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Sanskrit Vyakaran Pratyay PDF

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Sanskrit Vyakaran Pratyay PDF

Sanskrit Vyakaran Pratyay PDF ( संस्कृत व्याकरण प्रत्यय ) : दोस्तो आज इस पोस्ट मे संस्कृत व्याकरण (Sanskrit Grammar) के प्रत्यय टॉपिक का विस्तारपूर्वक अध्ययन करेंगे । यह पोस्ट सभी शिक्षक भर्ती परीक्षा व्याख्याता (School Lecturer), द्वितीय श्रेणी अध्यापक (2nd Grade Teacher), REET 2021, RPSC, RBSE REET, School Lecturer, Sr. Teacher, TGT PGT Teacher, 3rd Grade Teacher आदि परीक्षाओ के लिए महत्त्वपूर्ण है । अगर पोस्ट पसंद आए तो अपने दोस्तो के साथ शेयर जरूर करे ।

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Sanskrit Vyakaran Pratyay PDF ( संस्कृत व्याकरण प्रत्यय ) :

प्रत्यय – धातु अथवा प्रातिपदिक (शब्द) के पश्चात् जिसका प्रयोग किया जाता है वह प्रत्यय कहा जाता है। प्रत्यय तीन प्रकार के होते हैं-

  • कृत् प्रत्यय
  • तद्धित प्रत्यय
  • स्त्री प्रत्यय

(1) कृत् प्रत्यय – जिन प्रत्ययों का प्रयोग धातु (क्रिया) के पश्चात् किया जाता है वे कृत् प्रत्यय कहे जाते हैं । जैसे – कृत् प्रत्ययों में ‘क्त्वा’, ‘ल्यप्’, ‘तुमुन्’, ‘क्त’, ‘क्तवतु’, ‘शतृ’, ‘शानच्’ आदि प्रत्यय आते हैं। 

(2) तद्धित प्रत्यय – संज्ञा शब्द, सर्वनाम शब्द तथा विशेषण शब्द में जोड़े जाने वाले प्रत्यय तद्धित प्रत्यय कहे जाते हैं। जैसे ‘तरप्’, ‘तमप्’, ‘इनि’ आदि तद्धित प्रत्यये हैं।

(3) स्त्री प्रत्यय – जो प्रत्यय विभिन्न शब्दों के अन्त में स्त्रीत्व का बोध कराने के लिए लगाये जाते हैं, उन्हें स्त्री प्रत्यय कहते हैं, जैसे ‘टाप्’, ‘ङीप्’ आदि स्त्री प्रत्यय हैं।

1. कृत् प्रत्यय : Sanskrit Vyakaran Pratyay PDF ( संस्कृत व्याकरण प्रत्यय )

(i) क्त्वा प्रत्यय –

  • ‘क्त्वा’ प्रत्यय में से प्रथम वर्ण ‘क्’ का लोप होकर केवल ‘त्वा’ शेष रहता है।
  • पूर्वकालिक क्रिया को बनाने के लिए ‘कर’ या ‘करके’ अर्थ में उपसर्ग रहित क्रिया शब्दों में ‘क्त्वा’ प्रत्यय जोड़ा जाता है।
  • इस प्रत्यय से बना हुआ शब्द अव्यय शब्द होता है। जैसे-
  • ‘वह पुस्तक पढ़कर खेलता है।’ (‘सः पुस्तके पठित्वा क्रीडति’ बना। )
  • धातु के अंत मे इ, ई, उ,ऊ,ऋ हो तो त्वा जुड़ जाता है । कृ+क्त्वा = कृत्वा
  • धातु के अंत मे म और न हो तो लोप हो जाता है । गम+क्त्वा = गत्वा

(ii) ल्यप् प्रत्यय

  • ‘ल्यप् प्रत्यय में ल् तथा प् का लोप हो जाने पर ‘य’ शेष रहता है।
  • धातु से पूर्व कोई उपसर्ग हो तो वहाँ ‘क्त्वा’ के स्थान पर ‘ल्यप् प्रत्यय प्रयुक्त होता है।
  • यह ‘ल्यप् प्रत्यय भी ‘कर’ या ‘करके अर्थ में होता है। जैसे –
  • आकारांत, इकारांत, ऊकारांत धातु मे य जुड़ जाता है । आ+नी+ ल्यप् = आनीय
  • हस्व वर्ण ल्यप् प्रत्यय से पहले हो तो तुक का आगम हो जाता है । सम+कृ+ ल्यप् = संस्कृत्य
  • धातु के अंत मे म और न हो तो लोप हो जाता है । और त जुड़ जाता है । आ+गम+ ल्यप् = आगत्य
  • व से शुरू होने वाली धातु मे व के स्थान पर उ का आगम ।

