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Rajasthani Shabdo ke Hindi Roop

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Rajasthani Shabdo ke Hindi Roop

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Rajasthani Shabdo ke Hindi Roop ( राजस्थानी शब्दों के हिन्दी रूप ) : दोस्तो आज इस पोस्ट मे रीट 2021 हिन्दी भाषा (Hindi Grammar) के राजस्थानी शब्द टॉपिक का विस्तारपूर्वक अध्ययन करेंगे । यह पोस्ट REET 2021 परीक्षाओ के लिए महत्त्वपूर्ण है । अगर पोस्ट पसंद आए तो अपने दोस्तो के साथ शेयर जरूर करे ।

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राजस्थानी शब्दों के हिन्दी रूप (Rajasthani Shabdo ke Hindi Roop) 

भारत की अन्य प्रांतीय भाषाओं की तरह राजस्थानी की भी अपनी कुछ विशिष्ट विशेषतायें हैं। ग्रियर्सन ने Linguistic Survey of India की 9वीं पुस्तक के भाग-2 के पृष्ठ संख्या 2-3 पर राजस्थानी भाषा की बोलियों का वर्गीकरण इस प्रकार किया है ।

  1. पश्चिमी राजस्थानी – इसमें मारवाड़ी, थली, बीकानेरी, बागड़ी, शेखावाटी, मेवाड़ी, खैराड़ी, गोडवाड़ी और देवड़ावाटी सम्मिलित हैं।
  2. उत्तर पूर्वी राजस्थानी – अहीरवाटी और मेवाती।
  3. ढूंढाड़ी – इसे मध्यपूर्वी राजस्थानी भी कहा जाता है, जिसमें तोंरावाटी, जयपुरी, कठैड़ी, राजावाटी, अजमेरी, किशनगढ़ी, शाहपुरी एवं हाडौती सम्मिलित हैं।
  4. मालवी या दक्षिण-पूर्वी-राजस्थानी – इसमें रांगड़ी और सोडवाडी हैं।
  5. दक्षिणी राजस्थानी – निमाड़ी।

यह भी पढे :  REET 2021 Free Online Test Quiz Level 1 & Level 2 All Subject

राजस्थानी भाषा की सामान्य विशेषताएँ निम्न हैं-

(1) राजस्थानी में “ण”, “ड़” और (मराठी) “ळ “ तीन विशिष्ट ध्वनियाँ (Phonemes) पाई जाती हैं।

(2) राजस्थानी तद्भव शब्दों में मूल संस्कृत “अ” ध्वनि कई स्थानों पर “इ” तथा “इ” “उ” के रूप में परिवर्तित होती देखी जाती हैं-“मिनक” (मनुष्य), हरण (हरिण), क”मार (कुंभकार)।

(3) मेवाडी और मालवी में “च, , , झ” का उच्चारण भीली और मराठी की तरह क्रमश: “त्स, , द्ज, ज़” की तरह पाया जात है।

(4) संस्कृत हिंदी पदादि “स-ध्वनि” पूर्वी राजस्थानी में तो सुरक्षित है, किंतु मेवाड़ी-मालवी-मारवाड़ी में अघोष “ह्ठ” हो जाती है। हि. सास, जैपुरी-हाडौती “सासू”, मेवाड़ी-मारवाड़ी “ह्ठाऊ”

(5) पदमध्यगत हिंदी शुद्ध प्राणध्वनि या महाप्राण ध्वनि की प्राणता राजस्थानी में प्राय: पदादि व्यंजन में अंतर्भुक्त हो जाती है-हिं. कंधा, रा. खाँदो; हि. पढना, रा. फढ-बो।

(6) राजस्थानी के सबल पुलिंग शब्द हिंदी की तरह आकारांत न होकर ओकारांत है :-हि. घोड़ा, रा. घोड़ी, हिं. गधा, रा. ग”द्दो, हिं. मोटा, रा. मोटो।

(7) पश्चिमी राजस्थानी में संबंध कारक के परसर्ग “रो-रा-री” हैं, किंतु पूर्वी राजस्थानी में ये हिंदी की तरह “को-का-की” हैं।

(8) जैपुरी-हाड़ौती में “नै” परसर्ग का प्रयोग कर्मवाच्य भूतकालिक कर्ता के अतिरिक्त चेतन कर्म तथा संप्रदान के रूप में भी पाया जाता है-“छोरा नै छोरी मारी” (लड़के ने लड़की मारी); “म्हूँ छोरा नै मारस्यँू” (मैं लड़के को पीटूँगा;-चेतन कर्म); “यो लाडू छोरा नै दे दो” (यह लड्डू लड़के को दे दो-संप्रदान)।

(9) राजस्थानी में उत्तम पुरुष के श्रोतृ-सापेक्ष “आपाँ-आपण” ओर श्रोतृ निरपेक्ष “महे-म्हें-मे” दुहरे रूप पाए जाते हैं।

