Sanskrit Vyakaran Sandhi PDF
Sanskrit Vyakaran Sandhi PDF ( संस्कृत व्याकरण सन्धि ) : दोस्तो आज इस पोस्ट मे संस्कृत व्याकरण (Sanskrit Grammar) के सन्धि व सन्धि विच्छेद टॉपिक का विस्तारपूर्वक अध्ययन करेंगे । यह पोस्ट सभी शिक्षक भर्ती परीक्षा व्याख्याता (School Lecturer), द्वितीय श्रेणी अध्यापक (2nd Grade Teacher), REET 2021, RPSC, RBSE REET, School Lecturer, Sr. Teacher, TGT PGT Teacher, 3rd Grade Teacher आदि परीक्षाओ के लिए महत्त्वपूर्ण है । अगर पोस्ट पसंद आए तो अपने दोस्तो के साथ शेयर जरूर करे ।
Sanskrit Vyakaran Sandhi PDF ( संस्कृत व्याकरण सन्धि ) :
संधि की परिभाषा :- दो पदों में संयोजन होने पर जब दो वर्ण पास -पास आते हैं , तब उनमें जो विकार सहित मेल होता है , उसे संधि कहते हैं !
सन्धि के भेद–
(1) स्वर या अच् सन्धि
(2) व्यञ्जन या हल् सन्धि
(3) विसर्ग सन्धि
(1) स्वर या अच् सन्धि (Sanskrit Vyakaran Sandhi PDF)
परिभाषा-एक स्वर के साथ दूसरे स्वर का मेल होने से जो परिवर्तन होता है, उसे स्वर या अच् सन्धि कहते हैं। स्वर सन्धि के निम्नलिखित पाँच मुख्य उपभेद हैं
- दीर्घ संधि
- गुण संधि
- अयादि संधि
- वृद्धि संधि
- यण संधि
- पूर्वरूप संधि
- पररूप संधि
- प्रकृति भाव संधि
- दीर्घ सन्धि (Sanskrit Vyakaran Sandhi PDF)- (अकः सवर्णे दीर्घः) जब ह्रस्व (छोटे) या दीर्घ (बड़े) ‘अ’, ‘इ’,’उ’, ‘ऋ’ स्वर के बाद ह्रस्व या दीर्घ ‘अ’, ‘इ’, ‘उ’, ‘ऋ’, स्वर आयें तो दोनों सवर्ण स्वरों को मिलाकर एक दीर्घ वर्ण ‘आ’, ‘ई’, ‘ऊ’, ‘ऋ’ हो जाता है। जैसे-
नियम 1. अ/आ + अ/आ = आ
- धर्म + अर्थ = धर्मार्थ (अ + अ = आ)
- हिम + आलय = हिमालय (अ + अ = आ)
- पुस्तक + आलय = पुस्तकालय (अ + अ = आ)
- विद्या + अर्थी = विद्यार्थी (आ + अ = आ)
- विद्या + आलय = विद्यालय (आ + आ = आ)
नियम 2. इ और ई की संधि
- रवि + इंद्र = रवींद्र (इ + इ = ई)
- मुनि + इंद्र = मुनींद्र (इ + इ = ई)
- गिरि + ईश = गिरीश (इ + ई = ई)
- मुनि + ईश = मुनीश (इ + ई = ई)
- मही + इंद्र = महींद्र (ई + इ = ई)
- नारी + इंदु = नारींदु (ई + इ = ई)
- नदी + ईश = नदीश (ई + ई = ई)
- मही + ईश = महीश (ई + ई = ई)
नियम 3. उ और ऊ की संधि
- भानु + उदय = भानूदय (उ + उ = ऊ)
- विधु + उदय = विधूदय (उ + उ = ऊ)
- लघु + ऊर्मि = लघूर्मि (उ + ऊ = ऊ)
- सिधु + ऊर्मि = सिंधूर्मि (उ + ऊ = ऊ)
- वधू + उत्सव = वधूत्सव (ऊ + उ = ऊ)
- वधू + उल्लेख = वधूल्लेख (ऊ + उ = ऊ)
- भू + ऊर्ध्व = भूर्ध्व (ऊ + ऊ = ऊ)
- वधू + ऊर्जा = वधूर्जा (ऊ + ऊ = ऊ)
नियम 4. ऋ और ॠ की संधि
- पितृ + ऋणम् = पित्रणम् (ऋ + ऋ = ॠ)
- गुण सन्धि- (आद् गुण:) (Sanskrit Vyakaran Sandhi PDF)-
- अ अथवा आ के बाद इ अथवा ई आये तो दोनों के स्थान में ‘ए’ हो जाता है।
- अ अथवा आ के बाद उ अथवा ऊ आये तो दोनों के स्थान में ‘ओ’ हो जाता है।
- अ अथवा आ के बाद ऋ आये तो ‘अर्’ हो जाता है।
- अ अथवा आ के बाद लू आये तो अल्’ हो जाता है।
नियम 1.
