Hindi Vyakaran Karak PDF
Hindi Vyakaran Karak PDF ( हिन्दी व्याकरण कारक ) : दोस्तो आज इस पोस्ट मे हिन्दी व्याकरण (Hindi Grammar) के कारक टॉपिक का विस्तारपूर्वक अध्ययन करेंगे । यह पोस्ट REET 2021, Patwari Bharti 2020, Gramsevak 2021, LDC, RPSC, RBSE REET, School Lecturer, Sr. Teacher, TGT PGT Teacher, 3rd Grade Teacher आदि परीक्षाओ के लिए महत्त्वपूर्ण है । अगर पोस्ट पसंद आए तो अपने दोस्तो के साथ शेयर जरूर करे ।
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कारक
कारक की परिभाषा :– कारक संस्कृत भाषा की कृ धातु से बना है । संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से उसका सीधा संबंध क्रिया के साथ ज्ञात हो वह कारक कहलाता है।
जैसे :- मुमताज़ ने दूध पीया।
इस वाक्य में ‘मुमताज़’ पीना क्रिया का कर्ता है और दूध उसका कर्म। अतः ‘मुमताज़’ कर्ता कारक है और ‘दूध’ कर्म कारक।
कारक विभक्ति :- संज्ञा अथवा सर्वनाम शब्दों के बाद ‘ने, को, से, के लिए’, आदि जो चिह्न लगते हैं वे चिह्न कारक विभक्ति कहलाते हैं।
हिन्दी भाषा मे कारको की संख्या – 8
संस्कृत भाषा मे करको की संख्या – 6
कारक के भेद :-
- कर्ता ने
- कर्म को
- करण से, के साथ, के द्वारा
- संप्रदान के लिए, को
- अपादान से (पृथक)
- संबंध का, के, की
- अधिकरण में, पर
- संबोधन हे ! हरे !
विशेष :- कर्ता से अधिकरण तक विभक्ति चिह्न (परसर्ग) शब्दों के अंत में लगाए जाते हैं, किन्तु संबोधन कारक के चिह्न- हे, रे, आदि प्रायः शब्द से पूर्व लगाए जाते हैं।
- कर्ता कारक :-जिस रूप से क्रिया (कार्य) के करने वाले का बोध होता है वह ‘कर्ता’ कारक कहलाता है। इसका विभक्ति-चिह्न ‘ने’ है। इस ‘ ने ’ चिह्न का वर्तमानकाल और भविष्यकाल में प्रयोग नहीं होता है। इसका सकर्मक धातुओं के साथ भूतकाल में प्रयोग होता है।
जैसे :-
- लड़की ने खाना खाया ।
- लड़की स्कूल जाती है।
पहले वाक्य में क्रिया का कर्ता लड़की है। इसमें ‘ने’ कर्ता कारक का विभक्ति-चिह्न है। इस वाक्य में ‘खाया’ भूतकाल की क्रिया है। ‘ने’ का प्रयोग प्रायः भूतकाल में होता है। दूसरे वाक्य में वर्तमानकाल की क्रिया का कर्ता लड़की है। इसमें ‘ने’ विभक्ति का प्रयोग नहीं हुआ है।
नोट :- (1) भूतकाल में अकर्मक क्रिया के कर्ता के साथ भी ने परसर्ग (विभक्ति चिह्न) नहीं लगता है।
जैसे :- वह हँसा।
(2) वर्तमानकाल व भविष्यतकाल की सकर्मक क्रिया के कर्ता के साथ ने परसर्ग का प्रयोग नहीं होता है।
जैसे :- वह फल खाता है। वह फल खाएगा।
(3) कभी-कभी कर्ता के साथ ‘को’ तथा ‘से’ का प्रयोग भी किया जाता है।
जैसे :-
- बालक को सो जाना चाहिए।
- गीता से पुस्तक पढ़ी गई।