(10) हिंदी की तरह राजस्थानी के वर्तमानकालिक क्रिया रूप सहायक क्रियायुक्त शतृप्रत्ययांत विकसित रूप न होकर शुद्ध तद्भव रूप हैं। “मूँ जाऊँ छूँ” (मैं जाता हूँ)।

(11) सहायक क्रिया के रूप पश्चिमी राजस्थानी में “हूं-हाँ-हो-है” (वर्तमान) और “थो-थी-था” (भूतकाल) हैं, किंतु पूर्वी राजस्थानी में “छूँ-छाँ-छो-छै” (वर्तमान) और “छो-छी-छा” (भूतकाल) हैं।

(12) राजस्थानी में तीन प्रकार के भविष्यत्कालिक रूप पाए जाते हैं :-जावैगो, जासी, जावैलो। इनमें द्वितीय रूप संस्कृत के भविष्यत्कालिक तिङंत रूपों का विकास हैं-“जासी” (यास्यति), जास्यूँ (यास्यामि)।

(13) राजस्थानी की अन्य पदरचनात्मक विशेषता पूर्वकालिक क्रिया के लिए “-र” प्रत्यय का प्रयोग है : -“ऊ-पढ़-र रोटी खासी” (वह पढ़कर रोटी खाएगा)।

(14) राजस्थानी की वाक्यरचनागत विशेषताओं में प्रमुख उक्तिवाचक क्रिया के कर्म के साथ संप्रदान कारक का प्रयोग है, जबकि हिंदी में यहाँ “करण या अपादान” का प्रयोग देखा जाता है1″या बात ऊँनै कह दो” (यह बात उससे कह दो)। पूर्वी राजस्थानी में हिंदी के ही प्रभाव से संप्रदानगत प्रयोगके अतिरिक्त विकल्प से कारण-अपादानगत प्रयोग भी सुनाई पड़ता है-“या बात ऊँ सूँ कह दो”।

राजस्थानी शब्द और उनका अर्थ ( Rajasthani Shabdo ke Hindi Roop )