- नर + इंद्र = नरेंद्र (अ + इ = ए)
- नर + ईश= नरेश (अ + ई = ए)
- महा + इंद्र = महेंद्र (आ + इ = ए)
- महा + ईश = महेश (आ + ई = ए)
नियम 2.
- ज्ञान + उपदेश = ज्ञानोपदेश (अ + उ = ओ)
- महा + उत्सव = महोत्सव (आ + उ = ओ)
- जल + ऊर्मि = जलोर्मि (अ + ऊ = ओ)
- महा + ऊर्मि = महोर्मि (आ + ऊ = ओ)
नियम 3.
- देव + ऋषि = देवर्षि (अ + ऋ = अर्)
नियम 4.
- महा + ऋषि = महर्षि (आ + ऋ = अर्)
- अयादि सन्धि –(एचोऽयवायावः)–ए, ऐ, ओ, औ के बाद जब कोई असमान स्वर आता है, तब ‘ए’ के स्थान पर ‘अय्’, ‘ओ’ के स्थान पर ‘अव’, ‘ऐ’ के स्थान पर ‘आय्’ तथा ‘औ’ के स्थान पर ‘आव्’ हो जाता है। ए, ऐ और ओ औ से परे किसी भी स्वर के होने पर क्रमशः अय्, आय्, अव् और आव् हो जाता है। इसे अयादि संधि कहते हैं। जैसे-
नियम 1.
- ने + अन = नयन (ए + अ = अय् + अ)
नियम 2.
- गै + अक = गायक (ऐ + अ = आय् + अ)
नियम 3.
- पो + अन = पवन (ओ + अ = अव् + अ)
नियम 4.
- पौ + अक = पावक (औ + अ = आव् + अ)
- नौ + इक = नाविक (औ + इ = आव् + इ)
- वृद्धि सन्धि – (वृद्धिरेचि)-यदि ‘अ’ या ‘आ’ के बाद ‘ए’ या ‘ऐ’ आये तो दोनों के स्थान में ‘ऐ’ और यदि ‘ओ’ या ‘औ’ आवे तो दोनों के स्थान में ‘औ’ वृद्धि हो जाती है। जैसे-
नियम 1.
- एक + एक = एकैक (अ + ए = ऐ)
- मत + ऐक्य = मतैक्य (अ + ऐ = ऐ)
- सदा + एव = सदैव (आ + ए = ऐ)
- महा + ऐश्वर्य = महैश्वर्य (आ + ऐ = ऐ)
नियम 2.