(iii) तुमुन् प्रत्यय

  • तुमुन्’ प्रत्यय में से ‘तुम्’ शेष रहता है।
  • ‘तुमुन् प्रत्यय से बना रूप अव्यय होता है।
  • इसका प्रयोग ‘के लिए’ अर्थ मे होता है ।
  • आकारांत धातु मे तुम् जुड़ जाता है ।
  • इकारांत, उकारांत, ऋकारांत धातु मे गुण आदेश । इ = ए, उ = ओ, ऋ = अर हो जाता है ।
  • धातु के अंत मे म हो तो उसका न आदेश हो जाता है ।

इसे भी देखे : हिन्दी व्याकरण प्रत्यय

(iv) क्त प्रत्यय-

  • क्त प्रत्यय में ‘त’ शेष रहता है।
  • क्त प्रत्यय धातु से भाववाच्य या कर्मवाच्य में होता है ।
  • भूतकाल के अर्थ में क्त प्रत्यय होते हैं।
  • क्त के रूप तीनों लिंगों में चलते हैं।
  • क्त प्रत्यय के रूप पुल्लिंग में राम के समान, स्त्रीलिंग में ‘अ’ लगाकर रमा के समान और नपुंसकलिंग में फल के समान चलते हैं।

 (v) क्तवतु प्रत्यय

  • क्तवतु प्रत्यय में ‘तवत्’ शेष रहता है।
  • क्तवतु प्रत्यय कर्तृवाच्य में होता है ।
  • भूतकाल के अर्थ में क्तवतु प्रत्यय होते हैं।
  • क्तवतु के रूप तीनों लिंगों में चलते हैं।
  • क्तवतु के रूप पुल्लिंग में भगवत् के समान, स्त्रीलिंग में ‘ई’ जुड़कर नदी के समान तथा नपुंसकलिंग में जगत् के समान चलते हैं।

(vi) शतृ प्रत्यय

  • ‘शतृ’ प्रत्यय- वर्तमान काल में हुआ’ अथवा ‘रहा’, ‘रहे’ अर्थ का बोध कराने के लिए ‘शतृ’ प्रत्यय का प्रयोग किया जाता है।
  • ‘शतृ’ प्रत्यय सदैव परस्मैपदी धातुओं (क्रिया-शब्दों) से ही जुड़ते हैं।
  • ‘शतृ’ के ‘श’ और तृ के ‘ऋ’ का लोप होकर ‘अत्’ शेष रहता है।
  • शतृ प्रत्ययान्त शब्दों के रूप तीनों लिंगों में चलते हैं ।

(vii) शानच् प्रत्यय

  • शानच् प्रत्यय- ‘शानच्’ प्रत्यय वर्तमान काल में हुआ’ अथवा ‘रहा’, ‘रही’, ‘रहे’ अर्थ का बोध कराने के लिए प्रयुक्त होता है।
  • ‘शानच्’ प्रत्यय आत्मनेपदी धातुओं में ही जुड़ता है।
  • शानच् प्रत्यय में से ‘श्’ और ‘च्’ का लोप होकर ‘आन’ शेष रहता है।
  • ‘आन’ के स्थान पर अधिकतर ‘मान’ हो जाता है।

इसे भी देखे : Sanskrit Vyakaran Online Test Series 

(viii) ‘अनीयर् प्रत्यय-

  • ‘अनीयर् प्रत्यय ‘चाहिए’ अथवा ‘योग्य’ अर्थ में प्रयुक्त होता है।
  • ‘अनीयर् प्रत्यय में से र् का लोप होने पर ‘अनीय’ शेष रहता है।
  • अनीयर् प्रत्ययान्त शब्दों के रूप तीनों लिंगों में चलते हैं।

(ix) तव्यत् प्रत्यय-

  • तव्यत्’ प्रत्यय ‘अनीयर् प्रत्यय के समान ‘चाहिए’ अथवा ‘योग्य’ अर्थ में ही प्रयुक्त होता है।
  • ‘तव्यत्’ प्रत्यय में से ‘त्’ का लोप होने पर ‘तव्य’ शेष रहता है।
  • ‘तव्यत्’ प्रत्ययान्त शब्दों के तीनों लिंगों में रूप चलते हैं।

2. तद्धित प्रत्यय : Sanskrit Vyakaran Pratyay PDF ( संस्कृत व्याकरण प्रत्यय )