- रोगी से चला भी नहीं जाता।
2. कर्म कारक :-क्रिया के कार्य का फल जिस पर पड़ता है, वह कर्म कारक कहलाता है। इसका विभक्ति-चिह्न ‘ को ’ है।
जैसे :-
- अफजल ने साँप को मारा।
- राम पुस्तक पढ़ता है ।
पहले वाक्य में ‘मारने’ की क्रिया का फल साँप पर पड़ा है। अतः साँप कर्म कारक है। इसके साथ परसर्ग ‘को’ लगा है।
दूसरे वाक्य में ‘पढ़ने’ की क्रिया का फल पुस्तक पर पड़ा। अतः पुस्तक कर्म कारक है। इसमें कर्म कारक का विभक्ति चिह्न ‘को’ नहीं लगा।
3. करण कारक :-संज्ञा आदि शब्दों के जिस रूप से क्रिया के करने के साधन का बोध हो अर्थात् जिसकी सहायता से कार्य संपन्न हो वह करण कारक कहलाता है। इसके विभक्ति-चिह्न ‘से’ के ‘द्वारा’ है।
जैसे :-
- वह कलम से लिखता है ।
- राम बस से जाता है ।
पहले वाक्य में कर्ता वह लिखने का कार्य ‘कलम’ से किया। अतः ‘कलम से’ करण कारक है। दूसरे वाक्य में कर्ता राम जाने का कार्य ‘बस से’ कर रहे हैं। अतः ‘बस से’ करण कारक है।
4. संप्रदान कारक :-संप्रदान का अर्थ है-देना। अर्थात कर्ता जिस के लिए कुछ कार्य करता है, अथवा जिसे कुछ देता है उसे व्यक्त करने वाले रूप को संप्रदान कारक कहते हैं। कोई वस्तु हमेशा के लिए खरीदी जाए, दी जाए या आदरसूचक शब्दो के साथ मे संप्रदान कारक होता है । इसके विभक्ति चिह्न ‘के लिए’ को हैं।
जैसे :-
- राजा ब्राह्मणो के लिए दान देता है ।
- गुरुजी को फल दो।
5. अपादान कारक :-संज्ञा के जिस रूप से एक वस्तु का दूसरी से अलग होना पाया जाए वह अपादान कारक कहलाता है। कोई वस्तु, व्यक्ति या पदार्थ यदि अपने मूल स्थान / स्थिर स्थान से अलग हो जाते है तो स्थिर रहने वाले मे अपादान कारक होता है । इसका विभक्ति-चिह्न ‘से’ है।
जैसे :-
- पेड़ से पत्ता गिरता है ।
- बालक छत से गिरता है ।
- गंगा हिमालय से निकलती है ।
6. संबंध कारक :-शब्द के जिस रूप से किसी एक वस्तु का दूसरी वस्तु से संबंध प्रकट हो वह संबंध कारक कहलाता है। इसका विभक्ति चिह्न ‘ का’, ‘के’, ‘की’, ‘रा’, ‘रे’, ‘री ’ है।
जैसे :-
- यह राम का घर है।
- यह एमडी की कार है।
7. अधिकरण कारक :-शब्द के जिस रूप से क्रिया के आधार का बोध होता है उसे अधिकरण कारक कहते हैं। इसके विभक्ति-चिह्न ‘ में’, ‘पर ’ हैं।
जैसे :-
- बालक कक्षा मे बैठे है ।
- कमरे में टी.वी. रखा है।
8. संबोधन कारक :-जिससे किसी को बुलाने अथवा सचेत करने का भाव प्रकट हो उसे संबोधन कारक कहते है । वाक्य मे पुकार, घृणा, आश्चर्य आदि का बोध हो । और संबोधन चिह्न (!) लगाया जाता है।
जैसे :-
- अरे भैया ! क्यों रो रहे हो ?
- हे गोपाल ! यहाँ आओ।
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