- वन + औषधि = वनौषधि (अ + ओ = औ)
- महा + औषधि = महौषधि (आ + ओ = औ)
- परम + औषध = परमौषध (अ + औ = औ)
- यण् सन्धि–(इको यणचि) -‘इ’ अथवा ‘ई’ के बाद असमान स्वर आने पर ‘इ’, ‘ई’ का ‘यू’। ‘उ’ तथा ‘ऊ’ के बाद असमान स्वर आने पर ‘उ’ या ‘ऊ’ का ‘व्’। ‘ऋ’ के बाद असमान स्वर आने पर ‘ऋ’ को ‘र’ और ‘लू’ के बाद असमान स्वर आने पर ‘लू’ के स्थान में ‘लु’ हो जाता है। जैसे-
नियम 1. इ, ई के आगे कोई विजातीय (असमान) स्वर होने पर इ ई को ‘य्’ हो जाता है।
- अति + आचार: = अत्याचार: (इ + आ = य्)
- यदि + अपि = यद्यपि (इ + अ = य् + अ)
- इति + आदि = इत्यादि (ई + आ = य् + आ)
- नदी + अर्पण = नद्यर्पण (ई + अ = य् + अ)
- देवी + आगमन = देव्यागमन (ई + आ = य् + आ)
- प्रति + एकम् = प्रत्येकम्
- नदी + उदकम् = नद्युदकम्
- स्त्री + उत्सवः = स्त्र्युत्सवः
- सुधी + उपास्यः = सुध्युपास्यः
नियम 2. उ, ऊ के आगे किसी विजातीय स्वर के आने पर उ ऊ को ‘व्’ हो जाता है।
- सु + आगतम् = स्वागतम् (उ + आ = व्)
- अनु + अयः = अन्वयः
- मधु + अरिः = मध्वरिः
- गुरु + आदेशः = गुर्वादेशः
- वधू + आगमः = वध्वागमः
- साधु + इति = साध्विति
- अनु + आगच्छति = अन्वागच्छति
नियम 3. ‘ऋ’ के आगे किसी विजातीय स्वर के आने पर ऋ को ‘र्’ हो जाता है। इन्हें यण-संधि कहते हैं।
- पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा (ऋ + अ = र् + आ)
नियम 4. ‘ल्र’ के आगे किसी विजातीय स्वर के आने पर ऋ को ‘ल्’ हो जाता है। इन्हें यण-संधि कहते हैं।
- ल्र + आक्रति = लाक्रति (ल्र + आ = ल्)
- पूर्वरूप संधि – (एडः पदान्तादति) – पदांत में अगर “ए” अथवा “ओ” हो और उसके परे ‘अकार’ हो तो उस अकार का लोप हो जाता है। लोप होने पर अकार का जो चिन्ह रहता है उसे ( ऽ ) ‘लुप्ताकार’ या ‘अवग्रह’ कहते हैं। जैसे :-
- कवे + अवेहि = कवेऽवेहि (ए / ओ + अकार = ऽ)
- प्रभो + अनुग्रहण = प्रभोऽनुग्रहण (ए / ओ + अकार = ऽ)
- लोको + अयम् = लोकोऽयम् (ए / ओ + अकार = ऽ)
- हरे + अत्र = हरेऽत्र (ए / ओ + अकार = ऽ)
- पररूप संधि – (एडि पररूपम्) – पदांत में अगर “अ” अथवा “आ” हो और उसके परे ‘एकार/ओकार’ हो तो उस उपसर्ग के एकार/ओकार का लोप हो जाता है। लोप होने पर अकार/ओकार ‘ए/ओ’ उपसर्ग में मिल जाता है। जैसे
- प्र + एजते = प्रेजते
- उप + एषते = उपेषते
- परा + ओहति = परोहति
- प्र + ओषति = प्रोषति
- उप + एहि = उपेहि
- प्रकृति भाव संधि – (ईदूद्विवचनम् प्रग्रह्यम्) – ईकारान्त, उकारान्त , और एकारान्त द्विवचन रूप के वाद यदि कोइ स्वर आये तो प्रक्रति भाव हो जाता है। अर्थात् ज्यो का त्यो रहता है । जैसे
- हरी + एतो = हरी एतो
- विष्णू + इमौ = विष्णु इमौ
- लते + एते = लते एते
- अमी + ईशा = अमी ईशा
- फ़ले + अवपतत: = फ़ले अवपतत:
(2) व्यञ्जन या हल् सन्धि (Sanskrit Vyakaran Sandhi PDF)-