(i) ‘तरप्’ प्रत्यय-

  • दो वस्तुओं में से एक को श्रेष्ठ (अच्छा) या निकृष्ट (खराब) बताने के लिए शब्द में ‘तरप्’ प्रत्यय जोड़ा जाता है।
  • इसमें से ‘तर’ शेष रहता है ।
  • इसके तीनों लिंगों में रूप चलते हैं।
  • पुल्लिंग में इस प्रत्यय से बने शब्दों के रूप ‘राम’ के समान, स्त्रीलिंग में ‘रमा’ के समान तथा नपुंसकलिंग में ‘फल’ के समान चलते हैं।
  • नोट-‘तरप्’ प्रत्यय विशेषण शब्दों में लगता है।

(ii) ‘तमप्’ प्रत्यय-

  • बहुतों में से एक को श्रेष्ठ (अच्छी) या निकृष्ट (खराब) बताने के लिए शब्द के साथ ‘तमप्’ प्रत्यय जोड़ा जाता है। इसमें से ‘तम’ शेष रहता है।
  • ‘तमप्’ प्रत्ययान्त शब्दों के रूप तीनों लिंगों में चलते हैं।

(iii) इनि प्रत्यय-

  • हिन्दी के ‘वाला’ अर्थ वाले शब्दों यथा- धन वाला, सुख वाला, गुण वाला आदि के लिए संस्कृत में शब्दों के साथ ‘इनि’ प्रत्यय लगाते हैं।
  • ‘इनि’ का ‘इन्’ शेष रहता है। दण्ड + इनि- दण्ड + इन् = दण्डिन्।
  • इनि प्रत्ययान्त शब्दों के रूप तीनों लिंगों में चलते हैं।
  • इनके रूप पुल्लिंग में ‘करिन्’ के समान, स्त्रीलिंग में ‘ई’ जोड़कर नदी के समान और नपुंसकलिंग के रूप इनि से बने मूल रूप के समान ही रहते हैं।

3. स्त्री प्रत्यय : Sanskrit Vyakaran Pratyay PDF ( संस्कृत व्याकरण प्रत्यय )

(i) टाप् (आ) प्रत्यय-

  • अजादि गण में अकारान्त शब्दों से यदि स्त्रीलिङ्ग बनाना हो तो टाप् प्रत्यय का प्रयोग करते हैं।
  • ‘टाप्’ प्रत्यय का ‘आ’ शेष रहता है।
  • इसमें पुल्लिङ्ग शब्द के अन्तिम ‘आ’ का लोप कर दिया जाता है।
  • किन्तु कुछ शब्द इस प्रत्यय के अपवाद भी हैं, उनमें अक् को इक् होने के बाद टाप् प्रत्यय लगता है।
  • ‘टाप्’ प्रत्यय में से ‘ट्’ और ‘यू’ का लोप हो जाने पर ‘आ’ शेष रहता है। जैसे-गायक-गायिका, बालक-बालिका आदि।

(ii) ङीप् प्रत्यय-

  • ऋकारान्त तथा नकारान्त पुल्लिङ्ग शब्दों के साथ ङीप् प्रत्यय जोड़कर स्त्रीलिङ्ग शब्द बनाते हैं।

‘ङीप्’ और ‘पू’ का लोप हो जाने ‘ई’ शेष रहता है।


Sanskrit Vyakaran Evam Sanskrit Shikshan Vidhiyan ( संस्कृत व्याकरण एवं संस्कृत शिक्षण विधियाँ )

 

क्र.सं. विषय-सूची Download PDF
1 वर्ण विचार व उच्चारण स्थान Click Here
2 संधि – विच्छेद Click Here
3 समास Click Here
4 कारक एवं विभक्ति Click Here
5 प्रत्यय Click Here
6 उपसर्ग Click Here
7 शब्द रूप Click Here
8 धातु रूप Click Here
9 सर्वनाम Click Here
10 विशेषण – विशेष्य Click Here
11 संख्या ज्ञानम् Click Here
12 अव्यय Click Here
13 लकार Click Here
14 माहेश्वर सूत्र Click Here
15 समय ज्ञानम् Click Here
16 विलोम शब्द Click Here
17 संस्कृत सूक्तय Click Here
18 छन्द Click Here
19 वाच्य Click Here
20 अशुद्धि संषोधन Click Here
21 संस्कृत अनुवाद Click Here
22 संस्कृत शिक्षण विधियां Click Here
23 Download Full PDF Click Here

यह भी देखे : Download हिन्दी व्याकरण एवं हिन्दी शिक्षण विधि PDF

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