  • वीरा- भाई
  • भावज- भाभी
  • भंवर- बड़ा लड़का
  • भवरी- बड़ी लड़की
  • छोरा-छोरी- लड़का-लड़की
  • डांगरा- पशु
  • ढोर- भेड़बकरी
  • बींद- पती/दुल्हा
  • बींदणी- बहू/दुल्हन
  • लालजी- देवर
  • लाडो- बेटी
  • लाडलो- प्रिये
  • गीगलो/टाबर- बच्चा
  • लाडी- सोतन
  • गेलड़- दूसरे विवाह में स्त्री के साथ जाने वाला बच्चा
  • बावनो- लम्बाई में छोटा पुरुष
  • बावनी- लम्बाई में छोटी महिला
  • घनेड़ो-घनेड़ी: भानजा-भनजी
  • भूड़ोजी- फूफाजी
  • धणी-लुगाई: पती-पत्नी
  • भरतार- पती
  • कलेवो- नाश्ता
  • गँवार- अनपढ
  • बेगा बेगा- जल्दी जल्दी
  • बेसवार- मसाला
  • जिनावर- जीव जंतु
  • सिरख -रजाई
  • गूदड़ा- छोटा बेड/गद्दा
  • पथरना- छोटा बेड
  • हरजस/हरजा- भजन
  • पतड़ो- पंचांग
  • मीती- तीथी
  • बाखल- लान
  • तीपड़- तीसरा माला
  • शाल- सामने का बड़ा कमरा
  • तखडीओ/ताकङी- तराजू
  • पसेरी/धडी- 5 kg
  • मण- 40 kg
  • सेर- 1kg
  • धुण- 20 kg
  • बेड़ियो- मसाला रखने का बॉक्स
  • घडूची- पानी का मटका रखने की वास्तु
  • ओरा- कोने का कमरा
  • परिंडा- पानी रखने की जगह
  • खेळ- पशुओ के पानी पिने का स्थान
  • कोटड़ी- बोक्स रुम
  • मालिया- छत पर कमरा
  • गुम्हारिया- तलघर
  • कब्जो- ब्लाउज
  • मूण- मिट्टी का बड़ा घड़ा
  • मटकी- मिट्टी का घड़ा
  • ठाटो- कागज गला कर अनाज
  • रखने का बर्तन
  • गूणीया- चाय/दूध/पानी रखने का छोटा बर्तन
  • तड़काउ- भोर
  • उनाळो- गर्मी का मौसम
  • सियाळो- सर्दी का मौसम
  • चौमासो- बारिश का मौसम
  • पालर पाणी- पीने का बारिश का पानी
  • वाकल पाणी- पीने का नल का पानी
  • दिसा जाना- पायखाना जाना
  • रमणने- खेलने
  • तिस (लगना)- प्यास (लगना)
  • गिट्ना- खाना
  • ठिकाणा- पता (Address)
  • किना उडाणा- पतंग उड़ाना
  • ख्वासजी- नाई
  • अगूण- पूर्व
  • आथूंण- पश्चिम
  • कांजर- बनजारा
  • झरोखो- खिड़की/विंडोज
  • बाजोट- लकड़ी की बड़ी चौकी
  • मांढणो -लिखना
  • कुलियों -मिट्टी का छोटा बर्तन
  • मायरो -भात
  • मुदो -तिलक (विवाह में वर का)
  • मेल -विवाहिक प्रीतिभोज
  • मुकलाओ- गोणा/ बालविवाह उपरांत पहली बार पीहर से पत्नी को घर लाना
  • बटेऊ- मेहमान
  • पावणा- जवाई
  • सुतली- रस्सी
  • ठूंगा- लिफ़ाफ़ा
  • पूँगा/मुशल- बेवकूफ़
  • लूण- नमक
  • कांदों- प्याज
  • खूंटी- वस्तु/वस्त्र लटकाने का स्थान
  • कासंन- बर्तन
  • जापो- बच्चा पैदा होना
  • ओबरो- अनाज रखने का स्थान
  • खाट/माचो- बड़ी चारपाई
  • खटुलो- छोटू चारपाई
  • घुचरियो- कुत्ते का बच्चा
  • मुहमांखी/मदमाखी- मधु मक्खी
  • भिलड- घोडा मक्खी
  • लूकटी- लोमड़ी
  • गदडो- सियार
  • खुसड़ा- जूते चप्पल
  • बरिंडा- बरामदा
  • आंगी- स्त्री की चोली
  • कांचली- स्त्री की कुर्ती
  • झालरों -गले में पहने की माला
  • गंजी/बंडी- बनियान
  • झबलो/झूबलो- पवजात बच्चे का वस्त्र
  • मांडि कलब -(वस्त्रो में दी जाने वाली)
  • आंक- अक्षर
  • तागड़ी- स्त्रिओ के कमर पर पहने का आभूषण
  • झुतरा- बाल
  • मोड़ों- साधू
  • पूरियों- जानवरों के भोजन का स्थान
  • चूंण- आटा
  • राखूंडो- बर्तन साफ करने का स्थान
  • सांकली- सरकंडा
  • होद- पानी रखने की भुमि गत टंकी
  • उस्तरा- रेजर/दाढ़ी करने का औजार
  • नीरो -पशुओ का चारा
  • चोबारा- ऊपर का कमरा
  • टोळडो- ऊँट का बच्चा
  • उन्दरो- चूहा
  • किलकीटारि- गिलहरी
  • पिडो -बैठने की रस्सी/ऊन की चौकी
  • बिजूका – (अडवो, बिदकणा) – खेत में पशु-पक्षियों से फसल की रक्षा करने के लिए मानव जैसी बनाई गयी आकृति
  • उर्डो, ऊर्यो, ऊसरडो, छापर्यो – ऐसा खेत जिसमे घास और अनाज दोनों में से कुछ भी पैदा न होता हो
  • अडाव – जब लगातार काम में लेने से भूमि की उपजाऊ शक्ति कम हो जाने पर उसको खाली छोड़ दिया जाता है
  • अखड, पड़त, पडेत्या – जो खेत बिना जुता हुआ पड़ा रहता है
  • पाणत – फसल को पानी देने की प्रक्रिया
  • बावणी – खेत में बीज बोने को कहा जाता है
  • ढूँगरा, ढूँगरी – जब फसल पक जाने के बाद काट ली जाती उसको एक जगह ढेर कर दिया जाता है
  • बाँझड – अनुपजाऊ भूमि