व्यंजन के बाद स्वर या व्यंजन (व्यंजन् + स्वर, व्यंजन + व्यंजन) आने पर पूर्व पद के व्यंजन में जो परिवर्तन (विकार) होता है, उसे व्यंजन (हल्) सन्धि कहते हैं। इसमें ‘+’ चिह्न से पहले हलन्त व्यंजन आता है; जैसे-सत् + चित् = सच्चित्, जगत् + ईश्वरः = जगदीश्वरः। यहाँ पहले उदाहरण में ‘त्’ के बाद व्यंजन और दूसरे उदाहरण में ‘त्’ के बाद स्वर आया है।
व्यंजन सन्धि के निम्नलिखित छ: भेद निर्धारित हैं
(1) श्चुत्व सन्धि
(2) ष्टुत्व सन्धि
(3) जश्त्व सन्धि (पदान्त, अपदान्त)
(4) अनुस्वार सन्धि,
(5) परसवर्ण सन्धि
(1) श्चुत्व सन्धि (सूत्र-स्तोः श्चुना श्चुः) – ‘स्’ या तवर्ग (त, थ, द, ध, न) के बाद ‘श्’ या चवर्ग (च, छ, ज, झ, ञ) आये तो इनकी सन्धि होने पर ‘स्’ का ‘श्’ तथा तवर्ग का चवर्ग हो जाता है।
‘स्’ या तवर्ग + ‘श्’ या चवर्ग = ‘श्’ या चवर्ग
उदाहरण-
- सत् + चरित्र = सच्चरित्र
- जगत् + जननी = जगज्जननी
- कस् + चित् = कश्चित्
- निस् + छल: = निश्छल:
- उत् + चारणम् = उच्चारणम्
- सद् + जन: = सज्जन:
- दुस् + चरित्र = दुश्चरित्र:
- तद् + जय: = तज्जय:
- हरिस् + शेते = हरिशेते
(2) ष्टुत्व सन्धि (सूत्र-ष्टुना ष्टुः) – ‘स्’ या तवर्ग के बाद में ‘ष’ या टवर्ग (ट, ठ, ड, ढ, ण) आये तो इनका योग (सन्धि) होने पर ‘स्’ का ‘ष’ तथा तवर्ग का टवर्ग हो जाता है।
‘स्’ या तवर्ग + ‘ष’ या टवर्ग = ‘ष’ या टवर्ग
उदाहरण-
- धनुष् + टकार: = धनुष्टन्कार:
- रमस् + षष्ठ: = रामष्षष्टः
- रामस् + टीकते = रामष्टीकते
- बालास् + टीकते = बालष्टीकते
- द्रश् + त : = द्रष्ट:
- उद् + ऽयम् = उडऽयम्
- तत् + टीका = तट्टीका ( त् / द् + ट / ठ = ट् )
- महान् + डामर := महाण्डामर: ( न् + ड / ठ = ण )
- उत् + डीन : = उड्डीन : (त् / द + ठ / ड़ = ड् )
- महत् + ठालं = महड्ठालं (त् / द + ठ / ड़ = ड् )
(3) जश्त्व सन्धि – यह सन्धि दो प्रकार की होती है
(क) पदान्त जश्त्व तथा
(ख) अपदान्त जश्त्व।
(क) पदान्त जश्त्व सन्धि (सूत्र-झलां जशोऽन्ते) – यदि पदान्त में वर्ग के पहले, दूसरे, तीसरे और चौथे वर्ण तथा श, ष, स्, ह के बाद कोई भी स्वर तथा वर्ग के तीसरे, चौथे और पाँचवें वर्ण या य, र, ल, व में से कोई वर्ण आये तो पहले वाले वर्ण के स्थान पर उसी वर्ग का तीसरा वर्ण (जश्) हो जाता है।
उदाहरण –
- दिक् + अम्बर = दिगंबर
- वाक् + ईश : = वागीश :
- अच् + अंत : = अजन्त :
- षट् + आनन : = षडानन :
- जगत् + ईश : = जगदीश :
- जयत् + रथ : = जयद्रव :
(ख) अपदान्त जश्त्व सन्धि (सूत्र-झलां जश् झशि) – यदि अपदान्त में झल् अर्थात् वर्ग के प्रथम, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ वर्ण के बाद कोई झश् । अर्थात् वर्ग का तीसरा, चौथा वर्ण हो तो सन्धि होने पर वह जश् अर्थात् अपने वर्ग का तृतीय वर्ण हो जाता है।
