick Here
5प्रत्ययClick Here
6उपसर्गClick Here
7शब्द रूपClick Here
8धातु रूपClick Here
9सर्वनामClick Here
10विशेषण – विशेष्यClick Here
11संख्या ज्ञानम्Click Here
12अव्ययClick Here
13लकारClick Here
14माहेश्वर सूत्रClick Here
15समय ज्ञानम्Click Here
16विलोम शब्दClick Here
17संस्कृत सूक्तयClick Here
18छन्दClick Here
19वाच्यClick Here
20अशुद्धि संषोधनClick Here
21संस्कृत अनुवादClick Here
22संस्कृत शिक्षण विधियांClick Here
23Download Full PDFClick Here

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