  • गूणी – लाव की खींचने हेतु बैलो के चलने का ढालनुमा स्थान
  • चरणोत – पशुओं के चरने की भूमि
  • बीड – जिस भूमि का कोई उपयोग में नहीं लिया जाता है जिसमें सिर्फ घास उगती हो
  • सड़ो, हडो, बाड़ – पशुओं के खेतों में घुसने से रोकने के लिए खेत चारो तरफ बनाई गयी मेड
  • गोफन – पत्थर फेकने का चमड़े और डोरियों से बना यंत्र
  • तंगड-पट्टियाँ – ऊंट को हल जोतते समय कसने की साज
  • चावर, पाटा, पटेला, हमाडो, पटवास – जोते गए खेतों को चौरस करने का लकड़ी का बना चौड़ा तख्ता
  • जावण – दही जमाने के लिए छाछ या खटाई की अन्य सामग्री
  • गुलेल – पक्षी को मारने या उड़ाने के लिए दो – शाखी लकड़ी पर रबड़ की पट्टी बांधी जाती जसमे में बीच में पत्थर रखकर फेंका जाता है.
  • ठाण – पशुओं को चारा डालने का उपकरण जो लकड़ी या पत्थर से बनाया जाता है
  • खेली – पशुओं के पानी पिने के लिय बनाया गया छोड़ा कुंड
  • दंताली – खेत की जमीन को साफ करना तथा क्यारी या धोरा बनाने के लिए काम में ली जाती है
  • लाव – कुएँ में जाने तथा कुएँ से पानी को बाहर निकालने के लिए डोरी को लाव कहा जाता है
  • रेलनी – गर्मी या ताप को कम करने के लिए खेत में पानी फेरना
  • नीरनी – मोट और मूँग का चारा
  • नाँगला – नेडी और झेरने में डालने की रस्सी
  • सींकळौ – दही को मथने की मथनी के साथ लगा लोहे का कुंदा
  • लूण्यो – मक्खन. इसको “घीलडी” नामक उपकरण में रखा जाता है
  • ओबरी – अनाज व उपयोगी सामान को रखने के लिय बनाया गया मिट्टी का उपकरण (कोटला)
  • नातणौ- पानी, दूध, छाछ को छानने के काम आने वाला वस्त्र
  • थली – घर के दरवाजे का स्थान
  • नाडी – तलाई – पानी के बड़े गड्डो को तलाई आय नाडी कहा जाता है
  • मेर – खेत में हँके हुए भाग के चरों तरफ छोड़ी गयी भूमि
  • जैली – लकड़ी का सींगदार उपकरण
  • रहँट – सिंचाई के लिए कुओं से पानी निकालने का यंत्र
  • सूड – खेत जोतने से पहले खेत के झाड-झंखाड को साफ करना
  • लावणी – किसान द्वारा फसल को काटने के लिए प्रयुक्त किया गया शब्द
  • खाखला – गेंहू या जौ का चारा
  • दावणा – पशु को चरते समय छोड़ने के लिए पैरों में बांधी जाने वाली रस्सी
  • हटडी – मिर्च मसाले रखने का यंत्र
  • कुटी – बाजरे की फसल का चारा
  • ओरणी – खेत में बीज को डालने के लिए हल के साथ लगाई जाती है इसको “नायलो” भी कहते है
  • पराणी, पुराणी – बैलो या भैसों को हाकने की लकड़ी
  • कुदाली, कुश – मिट्टी को खोदने का यंत्र
  • ढींकळी – कुएँ के ऊपर लगाया गया यंत्र जो लकड़ी का बना होता है.
  • चडस – यह लोहे के पिंजरे पर खाल को मडकर बनाया जाता है जो कुओं से पानी निकालने के काम आता है
  • चू, चऊ – हल के निचे लगा शंक्वाकार लोहे का यंत्र
  • पावड़ा – खुदाई के लिए बनाया गया उपकरण
  • तांती – जो व्यक्ति बीमार हो जाता है उसके सूत या मोली का धागा बाँधा जाता है यह देवता की जोत के ऊपर घुमाकर बांधा जाता है
  • बेवणी – चूल्हे के सामने राख (बानी) के लिए बनाया गया चौकोर स्थान
  • जावणी – दूध गर्म करने और दही जमाने की मटकी
  • बिलौवनी – दही को बिलौने के लिए मिट्टी का मटका
  • नेडी – छाछ बिलौने के लिए लगाया गया खूंटा या लकड़ी का स्तम्भ
  • झेरना – छाछ बिलोने के लिए लकड़ी का उपकरण इसको “रई” भी कहते है
  • नेतरा, नेता – झरने को घुमाने की रस्सी
  • छाजलो – अनाज को साफ करने का उपकरण
  • बांदरवाल – मांगलिक कार्यों पे घर के दरवाजे पर पत्तों से बनी लम्बी झालर
  • छाणों- सुखा हुआ गोबर जो जलाने के काम आता है
  • झोंपड़ी – घास-फूस से तैयार किया गया मकान
  • मचान/ डागला – झोंपड़ीनुमा
  • खूंटा – पशुओं को बांधने के लिये जमीन में गाढ़ी गई लकड़ी


Hindi Grammar and Pedagogy PDF ( हिन्दी व्याकरण एवं शिक्षण विधियाँ )

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1वर्ण विचार व वर्ण विश्लेषणClick Here
2शब्द ज्ञान (तत्सम, तद्भव, देशज, विदेशी)Click Here
3शब्द युग्मClick Here
4उपसर्गClick Here
5प्रत्ययClick Here
6पर्यायवाची शब्दClick Here
7विलोम शब्दClick Here
8एकार्थी शब्दClick Here
9संधि – विच्छेदClick Here
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