(5) अनुस्वार सन्धि (सूत्र-मोऽनुस्वारः) -यदि पदान्त में ‘म्’ के बाद कोई भी व्यंजन आता है तो ‘म्’ के स्थान पर अनुस्वार (‘) हो जाता है।
उदाहरण-
- हरिम् + वन्दे = हरिं वन्दे
- गृहम् + गच्छति = गृहं गच्छति
- शाम् + तः = शान्तः
- सम् + बन्धः = सम्बन्धः
- धर्मम् + चर = धर्म चर
- सत्यम् + वद = सत्यं वद
- कुम् + ठितः = कुण्ठितः
(6) परसवर्ण सन्धि (सूत्र-अनुस्वारस्य ययि परसवर्णः) – अनुस्वार से परे यदि यय् प्रत्याहार (श्, ष, स्, ह के अतिरिक्त सभी व्यंजन यय् प्रत्याहार में आते हैं) का कोई भी व्यंजन आये तो अनुस्वार का परसवर्ण हो जाता है; अर्थात् पद के मध्य में अनुस्वार के आगे श्, ष, स्, ह को छोड़कर किसी भी वर्ग का कोई भी व्यंजन आने पर अनुस्वार के स्थान पर उस वर्ग का पंचम वर्ण हो जाता है;
उदाहरण—
- गम् + गा = गङ्गा
- गम्/गं + ता = गन्ता
- सम्/सं + ति = सन्ति
- अन्/अं+ कितः = अङ्कितः
- शाम्/शां + तः = शान्तः
- अन्/अं + चितः = अञ्चितः
- कुम्/कुं+ चितः = कुञ्चितः
(6) अनुनासिक सन्धि (सूत्र – यरोऽनुनासिकेऽनुनसिको वा) – पद के अन्त में ‘ह’ को छोड़कर शेष सभी व्यञ्जन हों और उसके बाद अनुनासिक वर्ण, ङ, उ, ए, न्, म् हो तो पूर्व की व्यञ्जन वर्ण विकल्प से अनुनासिक हो जाता है। जैसे-
- एतत् + मुरारिः = एतन्मुरारिः (विकल्प से–एतमुरारिः)
- जगत् + नाथः = जगन्नाथः (विकल्प से—जगनाथ:)
विसर्ग संधि (Sanskrit Vyakaran Sandhi PDF) :-
विसर्ग के साथ स्वर या व्यंजन का मेल होने पर जो विकार होता है , उसे विसर्ग संधि कहते हैं ।
- सत्व सन्धि (सूत्र-विसर्जनीयस्य सः) Sanskrit Vyakaran Sandhi PDF – विसर्ग का श, ष, स होना – यदि विसर्ग के बाद च-छ आये तो विसर्ग के स्थान पर ‘श्’, ट-ठ आये तो विसर्ग के स्थान पर ष तथा त-थ आये तो विसर्ग के स्थान पर ‘स्’ हो जाता है।
उदाहरण –
नियम 1. – : + च / छ / श = श
यदि विसर्ग (:) के बाद “च / छ / श” हो तो उसे “श” में बदल देते हैं। उदाहरण-
- नि: + चल : = निश्चल :
- क: + छल : = कश्चौर:
- राम : + चलति = रामश्चलति
- दु : + शासति = दुश्शासन :
नियम 2. – : + क, ख, ट , ठ, प , फ = ष्
यदि विसर्ग (:) के बाद “क, ख, ट , ठ, प , फ” हो तो उसे “ष्” में बदल देते हैं। उदाहरण-
- धनु : + तङ्कार : = धनुष्टन्कार:
- नि : + कंटक : = निष्कन्टक:
- राम : + टीकते = रामष्टीकते
नियम 3. – : + क / त = स्
यदि विसर्ग (:) के बाद “क / त” हो तो उसे “स्” में बदल देते हैं। उदाहरण-
- नम : + कार : = नमस्कार :
- नम : + ते = नमस्ते
- नम : + तरति = नमस्तरति
- उत्व संधि – उत्व् संधि का सूत्र हशि: च होता है।
नियम 1. यदि विसर्ग से पहले “अ” हो एवं विसर्ग का मेल किसी भी “वर्ग के – त्रतीय, चतुर्थ, या पंचम वर्ण” से या “य, र, ल, व” से हो तो संधि करते समय विसर्ग (:) को “ओ” मे बदल देते है ।
अ : + त्रतीय, चतुर्थ, या पंचम वर्ण / य, र, ल, व = ओ
- रज: + गुण : = रजोगुण :
- तम : + बल : = तपोबल :
- यश : + गानम् = यशोगानम्
- मन : + रव : = मनोरव:
- सर : + वर : = सरोवर:
- मन : + हर : = मनोहर:
नियम 2. – यदि विसर्ग से पहले “अ” हो एवं अन्त: पद के शुरु मे भी “अ ” हो तो संधि करते समय विसर्ग (:) को “ओ” मे तथा अन्त: पद के “अ” को पूर्वरूप (ऽ) मे बदल देते है ।
अ : + अ = ोऽ
- देव : + अयम् = देवोऽयम
- राम : + अवदत् = रामोऽवदत्
- त्रप : + आगच्छत् = त्रपोऽगच्छत्
- क : + अत्र = कोऽत्र
- रुत्व् संधि – रुत्व् संधि का सूत्र ससजुषोरु: होता है।
रुत्व् संधि के नियम
नियम 1. यदि संधि के प्रथम पद के अन्त मे विसर्ग (:) से पहले अ / आ को छोडकर कोई अन्य स्वर आये, तथा अन्त पद के शुरु मे कोई स्वर / या वर्गो के त्रतीय, चतुर्थ, या पंचम वर्ण / या य, र, ल, व हो तो विसर्ग को “र् ” मे बदल देते हैं ।
अ / आ छोडकर कोई अन्य स्वर : + कोई स्वर / त्रतीय, चतुर्थ, या पंचम वर्ण / य, र, ल, व = ओ
- नि : + बल = निर्बल
- नि : + गुण = निर्गुण
- नि : + जन = निर्जन
- नि : + उत्तर = निरुत्तर
- नि : + आशा = निराशा
- दु : + बल = दुर्बल
नियम 2. इस नियम मे रुत्व संधि के कुछ विशेष उदाहरण सम्मिलित किये गये जो इस प्रकार है :-
- पितु : + इच्छा = पितुरिच्छा
- गौ : + अयम् = गौरयम्
- मुनि : + अयम् = मुनिरयम्
- देवी : + उवाच् = देविरुवाच्
- विसर्ग लोप संधि (Sanskrit Vyakaran Sandhi PDF)- विसर्ग लोप संधि (विसर्ग संधि) प्रमुख रूप से तीन प्रकार से बनाई जा सकती । जिनके उदाहरण व नियम इस प्रकार है –
नियम 1. यदि संधि के प्रथम पद मे स : / एष : हो और अंत पद के शुरु मे अ को छोड़कर कोई अन्य स्वर अथवा व्यंजन हो तो (:) का लोप हो जात्रा है।
स : / एष: + अ को छोड़कर अन्य स्वर / व्यंजन = : का लोप
- स : + एति = सएति
- स : + पठति = सपठति
- एष : + जयति = एषजयति
- एष : + विष्णु = एषविष्णु
- एष : + चलति = एषचलति
नियम 2. यदि विसर्ग से पहले अ हो तथा विसर्ग का मेल अ से भिन्न किसी अन्य स्वर से हो तो विसर्ग का लोप हो जाता है।
- अत : + एव = अतएव
- अर्जुन : + उवाच: = अर्जुनउवाच:
- बाल : + इच्छति = बालइच्छति
- सूर्य : + उदेति = सूर्यउदेति
नियम 3. यदि विसर्ग से पहले आ हो और विसर्ग का मेल किसी अन्य स्वर अथवा वर्गों के तृतीय, चतुर्थ, पंचम अथवा य , र , ल , व वर्णो से हो तो विसर्ग का लोप हो।
- छात्रा: + नमन्ति = छात्रानमन्ति
- देवा: + गच्छन्ति = देवागच्छति
- पुरुषा: + हसन्ति = पुरुषाहसन्ति
- अश्वा: + धावन्ति = अश्वाधावन्ति
Sanskrit Vyakaran Evam Sanskrit Shikshan Vidhiyan ( संस्कृत व्याकरण एवं संस्कृत शिक्षण विधियाँ )
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